भगवान भला करें बिटिया भोलेनाथ के नाम पर इस झोली में कुछ डाल दो मैं वक्त की मारी दुखिया हूं… सड़क के किनारे बस का इंतजार करती रुचि और उसकी सहेली मीनल के सामने अचानक एक कमजोर महिला आ गई।
शर्म करो हाथ पांव सलामत है फिर भी यूं सड़क पर खड़े होकर हाथ फैला कर भीख मांग रही हो अरे कुछ काम करो भगवान ने हाथ पैर इसलिए नहीं दिए हैं मीनल उसे देखते ही चिढ़ गई।
ठीक कहती हो बिटिया शर्म ही करती थी। घर से कभी बाहर नहीं निकली।पति था तो पूरा ख्याल रखता था ।नखरे उठाता था।वक्त खराब आ गया ।घर में आग लग गई सब स्वाहा हो गया।आग बुझाने में मेरा पति बुरी तरह झुलस गया है। किसी तरह सरकारी अस्पताल में ले आई हूं।लेकिन डॉक्टर कुछ इंजेक्शन बाहर से मंगवाने के रुपए मांग रहे हैं..दो साल का मेरा बच्चा भूखा है दो दिनों से …इसीलिए आज विवश होकर…. कहती वह महिला हिचकी बांध कर रोने लगी।
रुचि का दिल बिलख उठा।उसने मीनल के आग्नेय नेत्रों की परवाह ना करते हुए तुरंत सौ रुपए के दो नोट निकाल कर उस महिला की तरफ बढ़ा दिए..” लीजिए अभी मेरे पास इतने ही है अगर इनसे आपके कठिन वक्त में कुछ मदद हो सके..कह कर उसके हाथ में थमा दिए ।महिला विनीत हो झुक गई।
तभी उनकी बस आ गई ।
रुचि तुम एक बेहद बेवकूफ लड़की हो।वह महिला ढोंग नाटक कर रही थी।दो चार झूठे आंसू बहाकर उसने खड़े खड़े तुमसे दो सौ रूपये ऐंठ लिए… तुम्हारे जैसे बेवकूफों के कारण ही ऐसे मदद के नाम पर झूठ बोलकर ठगने वालों की आजकल बाढ़ उफन आई है मीनल बस में चढ़ती रुचि पर आपे से बाहर हो गई।
तुम्हें कैसे पता मीनल कि वह झूठ बोल रही थी ।चलो मान लिया कि वह झूठ बोल रही थी तो मेरा कितना नुकसान हुआ सिर्फ दो सौ रूपये का ही ना!! तो ठीक है आज कैंटीन में नाश्ता नहीं करूंगी।लेकिन अगर वह महिला सच बोल रही हो तो!!हमारे दो सौ रूपये जो हमारे लिए उतने मायने नहीं रखते पर उसके साथ हुए नुकसान में अभी विपत्ति में लाख रुपए के बराबर हो सकते हैं..! आओ… बस चलने वाली है रुचि ने नीचे खड़ी नाराज मीनल की ओर हाथ बढ़ाते हुए गंभीरता से कहा तो मीनल भी कुछ सोचने पर विवश हो गई।
लतिका श्रीवास्तव
वक्त पर काम आना# विपत्ति में मदद करना#मुहावरा आधारित कहानी