“माँ, आप सब के लिये सहज सुलभ हो कर,…सबको मनमानी करने का मौका दे,अपना नुकसान ही करती है …, क्या फायदा, इतने मददगार बनने का, छोटा -बड़ा कोई भी आपको कुछ भी कह देता, आप किसी को भी ना क्यों नहीं बोलती..”बेटी तन्वी ने माँ सुमन को समझाने के लिये कहा..।
“बेटा, नफा -नुकसान तो मैं नहीं जानती…., हाँ किसी की मदद करके मुझे बहुत खुशी मिलती है,”माँ सुमन घर से बाहर जाते हुये बोली..।
“जाने से पहले सोच लो माँ, पिछली बार क्या हुआ था , दूसरों के लिये अपने को क्यों परेशानी में डाला जाये..”तन्वी थोड़ा तल्ख़ हो कर बोली..।
पर सुमन उसकी बात अनसुनी कर बाहर निकल गई। पड़ोसी के घर में बेटी शुभी की शादी है,ढेरों काम हैं, पड़ोसन ऊषा ने साफ कह दिया “सुमन तुम तो घर की हो रोज ही आना पड़ेगा तभी, शादी की तैयारी हो पायेगी “…
लाख मतभेद हो किसी से, सुमन ना बोल ही नहीं पाती ये तो पड़ोसन थी..। रोज सुबह घर के काम खत्म कर पड़ोसी के घर पहुँच जाती, कभी चुनरी पर गोटा लग रहा तो कभी साड़ी में फॉल तो कभी बाजार जा मैचिंग चूड़ी -बिंदी लाया जा रहा।
एक समय था जब ऊषा जी की अपने पति से बिल्कुल नहीं पटती थी, पति अक्सर दोस्तों के साथ पी कर आते, और घर में ऊषा जी की जरा सी गलती पर हाथ उठा देते…,ऊषा रो -रो कर अपना दुख सुमन को बतातीं…।सुमन ऊषा को समझाती “अन्याय को मत सहो, बच्चों पर बुरा असर पड़ता है “
एक दिन रमन जी गुस्से में ऊषा को धकेल दिया, जिससे उनका सर दीवार से टकरा गया, ऊषा जी की चीख सुन सुमन से रहा ना गया, दौड़ कर उनके घर गई, ऊषा की हालत देख, तुरंत हॉस्पिटल ले गई, साथ ही पुलिस में कम्प्लेन भी कर दी..।
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पुलिस के आने पर ऊषा जी साफ मुकर गई. बोली “मै खुद दीवार से टकरा गई थी, “सुमन की तरफ अग्नेय दृष्टि से देखते बोली “इन्हे कुछ गलतफहमी हो गई “…।
पुलिस वाले सुमन को ही बुरा -भला कह कर चले गये, उनके जाने के बाद ऊषा जी ने भी सुमन को खूब खरी -खोटी सुनाया “ये मेरे घर का मामला है, तुमको किसने पुलिस बुलाने को कहा था “
“ऊषा, रोज की मार -पीट क्यों सहन करना, सोचो बच्चों पर इसका क्या असर पड़ेगा “सुमन ने समझाने की कोशिश की..।
“आप यहाँ से चली जाइये “रमन जी ने भी सुमन से बद्त्तमीजी से कहा….।
सुमन घर लौट आई, घर में पति कमलेश ने भी सुमन को डांट लगाईं “क्या जरूरत है, दूसरों के पचड़ेन में पड़ने को, “
“मैं तो उसकी मदद कर रही थी “सुमन ने कहा।
दोनों परिवार में बोलचाल बंद हो गई, हाँ फर्क ये पड़ा, अब मार -पीट थोड़ी कम हो गई..।
समय बीता, ऊषा जी और रमन अपनी बड़ी बेटी शुभी की शादी जल्दी कर, अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पाना चाहा, रिश्तेदार की मध्यस्ता में हुई शादी में, लड़के के बारे में ज्यादा छान -बीन नहीं की गई,…परिणाम स्वरुप नारकीय याताना भोग रही शुभी को ऊषा जी घर ले आई।
आते ही ऊषाजी सुमन के घर गई “सुमन तुम ठीक कहती थी, अगर मैंने समय पर पति के अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई होती, तो आज शुभी की ये हालत ना होती ,उसने भी मेरी तरह पति की प्रताड़ना को सहज समझ लिया था..,आज मेरी आँख खुल गई,मै तुमसे अपनी गलतियों के लिये दिल से क्षमा मांगती हूँ “
दोनों सहेलियां गले लग गई,अब रमन जी को भी समझ आ गया, शुभी ने अपनी बची पढ़ाई पूरी कर जॉब हासिल किया, साथ काम करने वाले मोहित ने जब शादी का प्रपोजल दिया तो शुभी ने हाँ कह दिया।
रमन जी इस बार कोई गलती नहीं करना चाहते थे,मोहित और उसके परिवार की जानकारी लेने के बाद जी शादी की सहमति दी..।
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शादी का दिन आ गया, शुभी बहुत सुन्दर लग रही थी, आंतरिक खुशी किसी भी लड़की का सौंदर्य दुगना बढ़ा देता है, ये शुभी को देख कर समझा जा सकता… विदा के समय सुमन को आगे कर ऊषा बोली “असली माँ का फ़र्ज इसीने निभाया..तुझे वहाँ से निकाल, तुम्हारी पढ़ाई पूरी करवाने का पूरा श्रेय सुमन को है , हमारी बोलचाल बंद थी, लेकिन एक दिन सुमन ने मुझे फोन कर तुम्हारी स्थिति की जानकारी दी…,मुझे समझाती ना,तो मै तुझे ससुराल से ना लाती .. क्योंकि मैं जो सह रही थी, उसे जीवन की सामान्य बात समझ रही थी, भूल गई थी मेरी बेटी, मुझसे ही शिक्षा लेगी….,।
सुमन ने मदद कर दर्द, तकलीफ सह नुकसान को सहा, एक नुकसान सबक सिखा गया तो देर से सही इज्जत,और प्यार का नफा भी करा गया…
—संगीता त्रिपाठी