नियति का खेल: Online Hindi Kahani

कंचन अपने माता-पिता की अकेली लाड़ली संतान थी । उसके जन्म के बाद से पिता के व्यवसाय में वृद्धि हुई है इसलिए पिता उसकी हर बात को मानते थे । 

गाँव के स्कूल में पाँचवीं तक की ही कक्षाएँ ही थी । उसके सब लड़कियों को पढ़ाना बंद कर देते थे और बारह साल की होते ही शादी करा देते थे ।

जब कंचन ने कहा कि उसे और पढ़ना है तब पिता राघवेंद्र ने सरकार से बात करके स्कूल को दसवीं कक्षा बढ़ा दिया था तो लड़कों को भी बाहर पढ़ने जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी लड़कियों को किस कक्षा तक पढ़ाना है यह माता-पिता ही फ़ैसला कर लेते थे । गाँव में लोगों ने सोचना शुरू कर दिया था कि जब कंचन पढ़ ही रही है तो हमारी बेटियों को क्यों न पढ़ाएँ । इसलिए दूसरों में भी हिम्मत आई ।

गाँव में बहुतों ने अपनी बच्चियों को यह सोचकर भी स्कूल भेजना शुरू किया था कि शादी के तय होते ही पढ़ाई छुड़ा देंगे ।

कंचन बहुत होशियार भी थी उसने दसवीं की परीक्षा में टॉप किया था तो पिता इतने खुश हो गए थे कि उसे शहर में पढ़ने भेजने के लिए तैयार हो गए ।

कंचन ने बिना किसी रुकावट के डिग्री कॉलेज में दाख़िला ले लिया था ।उसका वह कॉलेज कोएड था । माता-पिता ने उसे बहुत सारी हिदायतें दी थी कि कॉलेज में लड़कों से बात नहीं करना है सिर्फ़ पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना आदि ।

कंचन ने सबके लिए हामी भरी और हॉस्टल में रहकर पढ़ने लगी । 

कहते हैं ना कि सब दिन एक समान नहीं होते हैं कंचन की क्लास में एक नया स्टूडेंट रजत आया था । वह भी बहुत ही होशियार था। दोनों में होड़ लगी रहती थी कि इस बार कक्षा में टॉपर कौन बनता है।

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अंतिम सेमेस्टर में कंचन फ़र्स्ट और रजत सेकंड आया था।  रजत बहुत उदास हो गया था । 

सबने एक-दूसरे को बधाई दी और अपने अपने घर लौट गए थे ।

कंचन के पिता ने कंचन के लिए एक अच्छा रिश्ता ढूँढ कर उसकी शादी तय कर दी ।

शादी में उसने अपने सारे क्लास मेट्स को बुलाया था । उसमें रजत भी था । जब सब बैठकर बातें कर रहे थे तो रजत ने अपने दिल की बात कह दी थी कि कंचन नियति तो देखो तुम बहुत होशियार हो और कॉलेज की टॉपर हो लेकिन इसका क्या फ़ायदा हुआ तुम शादी करके पति के घर चली जाओगी और तुम्हारी डिग्री सिर्फ़ बच्चों को और ससुराल वालों को गर्व से कहने के लिए ही रह जाएगी । मैं समझ सकता हूँ कॉलेज टॉपर बनने के लिए तुमने बहुत मेहनत की है यही टॉपर मुझे मिलता तो कितना अच्छा होता था न । तुमने हम लड़कों नुक़सान कर दिया है।

सबने पूछा कैसे?

तुम्हारा नुक़सान कैसे हुआ रजत कंचन ने आश्चर्य चकित होकर पूछा । 

देखो कंचन मेरे और तुम्हारे अंकों में सिर्फ़ दो अंकों का फ़र्क़ है और तुम टॉपर बन गई और शादी करके जा रही हो । वही मैं टॉपर होता तो मेरी नौकरी के लिए कितना प्लस पॉइंट होता था ना वैसे नियति के आगे किसी की चली है क्या?

तुम लड़कियों को इतना पढ़ कर हम से कॉमेप्टीशन करने की क्या ज़रूरत ही क्या है आराम से सिर्फ़ पास हो जाते तो भी ठीक है ना ।

उसकी बातों को सुनकर भी किसी ने कुछ नहीं कहा क्योंकि कंचन जैसे लोगों को केरियर बनाने की ज़रूरत ही नहीं है वे तो सिर्फ़ शौक से पढ़ती हैं । परंतु किसी की बुद्धि का आकलन हम नहीं कर सकते हैं।एक बार सब सोचने पर मजबूर हो गए थे ।

दोस्तों मैं नहीं कहती हूँ कि टॉपर सिर्फ़ लड़कों को ही होना चाहिए लड़कियों को नहीं क्योंकि इंटेलिजेंनसी किसी एक की नहीं होती है । कई बार इस तरह की घटना से हम सोचते ज़रूर हैं कि ऐसा क्यों हुआ है रजत की बात भी सही हो सकती है ।हमारे मस्तिष्क में यह बात ज़रूर आ जाती है कि यह नियति नहीं तो और क्या है?

स्वरचित

के कामेश्वरी 

 साप्ताहिक विषय- #नियति

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