” रूचि….कहां चल दी सुबह सुबह…. ?? तुम्हें पता है ना आज दीदी और जीजा जी आने वाले हैं !!” रमन ने अपनी पत्नी को बैग में कपड़े डालते हुए देखा तो पूछ बैठा।
” हां…. मुझे पता है तुम्हारे बहन बहनोई आ रहे हैं…. लेकिन मैं कोई इस घर की नौकरानी नहीं हूं जो आए दिन सबकी हाजरी बजाती रहूं… मैं जा रही हूं अपने मायके । तुम और तुम्हारी मां संभालों अपने मेहमानों को।” रूचि चिल्लाते हुए बोली।
” देखो रूचि, तुम्हें जाना है तो जाओ लेकिन मेरी मां और बहनों का रोज रोज अपमान करने की जरूरत नहीं है। वैसे भी तुम घर में करती हीं क्या हो साफ सफाई कामवाली करती है और रसोई में सारा दिन मां हीं काम करती है ।” रमन भी झल्लाते हुए बोला।
” हां, हां, तुम्हें तो सारी कमी मुझमें हीं नजर आती है। और मैं क्यों करूं तुम्हारे घर का काम? बहू हूं कोई नौकरानी नहीं।”
” रूचि ये घर तुम्हारा भी है और अपने घर में सभी काम करते हैं। आखिर तुम कब इस घर को अपना समझोगी??” रमन ने समझाते हुए कहा लेकिन रूचि बिना कुछ सुने बैग उठाकर चल दी।
रमन बहुत परेशान हो चुका था रूचि की इस आदत से। शादी का एक साल हो चुका था। रूचि ना तो घर के काम करती थी और ना हीं किसी से सीधे मुंह बात करती थी। फिर भी हर वक्त एहसान जताती रहती थी कि जैसे रमन से शादी करके हीं उसने उसके और उसके परिवार के ऊपर एहसान कर दिया।
रमन रूचि से बहुत प्यार करता था लेकिन उसका ये रवैया उससे बर्दाश्त नहीं होता था। घर में रूचि कोई भी काम नहीं करती थी सारा दिन फोन पर बातें करती रहती या घूमने फिरने में वक्त बिताती रहती। आए दिन रूचि अपने मायके चली जाती थी। लेकिन इस बार रमन ने भी ठान लिया था कि रूचि की अक्ल ठिकाने लगानी हीं पड़ेगी।
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रूचि को मायके गए चार पांच दिन हुए थे कि एक दिन रमन अपने ससुराल पहुंच गया। सबने सोचा कि दामाद बाबू रूचि को लेने आए हैं लेकिन रमन ने आराम से दोनों वक्त का खाना खाया और आराम करने लगा। रूचि भी इंतजार कर रही थी कि रमन उससे वापस चलने को कहेगा लेकिन रमन बिना कुछ बोले सोने चला गया। रूचि के मम्मी पापा भी दामाद को इस तरह देखकर हैरान थे क्योंकि रमन कभी ज्यादा देर रूकता नहीं था।
सुबह भी रमन आराम से देर से उठा और छत पर टहलने लगा। चाय नाश्ता करके फिर आराम से टी वी देखने लगा। दूसरे दिन भी जब रमन ने वापस जाने की बात नहीं कही तो रमन की सास से रहा नहीं गया और वो बोल पड़ी, ” दामाद बाबू, आपको काम पर नहीं जाना क्या?? पहले तो हमेशा आप जल्दी में रहते थे लेकिन इस बार……. ,,
” मम्मी जी, वो मेरी नौकरी छूट गई है….. मां भी दो महीने के लिए मामा जी के यहां गई हैं …. अब मेरी पत्नी भी यहीं है तो मैंने सोचा मैं भी यहीं आ जाता हूं। मम्मी जी , आपको मेरे यहां रहने से कोई परेशानी तो नहीं….. ?? ,, रमन बड़ी सहजता से बोला।
रमन की नौकरी छूटने की बात सुनकर रूचि और रूचि की मां दोनों सकते में आ गई। रूचि तो रोने लगी कि पहले हीं रमन मेरे खर्चों पर कंजूसी करता था तो अब तो वो मुझे बिलकुल भी पैसे नहीं देगा। ऐसे बेरोजगार आदमी के साथ मेरा गुज़ारा कैसे होगा??
अगले दिन रमन के ससुर जी ने रमन को समझाते हुए कहा, ” दामाद बाबू, आपकी नौकरी छूट गई है तो इस तरह हाथ पर हाथ धरकर बैठने से काम थोड़े हीं चलेगा…. आपको दूसरी नौकरी ढूंढनी चाहिए। आखिर परिवार चलाने के लिए काम तो करना ही पड़ेगा…. ,,
” पापा जी , लगता है आपको मेरा यहां रहना अच्छा नहीं लगता। अरे आखिर ये मेरा ससुराल है यहां रहकर मुझे काम करने की क्या जरूरत है?? वैसे भी मैं बहुत थक गया हूं काम करते करते …. कुछ महीने आराम करना चाहता हूं जैसे आपकी बेटी अपने ससुराल में आराम से रहती है। ,,
रमन की बात सुनकर रूचि के पिता बिफरते हुए बोले, ” दामाद बाबू, हमें पता नहीं था आप इतने कामचोर और निठल्ले हैं… नहीं तो हम अपनी बेटी का हाथ आपके हाथ में कभी नहीं देते। ऐसा निठल्ला दामाद हमें नहीं चाहिए जो हमारी बेटी की जरूरतें भी पूरी नहीं कर सकता। ,,
” क्यूं ससुर जी, दामाद कुछ महीने काम धंधा छोड़कर आराम से अपनी ससुराल में नहीं रह सकता तो आपकी बेटी बिना कुछ किए हक जमाकर अपने ससुराल में कैसे रह सकती है.??? आपको निठल्ला दामाद नहीं चलेगा तो मेरे परिवार में निठल्ली बहू कैसे चलेगी?? ,,
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रमन की बात सुनकर सारे घरवाले एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। रूचि भी शर्मिंदगी से नजरें झुकाए खडी रही। रूचि के मम्मी पापा को भी इस बात का एहसास हो रहा था कि अपनी बेटी की गलतियों को बढ़ावा देकर उन्होंने अच्छा नहीं किया। यदि शुरूआत में ही बेटी को ये शिक्षा दी होती की अब ससुराल हीं तुम्हारा अपना घर है तो शायद रूचि यूं अपने ससुराल वालों को परेशान नहीं करती।
रूचि के पापा बोले, ” रूचि, रमन ठीक बोल रहा है। घर के सभी सदस्यों को मिलकर परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। तुम अगर बैठे बैठे सिर्फ हक जमाती रहोगी तो कभी किसी के दिल में जगह नहीं बना पाओगी। घर तो औरतें हीं संभालती हैं यदि तुम्हारी तरह रमन भी अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेगा तो तुम क्या करोगी?? बैठ कर तो एक बेटी भी नहीं खाती फिर तुम तो उस घर की बहू हो । अभी रमन के साथ वापस अपने ससुराल जाओ और अपना फर्ज निभाओ। ,,
आखिर उन्होंने रमन और उसके परिवार से माफी मांगी और रूचि को समझा बुझाकर उसके ससुराल वापस भेज दिया। रूचि की समझ में भी आ गया था कि बेटा हो या बहू गृहस्थी की गाड़ी चलाने के लिए अपनी अपनी जिम्मेदारी उठाना जरूरी है। नहीं तो कहीं भी उसे इज्जत नहीं मिलेगी।
लेखिका : सविता गोयल