अबोध तीन वर्षीय अनिकेत समझ ही नही पा रहा था,कि उसके साथ ये क्यों हो रहा है?पापा बोले थे कि अन्नू देख ये तेरी नयी मम्मी।मम्मी शब्द सुन अन्नू चौंका, उसे लगा मम्मी आ गयी,पर ये तो कोई और है,इसीलिये उसमें कोई उत्साह नही हुआ।पापा ने अन्नू को फिर समझाया,
बेटा पहले वाली मम्मी तो भगवान के घर चली गयी,अब नही आयेगी, उसकी जगह भगवान ने इसको भेजा है।अन्नू ने सोच लिया जब पापा कह रहे हैं तो ऐसे ही होगा,सचमुच में उसकी मम्मी नये रूप में आ गयी है।फिर तो अन्नू उसे मम्मी मम्मी कहते हुए उस महिला से चिपट गया।
रणजीत और सुरेखा की शादी लगभग 5 वर्ष पूर्व हुई थी।एक वर्ष बाद ही उनके जीवन मे अनिकेत आ गया।पूर्ण रूप से समर्पित सुरेखा ने पूरे घर को संभाल लिया था।अनिकेत ने तो उन दोनों की दुनिया ही बदल दी थी।अनिकेत में उन्हें अपना भविष्य दिखायी देता तो वर्तमान में एक ऐसा खिलौना जिसने उनके जीवन मे खुशियां ही खुशियां भर दी थी।
उस दिन सुरेखा छत पर कपड़े सूखने को डाल कर वापस आ रही थी तो सीढ़ियों से फिसल गयी, सिर के बल गिरने के कारण सुरेखा के जीवन का वही सूर्यास्त हो गया।हँसते खेलते परिवार एक क्षण में ही बिखर गया।रणजीत की आंखों से आंसू थमने का नाम नही ले रहे थे,वह कभी आकाश की ओर देखता तो कभी अनिकेत की ओर।रह रह कर वह अनिकेत को अपनी बाहों में समेट लेता।अनिकेत इस त्रासदी को क्या समझे भला?
असली अग्निपरीक्षा तो आगे बाकी थी,जीवन यात्रा का संचालन तो अनिकेत का पालन।अनिकेत पूछता पापा मम्मी कहाँ है तो आंखों में भरे आंसुओ के साथ रणजीत कहता मेरे बच्चे वह तो भगवान के पास गयी है,जल्द ही आ जायेगी।अनिकेत ने तो पापा की बात मान ली,बस इतना कहा, जल्दी बुला लो मम्मी को।अचकचा कर रणजीत अन्नू को फिर अपने मे भींच लेता।
अनिकेत के कारण घर पर कभी बहन को या किसी रिश्तेदार को बुलाना पड़ता।परन्तु कब तक ऐसे चल सकता था।आखिर सबकी सलाह और सहमति से रणजीत को दूसरी शादी करनी ही पड़ी।
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नीलिमा से रणजीत ने बस एक ही बात कही,अनिकेत मेरे जिगर का टुकड़ा है,उसे पाल देना नीलिमा।मेरे घर को बसा देना ,बस मुझे कुछ और नही चाहिये।नीलिमा स्वयं वक्त की मारी थी,उसकी जिससे शादी हुई थी वह व्यभिचारी निकला।नीलिमा को मारता पीटता और बाहर मुँह मारता फिरता।
परिणीति तलाक पर हुई।रणजीत की बातचीत और साफगोई से वह प्रभावित हुई और उसने भी हामी भर दी।रणजीत और नीलिमा की आर्यसमाज में साधारण रूप में शादी सम्पन्न हो गयी।नीलिमा के साथ घर आकर रणजीत ने अनिकेत से यही कहा अन्नू देख तेरी नयी मम्मी।
समय चक्र फिर से घूमने लगा।नीलिमा ने पूरे मनोयोग से घर संभाल लिया था।वह अनिकेत का भी ध्यान रखती।पर उसे एक बात खलती थी कि यदाकदा अनिकेत अपनी मम्मी के बारे में पूछने लगता।कभी कभी वह अपनी मम्मी की याद में रोने भी लगता।
इससे नीलिमा झल्ला जाती,कभी कभी वह अनिकेत को डांट भी देती।नीलिमा के डांटने के कारण अनिकेत सहम जाता।उसकी बाल बुद्धि पर यह प्रभाव पड़ा जब वह मां की याद में रोता तो छुपकर,कही देखने पर नयी मां डांटने न लगे।
नीलिमा भी गर्भवती हो गयी।उसको भी पुत्र प्राप्ति हुई।अब अनिकेत को मुन्ना के रूप में एक भाई मिल गया था,वह खुश था।पर अब नीलिमा का व्यवहार अनिकेत के प्रति पूरी तरह बदल गया था।वह उसकी उपेक्षा करने लगी थी।लेकिन उसका असल व्यवहार रणजीत के सामने न आये,यह वह ध्यान रखती थी।धीरे धीरे बड़ा होता अनिकेत कुछ कुछ समझने लगा था।उसने इसी स्थिति को स्वीकार कर लिया।
अब पूरी तरह आत्मकेंद्रित हो गया था।अब वह अपनी माँ की याद को अपने ही सीने में दफन कर चुका था। माँ की जब भी याद आती तो चुपके से छत पर जाकर वह जोर से रो देता।एक दो बार उसे इस प्रकार रोते नीलिमा ने भी देख लिया पर उसने कोई प्रतिक्रिया प्रदर्शित नही की।अनिकेत मुन्ना के साथ अवश्य खेलता,उससे उसका लगाव हो गया था,आखिर भाई था उसका।
एक दिन नीलिमा छत पर कपड़े सुखाने गयी,तो उसके पीछे पीछे मुन्ना भी घिसट घिसट कर सीढ़ी चढ़ गया,अभी तो वह खड़ा होना भी नही सीखा था।मुन्ना के ऊपर चढ़ने का नीलिमा को पता भी नही चला।नीलिमा कपड़े सुखाने में व्यस्त रही,उधर मुन्ना छत पर सरकते हुए उस स्थान पर पहुंच गया जहां छत की बाउंड्री वाल टूटी हुई थी,
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वहाँ से मुन्ना नीचे झांकने लगा और अपना चेहरा आगे की ओर बढ़ाता चला गया।असंतुलन की स्थिति में मुन्ना जब पहुंचा तब नीलिमा की नजर उस पर पड़ी।नजर पड़ते ही वह जोर से चीख पड़ी मु—न—ना?इतने में ही मुन्ना नीचे सरक चुका था।इस दृश्य को देख नीलिमा गश खाकर वहीं गिर पड़ी।
होश आने पर नीलिमा ने अपने को अपने कमरे में पलंग पर लेटे पाया।वह मुन्ना के लिये चीखने ही वाली थी तो देखा कि मुन्ना तो अनिकेत की गोद मे है।एक गहरी सांस ले नीलिमा ने मुन्ना को अपनी गोद मे खींच लिया।ऐसी अनहोनी देख वह अनिकेत की ओर देखने लगी।तभी रणजीत जो संयोगवश उस दिन जल्द आ गया था,आगे बढकर बोला नीलिमा जानती हो अपने मुन्ना की जान अपने अन्नू ने बचाई है।मुन्ना को छत की मुंडेर पर नीचे से देख अन्नू तेजी से ऊपर की ओर भागा और उस मुंडेर के नीचे के समसेड पर खड़े होकर उसने मुन्ना को गिरने से पहले ही अपनी ओर खींच लिया।
इस अविश्वसनीय कार्य से अन्नू द्वारा मुन्ना की जान बचाये जाने से अभिभूत नीलिमा को अनिकेत से करते आयी दुर्व्यवहार को याद कर उसकी आंखें भर आयी।वह उठी और मुन्ना को रणजीत की गोद मे देकर वह अनिकेत का हाथ पकड़ उसे छत पर ले आयी।आकाश की ओर हाथ उठा कर आंखों से बहते आंसुओं के साथ बोली,सुरेखा मैं तेरी गुनाहगार हूँ, बहन,मुझे माफ कर देना।मैं ही अन्नू की माँ न बन सकी।सुरेखा देख मैं अब अपने अन्नू की माँ बन के दिखाउंगी।हाँ-हाँ, सुरेखा,अपने अन्नू की माँ बन के दिखाउंगी। मुन्ना को गोद मे लिये सीढ़ी के पास खडा रणजीत अपनी नम आंखों के साथ इस दृश्य को देख चुपचाप नीचे उतर आया।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित।
#पश्चाताप के आँसू साप्ताहिक विषय पर आधारित कहानी: