देखो मनीष,कुसुम मेरी बहू है,पर जब वह वंश बढ़ाने में सक्षम नही है,मुझे पोता नही दे सकती,मां ही नही बन सकती तो कुछ तो सोचना पड़ेगा ना।वह घर मे रहे मुझे आपत्ति नही,पर तुझे दूसरा ब्याह करना ही पड़ेगा।समझ रहा है ना तू?
मैं सब समझ रहा हूँ माँ, तुम्हारा आशय यह है कि जिस कुसुम को तुम इस घर की मालकिन बना कर लायी थी,वह भी हमारी कृपा से पड़ी रहेगी एक कोने में? माँ क्या हम इतने निर्दयी हैं जो घर की मालकिन का तिरस्कार कर दे।बताओ माँ उसका कसूर क्या है,एक्सीडेंट में यदि उसका मात्रत्व भेंट चढ गया तो हम उसे गाजर मूली की तरह अलग थलग कर दे,ये कहाँ का न्याय है माँ?मैं तो दूसरी शादी की कल्पना भी नही कर सकता।
एक भव्य समारोह में मनीष और कुसुम की शादी मात्र दो वर्ष पूर्व ही हुई थी।अच्छा सम्पन्न परिवार था मनीष का,कुसुम भी मां की ही पसंद थी,उनकी सहेली कृष्णा की छोटी बेटी,बड़ी बेटी रेखा की शादी हो चुकी थी।सुंदर सलोनी कुसुम को मां अपनी बहू के रूप में देखना चाहती थी,मनीष ने हमेशा मां का मान रखा था सो इस विषय मे भी मनीष ने कोई ना नुकर नही की।कुछ ही महीनों में कुसुम गर्भवती हो गयी,माँ के पावँ तो धरती पर ही नही पड़ रहे थे,पोता आयेगा, बस इसी धुन में माँ मगन रहने लगी।मनीष के पिता के गोलोकवासी हो
जाने के बाद और मनीष के अपने पैतृक कारोबार में लिप्त हो जाने पर मां अपने को अकेली पाने लगी थी।कुसुम के गर्भवती हो जाने पर उनको लगने लगा था कि अपना वंश तो बढ़ेगा ही साथ ही उनका अकेलापन भी दूर हो जायेगा। वे कुसुम का खूब ख्याल रखती।
कुसुम के गर्भकाल का पांचवा माह चल रहा था,मनीष उसको डॉक्टर को दिखाने ले गया था।सब कुछ ठीक था, सब रिपोर्ट सही थी,मनीष और कुसुम दोनो बहुत खुश थे।पर नियती ने तो कुछ और ही ठान रखा था।एक ट्रक ने गलत साइड से बिना हॉर्न दिये उनकी कार को ओवरटेक किया और इसी चक्कर मे ट्रक का पिछला हिस्सा
कार से जोर से टकराया, मनीष ने गाड़ी संभालने का भरपूर प्रयास किया,कार की स्पीड काफी कम करने में वह सफल भी हो गया पर तब तक कुसुम की ओर का कार का दरवाजा टूट कर सड़क पर गिर गया और बिना सपोर्ट के और ट्रक की जोरदार टक्कर के कारण कुसुम भी सड़क पर जा गिरी।
मनीष एक दम कार को रोक कर कुसुम की ओर लपका।सड़क पर खून फैला था,गर्भपात हो चुका था।होने वाले बच्चे के बारे में देखे सपने ध्वस्त हो चुके थे। टैक्सी से कुसुम को अस्पताल लाया गया।चोट तो कोई खास नही थी पर पेट पर प्रहार ऐसा था कि गर्भपात तो हुआ ही लेकिन अधिक बज्रपात तो तब हुआ जब डॉक्टर्स को कुसुम की जान बचाने के लिये उसकी बच्चेदानी ही निकाल देनी पड़ी।बच्चेदानी निकल जाने का मतलब कभी दुबारा गर्भ ग्रहण न कर पाना।
कुसुम के लिये यह सदमा एक्सीडेंट से भी अधिक था,उधर मां का धैर्य भी साथ छोड़ रहा था।इसी कारण मां की पेशकश थी कि मनीष दूसरी शादी कर ले।मनीष किसी भी कीमत पर तैयार नही था।घर मे एक अजीब से तनाव का वातावरण छा गया था,जिसका हल किसी के पास नही था।हालांकि मनीष ने मां क्या चाहती है,यह बात कुसुम को नही बताई थी,पर घर की खामोशी सबकुछ बयान कर रही थी।सड़ी गली सब्जी को भी कौन घर मे रखता है,फेक देते हैं कूड़े में।वह भी तो निष्प्रयोज्य ही हो गयी है,
सोच सोच कर कुसुम कहती तो कुछ नही पर आंखों से आंसू बहाती रहती।एक बार मन कड़ा कर कुसुम ने मनीष से कहा भी,कि वह अपने मायके चली जायेगी, वह दूसरी शादी कर ले।सुनकर मनीष ने कुसुम को अपने से चिपटाकर कहा खबरदार जो ऐसी बात मुँह से निकाली, जीते जी मैं तुम्हे नही छोड़ सकता कुसुम।
सब सुन मां भी उनके पास कमरे में ही आ गयी।माँ ने भी कुसुम को अपनी बाहों में भर कर कहा,मुझे माफ़ कर दे मेरी बच्ची,मैं ही स्वार्थी हो गयी थी,मैं ही तुम दोनो के प्यार को ना समझ सकी।मेरी बच्ची मुझे बस तुम दोनो का हंसता खेलता चेहरा चाहिये।मुझे मनीष पर गर्व है, वह डिगा नही।
एक माह बाद ही कुसुम की बड़ी बहन रेखा मिलने आयी,उसने आते ही कुसुम को अपने गले से लगा लिया।रेखा बोली छोटी दिल छोटा मत करियो, तेरी बड़ी बहना मरी ना है,देख मेरा कुट्टू तीन बरस का हो गया है,अब यह चार महीने पहले मेरी गोद मे भगवान ने एक और मुन्ना डाल दिया है।रात में सपने में भगवान ने पता है क्या कहा मुझसे ?
भगवान कहे रहे रेखा तू भी स्वार्थी हो गयी,मोह में पड़ गयी।अरे छोटी मैं पहले तो कुछ समझ ही ना पायी।फिर सब समझ आ गया।सुन छोटी आज से अभी से ये मुन्ना तेरा।मेरी लाड़ो कौन कह सकता है मेरी बहन के कोई बच्चा नही, है तो ये मुन्ना।रेखा ने अपनी गोद से मुन्ना को उतार कुसुम की गोद मे डाल दिया।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित