NRI दामाद – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

न जाने किस घडी में मेरे मम्मी-पापा ने एक  एन आर आइ दामाद क सपना देखा था। असल में हुआ  ऐसा कि मेरी मौसी की लड़की की शादी NRI से हुई और वह अमेरीका में रहकर अपने पति के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही थी। तभी मेरी मम्मी ने भी सोच लिया कि वे मेरी शादी भी एक NRI से ही करेंगी हालांकि उस समय मैं महज  आठ साल की थी। किन्तु  मम्मी-पापा ने अपनी आँखों मे एक  NRI का सपना जो संजो लिया था।

जैसे-जैसे मैं बड़ी होती जा रही थी मम्मी का सपना भी बड़ा आकार ले रहा था। मेरी स्कूलिंग पूरी हुई और में कालेज में आ गई। अब मम्मी – पापा आपस में बातें करते मौसी की बेटी रागनी कितनी खुश  है। भगवान  हमें भी एक ऐसा ही NRI दमाद दे दें , जो हमारी परी को राजरानी बना कर रखे। अपनी पलकों पर बिठा  कर रखे ।हे ईश्वर हमारी प्रार्थना स्वीकार कर लेना । हमारी बेटी को रागनी बिटीया जैसा ही सुखी संसार देना। 

अब मैं बड़ी हो गई थी और ये बातें समझने लगी थी सो सोचती कि सबका भाग्य अलग-अलग होता है उसी हिसाब से जीवन में सुख-दुख मिलते  हैं, किसी से तुलना कैसे कर सकते हैं। किन्तु मम्मी-पापा को कौन समझाए । रातदिन वे अपना सपना पूरा  करने की ही सोच में डूबे रहते ।

समय अपनी गति से चलायमान था  सो चल रहा था और मेरा कालेज भी पूरा हो गया और मैंने पोस्टग्रेज्यूशन में  प्रवेश ले लिया। मम्मी-पापा की NRI दामाद की खोज की मुहिम तेज हुई। पत्र पत्रिकाओं में वैवाहिक विज्ञापन देखते, लैपटॉप पर  देखते स्वयं भी निकलवाते जिन्हें देख अच्छे रिश्ते भी आये।

किन्तु उन्होंने ये रिश्ते ठुकरा दिये क्योंकि उनकी नजर में NRI दामाद ही उनकी बेटी को सुखी रख सकता था। मैंने MA कर नौकरी भी शुरू कर दी और इधर मम्मी-पापा की खोज भी जारी थी। किन्तु  हाथ कुछ नहीं लग रहा था।  जिस प्राइवेट कालेज में , मैं अध्यापन करती थी उसकी मेरी विभागाध्यक्ष मुझसे बहुत स्नेह रखती थीं।

उनका एक बेटा था उच्च शिक्षित, अच्छे पद पर एवं दिखने में भी अति आर्कषक व्यक्तित्व का धनी था, वे चाहती थीं फि में उनकी बहु बनूं यानी कि उनके बेटे की जीवन संगिनी। सच पूछो तो में भी यही चाहती थी क्योंकि उनके बेटे दीपक को मैं देख चुकी थी  वो कभी – कभी अपनी मम्मी को लेने आता था।  मेरी रजामंदी देख एक दिन वे हमारे  घर पहुंच गईं  मेरा  हाथ अपने बेटे के लिए  मांगने  । किन्तु मेरे मम्मी-पापा  जिनकी  आँखों में N R I के सपने तैर रहे हों  उन्होंने विनम्रतापूर्वक  यह रिश्ता  ठुकरा दिया।

जब मैंने मम्मी से कहा क्या बुराई थी मम्मी इस रिश्ते में,मैडम मुझे बहुत चाहती हैं मैं खुश रहूंगी।

तुझे अभी इन बातों की समझ नहीं है, विदेश की ज़िंदगी अलग ही होती है। ये लडका  कहां तुझे वह सुख दे पायेगा जो एक NRI देगा। उनकी बात सुन मैं अपना सिर पकड़ लेती मम्मी आपको अपने देश में ऐसी क्या कमी नजर आती है जो आप विदेश पंसद कर मुझे अपने से इतनी दूर भेजना  चाहती हो।

ठहर जा तू ये सब बातें बाद में समझेगी और इसी तरह अच्छे रिश्ते ठुकराते – ठुकराते मेरी उम्र बढ़ती जा रही थी ।मैं अपनी किस्मत को रोते-रोते कोसती कि मेरे भाग्य में क्या लिखा है। मैं अट्ठाइस  बर्ष की हो चुकी भी अब अच्छे रिश्ते आने कम होने लगे थे। अब तक मेरी सारी सहेलियों की शादीयाँ हो चुकी थीं ,

कई तो एक एक बच्चे की मां भी बन चुकी थीं।पर मेरे NRI वर की तलाश जारी थी। ऐसे ही दो साल और निकल गए  । अब मम्मी-पापा  को चिन्ता होने लगी। तभी विज्ञापन के आधार पर  आखिर एक  NRI वर मिल ही गया। जो भारत केवल शादी करने ही आया था ताकि पत्नी को भी साथ ले जा सके। समय कम था जो ज्यादा उसके बारे में छानबीन किये बिना तुरत-फुरत शादी करने का फैसला  ले लिया। 

मैं लाख कहती रही पापा धोखा भी हो सकता है आप पूरी जानकारी  तो पता कर लें। किन्तु उन्हें तो अपना सपना पूरा होते दिख रहा था,सो चट मंगनी पट ब्याह कर सारी आवश्यक कार्रवाई पूरी कर वीजा बनबा  मुझे विदा कर दिया अमेरिका के लिए। 

वहाँ घर पहुँचते ही मेरा पहले से घर में मौजूद  एक स्त्री  से सामना हुआ ।

वह दीपक से हंस कर बोली डार्लिंग  तुम मैड ले आये इन्डिया से वह अंग्रेजी में बोल रही थी शायद यह सोचकर कि मैं अंग्रेज़ी नहीं समझती बोले जा रही थी। वह जिस तरह से बात कर रही थी कि मुझे समझते देर  नहीं लगी कि वह चिराग की पत्नी है। 

जब मैंने चिराग से पूछा यह सब क्या है तो 

वह बड़ी बेहयाई से बोला हां यह मेरी पत्नी है हमारा एक दो बर्ष का बेटा भी है हम दोंनों काम पर जाते हैं पीछे बच्चे को रखने और घर के काम में परेशानी हो  रही थी तो सोचा भारत से शादी कर पत्नी  ले आऊँ जो घर सम्हाल ले। यहां  नौकरों  की बड़ी समस्या है पहले तो ढंग के मिलते नहीं, और मिलते भी हैं तो बहुत मंहगे। तुम्हे खाने ,रहने, अन्य सुविधाओं  की कोई कमी नहीं होगी केवल मुझसे  पति जैसे सम्बन्ध  की कोई अपेक्षा मत रखना।

 यह सुन वह तो जैसे आसमान से गिर गई   सारे सपने चकनाचूर हो गए। अब क्या करे यहां विदेश में किससे सहायता ले। भारत वापस कैसे लौटे सोच-सोच कर उसका सिर घूमने लगा। वह रोने लगी और अपनी किस्मत को कोसती जाती। मम्मी-पापा का सपना मेरे लिए कितना भारी पड़ा। मेरे जीवन में सुख नहीं था  तो विदेश आकर भी नहीं मिला, उल्टे मैं बुरी तरह छली गई। मम्मी-पापा को  फोन भी कैसे करे, वे दोनों आस पास ही रहते।

सिवा हां , हूं के ज्यादा बात ही नहीं कर पाती। वह बुरी तरह वहां से निकलने के लिए छटपटा रही थी। अंजान शहर, हाथ में विदेशी मुद्रा  भी नहीं जाए तो कहां  जाए। वह सुबह शाम अपनी किस्मत को कोसती और इसी जीवन को अपनी नियती मान जीने लगी। अब उनको विश्वास हो गया कि वह अच्छे से  रहने लगी है तो बच्चे को घूमाने पार्क भेजने लगे हिदायत के साथ कि यह मत कहना कि तुम काम के लिए लाई गई हो। उसकी किस्मत ने साथ दिया, एक दिन पार्क में  उसकी दीपक से  भेंट हो गई। उसे देखते  ही वह रो पड़ी और अपनी कहानी उसे बताईं और बोली मुझे भारत वापस भिजवा  दो। 

वह बोला एक दो दिन रूको मैं देखता हूं क्या कर सकता हूँ। तुम  मुझे यहीं परसों मिलो और किसी से कुछ मत कहना । संयोगवश दीपक अपनी कम्पनी के काम से महिने भर के लिए उसी शहर में आया हुआ  था। जब वे दुबारा मिले तो दीपक ने उससे कहा तुम्हारा पासपोर्ट चाहिये उसके बिना टिकट कैसे बनेगा। 

पासपोर्ट मेरे पति ने अपने पास रखा हुआ है ,खैर देखती हूं। दो दिन बाद वापस आने की बात कर वे  चले गए। असल में फोन द्वारा उसने अपनी माँ को सब बताकर कहा था हो सकता है मुझे  कुछ पैसों की जरूरत पड़े। 

दो दिन बाद उसने जैसे तैसे अपना पासपोर्ट चुपचाप ढूंढ लिया और दीपक को दे दिया।

जिस दिन दीपक लौटने वाला था उसी दिन का उसका भी  टिकट बुक करवा दिया। अभी जाने में दस दिन  शेष थे ।जाने वाले दिन दीपक कैब लेकर उसके घर से थोड़ी दूर खडा था। बच्चे को  उसने पडोस में जाकर यह कहकर छोडा कि सो रहा है और मेरी तबियत अचानक खराब हो गई है सो में दवा लेकर एक घंटे में आती हूं

आप सम्हाल लो प्लीज़ साथ में दूध की बोतल भी है। और वह तुरन्त  कैब में जा  बैठी और एअरपोर्ट की ओर चल दिए। चैकिंग के  बाद  जैसे ही बोर्डिंग का समय हुआ उसने  फोन कर चिराग को बता दिया कि वह जाकर  पडोस में अपने बच्चे को सम्हाल ले वह इन्डिया  जा रही है। सुनते ही उसके होश उड़ गये। वह तुरन्त घर  की  ओर भागा ।एक घंटे से अधिक समय घर पहुंचने में लगा तब तक विमान उड चुका था और वह कैद से  आजाद हो चुकी थी ।

दो दिन बाद भारत  पहुंच राहत की सांस ली। पहले  वे  दीपक के  घर पहुँचे फिर बाद में वह उसे घर तक छोड आया। मम्मी-पापा  अचानक बेटी को आया  देख हैरान रह गए। पूरी बात पता चलने पर  उन्हें अपने किये का पछतावा  हुआ।बेटी की जिन्दगी खराब करने की ग्लानी भी। बाद में पुलिस कार्रवाई की धमकी देकर उसके परिवार को  आपसी समझौते के आधार पर तलाक देने पर  विवश किया। और तलाक के बाद दोनों परिवारों  की रजा मंदी से दीपकऔर मेरी  शादी कर दी गर्ई । क्योंकि दीपक की पत्नी भी एक ही बर्ष बाद बच्चे के जन्म के समय हुए काम्प्लीकेशन में जान गंवा बैठी थी।

अब मैं किस्मत को कोसना छोड सराह रही थी।

शिव कुमारी शुक्ला

17-6-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

दोस्तों अपने बच्चे की खुशी के बारे में प्रत्येक माता सोचते हैं और सोचना  भी चाहिए । किन्तु इतना भी अडिग नहीं होना चाहिए कि दूसरा अच्छा  विकल्प  सामने आए तो उस पर सोचना ही नहीं ।खुशी का सम्बन्ध  देश विदेश से नहीं जुडा होता यह मन से जुडा होता है ।जहाँ सुकून मिले वहीं खुशी  है। बच्चों के लिए  विदेश के  सपने देखें,पर विदेश प्रेम में इतने भी अन्धे न हो जाएं कि बिना उचित -अनुचित का पता लगाये सिर्फ इस बात पर कि पात्र बिदेश में है अपनी बेटी का जीवन उसे सौंप दें। ऐसे जल्दबाजी  में धोखा भी हो जाता है, जैसा कि इस कहानी की नायिका का के साथ हुआ। वो तो उसकी किस्मत  ने साथ दिया संयोगवश भारतीय परिचित मिल  गया नहीं तो वह वापस कैसे आती। सबको ऐसा संयोग मिल जाए यह तो मुमकिन नहीं सोचो ऐसी स्थिती में उसके जीवन का हश्र कैसा होता।

ये मेरे अपने विचार हैं यदि आप इन विचारों से सहमत हैं तो जरूर बताएं कमेन्ट द्वारा।

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