राधा देख तेरे बापू ही हैँ ना वो ????
राधा अपनी आँखों को धूप में मिचमिचाती हुई,, अपने हाथों को माथे पर रख दूर तक देखती रही !
अरे हाँ री रूपा ,बापू ही आ रहे हैँ !
मैं चली घर जाकर व्यवस्था देखूँ ! कितने दिनों बाद आयें हैँ बापू ! बातें भी तो करनी हैँ उनसे ढेर सारी !
राधा गोबर के उपले वहीं छोड़ हाथ मुंह धोकर रूपा को हुक्म देती हुई चली गयी ,अब तू मेरे उपले धूप में सुखा देना और रात में पल्ली डाल देना !
जा जा ,बड़ी आयी मुझे हुक्म देने वाली ,जैसे इस से पहले तो मैने तेरे उपले रखे ही ना हो ! आज बापू आयें हैँ तो इतरा रही हैँ !
राधा हंसती हुई घर की और दौड़ चली !
जगवीर ( राधा का बापू )- ए री रूपा ,अभी तो राधा यहीं थी ,मैने दूर से देखा ! कहाँ चली गयी !
अरे चच्चा ,तुम्हे दूर से ही टूकुर टूकुर देख रही थी !तुम्हारी खातिरदारी करने के लिए घर गयी हैँ !
वो भी बांवरी हैँ ,क्या कोई बाप बेटी के घर का पानी भी पीता हैँ ,जो काम छोड़कर ही चली गयी ! मैं तो बस उसे एक नजर देखने भर आया था ,जगवीर जी खांसते हुए बोले ! तू तो ठीक हैँ ??
रूपा – हाँ चच्चा ,जबसे राधा ब्याह के हमारे गाम आयी तबसे एक मेरी वही तो सहेली हैँ जिस से अपना सुख दुख साँझा कर लेती हूँ !
जगवीर – हमाई राधा हैँ ही ऐसी ! खुश रह तू !
अपनी लाठी को टेकते हुए राधा के बापू राधा के द्वार पर पहुँचे ! और कूंढ़ी खटखटाने लगे !
अरे बापू ,द्वार खुला हैँ फिर भी खटखटाये जा रहे हो ! बेटी के घर भी क्या पूँछ के आओगे !
अपने बापू का हाथ खींचकर राधा उन्हे अंदर ले गयी ,चारपाई पर बैठा दिया !
जगवीर जी सोचने लगे अभी दो साल पहले ही तो राधा को सुमेश के साथ ब्याहा था ! 4 बेटियों में और दो बेटों में तीसरे नंबर की थी राधा ! पत्नी दस साल पहले ही राम को प्यारी हो गयी ! तबसे खुद ही माँ बने बच्चों के जगवीर ! सब बच्चें अपने बापू से बहुत प्यार करते थे ! कच्चा घर ज़िसमें पानी टपकता रहता था ! मजदूरी पर जाता जगवीर तो सब बच्चों को भी ले जाता ! पर मजदूरी किसी पर ना करवाता ! सब पास के सरकारी विद्यालय में पढ़ते ! फिर विद्यालय के बाद बच्चें बापू के पास आ जाते ! सबने कितना कहा दूसरा ब्याह कर ले जगवीर ! पर उसका वहीं जवाब ! बच्चों को तो कितनी मुश्किल से खिला पा रहा हूँ ! एक और आ गयी तो उसके लिए कहाँ से लाऊंगा !ना रे ना ,मेरे बच्चों को मीरा जैसा प्यार तो देगी नहीं वो ! अब तो बस बच्चें पढ़ जायें ,जीवन में कुछ बन जायें !
एकदम से पुल्ला की आवाज से जगवीर अतीत से वर्तमान में आया !
पुल्ला – ओ री राधा ,आज फिर सुमेश जमुना पार ओंधे मुंह पीकर पड़ा हैँ ,सब आवारा कुत्ते उसे चांट रहे हैँ !
राधा – तो तू यहाँ बताने आया हैँ ,जा रहा हैँ य़ा लगाऊँ घुमा के तुझे ! बड़ा आया मेरे सुमेश का हाल बताने वाला ! जब तक राधा ज़िंदा हैँ तब तक उसके सुमेश का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता ! चल भाग यहाँ से !
पुल्ला – पता नहीं तुझे क्या दिखता हैँ उस लफंगे में ! हम भी तो तेरे आशिक हैं ! तुझे रानी बनाकर रखूँगा !
राधा – ये देखी हैँ पांच नंबर की चप्पल ,एक पड़ी तो नजर नहीं आयेगा ! पिछली बार की मार भूल गया क्या !
जगवीर – ए री राधा ,मैं जाऊँ क्या उस नशेड़ी को टेरने ! कितना कहा तुझसे इस पियक्कड़ से ब्याह मत कर ! पढ़ने में कितनी होशियार थी मेरी राधा ! कितने सम्मान मिले तुझे ! कुछ बन जाती तो मेरी भी छाती चौड़ी हो जाती ! पर तू तो राधा हैँ ना ! अपनी धुन में मस्त ! प्रधान जी के छोटे कुंवर का रिश्ता भी ठुकरा दिया तूने ! महारानी बनके रहती उनके यहाँ ! मैं भी चैन की सांस लेके राम को प्यारा हो जाता ! मीरा को क्या मुंह दिखाऊंगा ऊपर जाकर !! साथ पढ़ने वाले इस काले गंवार में पता नहीं क्या दिखा तुझे ! कभी सुखी नहीं देखा मैने तुझे इसके साथ ! बाकी भी तो तेरी बहनें हैँ जो ससुराल में राज कर रही हैँ ! दिन रात तेरी चिंता खाये जाती हैँ ! इसलिये इस उम्र में भी लाठी टेकता तुझे देखने चला आया इस उम्मीद में कि शायद कुछ तो सुधार हुआ हो उस सुमेश में पर वही ढाक के तीन पांत !
राधा – बापू फिर कहें देती हूँ मेरे सुमेश के बारे में कुछ ना कहना ! मेरी जान बसती हैँ उसमें ! ले आऊँ उसे पहले ! फिर बताती हूँ आज सच्चाई तुझे बापू क्यूँ मैं इस सुमेश की दीवानी हुई जिस राधा की पूरी दुनिया दीवानी थी ! इतनी ठंड में पता नहीं किस नाले में पड़ा होगा वो ! अकड़ गया होगा !
ठीक हैँ मैं भी चलता हूँ उसे लेने तेरे साथ ! अकेले मत जा ! जगवीर बोला !
बापू ये तो मेरा रोज का हैँ तुम कब तक जाओगे मेरे साथ ! राधा हंस दी !
अपने बापू का हाथ पकड़ मस्ती से चल दी राधा सुमेश को लेने !
जैसे ही जमुना पार पहुँची तो सुमेश एक पोखर के किनारे उल्टा मुंह बेहोश पड़ा था ! राधा उसके पास गयी ! उसके चेहरे को अपनी गोद में लेकर अपनी शौल से बड़े प्यार से पोंछ रही थी ! उसके हाथों को सहला रही थी !
जगवीर अपनी बीटिया को ही निहारें जा रहा था ! मन ही मन सोच रहा था क्या ये उसकी वही राधा हैँ जो गंदगी से सख्त नफरत करती थी ! नाक बंद करके निकाल जाती थी ऐसी जगह से ! गांव के शराब पीने वालों को जमकर सुनाती ! पर आज देखो इसे कैसे पोखर के गंदे पानी से सने सुमेश को अपनी गोदी में लिटाये हैँ ! ऐसा क्या दिखा इस लड़के में इसे !
राधा – ओ बापू ,कौन सी सोच में ड़ूबे हो ! ज़रा मदद करो ! एक तरफ तुम पकड़ो एक तरफ मैं ! ज़रा देख के हाथ में लग ना जायें
मेरे सुमेश को !
घर आकर सुमेश के कपड़े बदलकर उसके हाथ मुंह पोंछकर सुला आयी राधा !
जल्दी से चुल्हे पर हांडी में दाल रख दी बनाने को राधा ने !
राधा – बापू ,कल से भूखा हैँ सुमेश ! उसके लिए खाना बना दूँ ! खाना बनाते हुए राधा अपने बापू से बताती जा रही ! बापू आज मैं तुम्हे पूरी सच्चाई बताती हूँ ! याद हैँ बापू जब नीता जीजी उस रात रोती हुई आयी थी ,हम सब यहीं सोचें कि उनके साथ कोई अनहोनी हुई हैँ ! सच में बापू हम सब कितना घबरा गए थे ! जीजी ने तो आपके डर से इतना भर कह दिया था की कुछ नहीं बापू काम से आते बख्त गली के 4-5 कुत्ते पीछे पड़ गए थे ,बस जैसे तैसे जान बचाके आयी मैं ! आप तो वैसे ही भोलेनाथ ! कुछ ना समझ पायें ,जीजी की बात पर विश्वास कर लिए ! पर मैं जीजी को जानती थी ,वो कुछ तो छुपा रही थी ,पूरी रात जीजी सोयी ना ! करवट ही बदलती रही !
अगले दिन सुबह मैं अपने स्कूल ना गयी ! सीधा जीजी के पीछे उनकी काम वाली जगह पर चली गयी ! जीजी को भनक भी ना लगने दी कि मैं उनके पीछे आ रही हूँ ! देखती क्या हूँ ! जीजी हम सबसे झूठ बोलकर कि मैं कंप्यूटर का काम करती हूँ दुकान पर ! पर वो तो एक कोठे पर नाच गाना करने जाती थी ! वहाँ जाकर कपड़े बदलती ! तैयार होकर नाच गाना करती थी जीजी ! इतने पैसे लेकर आती ! हम सोचते हमारी जीजी पढ़ लिखकर अच्छा काम कर रही हैँ ! मैं जीजी का ऐसा रुप देखकर चौंक गयी ! जमींदार के तीनों बेटे और वहाँ मौजूद सभी आदमी जीजी पर पैसे उड़ा रहे थे ! जीजी रोते रोते नाचती जा रही ! मुझसे ना रहा गया बापू ! पर्दे के पीछे से निकल मैं जीजी के पास गयी और उनको पकड़कर चिल्लाने लगी – ये क्या कर रही हो जीजी ! कुछ इज्जत तो रखो बापू की ! जीजी ने मुझे एक थप्पड़ जमा दिया ! बोली – तू जा घर ,यहाँ कैसे आयी तू ,घर आकर तुझसे बात करती हूँ ! मैं भी अड़ गयी कि जीजी तुम्हे लेकर ही जाऊंगी और कल से तुम्हे ना आने दूंगी यहाँ ! इतना सुनते ही जमींदार के बेटे ने मेरा हाथ पकड़ लिया ! गुस्सा होने लगे मुझ पर ! बोले – ए री राधा ! तू तो हमारी जान हैँ ,य़े हमारा छोटू तो तेरा दिवाना हैँ ! अब से तू हमारा मनोरंजन करेगी ! मुझे और जीजी को घसीटकर अंदर कमरे में ले गए ! उस दिन अगर नीचे से जाता सुमेश मेरी आवाज ना पहचानता बापू तो शायद आज तुम्हारी नाक बिरादरी में कट जाती ! सुमेश ने आकर उन नशे में धुत जमींदार के बेटों की अच्छे से धुनाई की ! और उनसे बोला अगर जीजी और मेरी यहाँ आने की बात गांव में किसी को बताई तो ज़िंदा नहीं बचोगे ! प्रधान जी की गांव में इज्जत हैँ ! मेरे गांव के भी वहीं प्रधान हैँ ! कुछ ऊगला तो तुम्हारे सब काले कामों का चिठ्ठा खोल दूँगा ! फिर तुम्हे भी बड़े कुंवर जी की तरह जायदाद से बेदखल कर देंगे ! समझे क्या ! उस दिन तो जमींदार के बेटें माफी मांग कर चले गए बापू ! पर उनके मन में क्या चल रहा था किसी को भनक ना लगने पायी !
सुमेश नौकरी का पेपर देने दिल्ली गया था ! पीछे से जमींदार के कमीने बेटों ने मिलकर रात को सुमेश के माँ बापू का गला रेत दिया ! वो माँ बापू जो सुमेश की नौकरी का सपना लेकर ही राम को प्यारे हो गए ! सबको लगा दोनों ने तंगी में आकर आत्महत्या कर ली हैँ ! पर सुमेश सब जानता था ! मेरा सुमेश ये सदमा बर्दाश्त ना कर पाया ! दिन रात नशे में रहने लगा ! सिर्फ मुझसे ही बात करता था ! सबसे बात करना बंद कर दी इसने ! मैं तेरी बेटी हूँ बापू जो किसी का कर्ज नहीं रखती !मेरी और जीजी की इज्जत के कारण मेरे सुमेश का ये हाल हुआ ! इसलिये मैने प्रण कर लिया सुमेश को जीवनभर अकेला नहीं छोडूँगी भले ही कितने ही कष्ट झेलने पड़ जायें तुम्हारी राधा को ! अब बता बापू मैने क्या गलती करी ! क्या ईश्वर मुझे माफ करता अगर मैं इसे ऐसे हाल में छोड़ देती ! बहुत सच्चा आदमी हैँ मेरा सुमेश ! कभी नशे की हालत में भी किसी औरत की तरफ गलत निगाह नहीं डालता ! बस मुझे ही पुकारता रहता हैँ ! कई बार मेरे समझाने पर इसने शराब को हाथ भी ना लगाया ! पर उसी दिन रात को अपने माँ बापू को याद करके कांपने लगता हैँ ! खुद को चोट पहुँचाता हैँ ! कहता हैँ अगर राधा मैं पेपर देने ना जाता तो शायद माई बापू ज़िंदा होते ! तू ही बता बापू मैं कहाँ गलत हूँ !
जगवीर – धन्य हैँ मेरी राधा ,धन्य हैँ तेरा सुमेश ! तूने तो राधा नाम को सार्थक कर दिया री ! सुमेश का तो ऋण मैं अभागा सात जन्म में भी नहीं चुका सकता ! टू तो सच में सुमेश की दीवानी हो गयी जैसे द्वापर में राधा ने अपना सब कुछ कन्हैया को सौंप दिया ! तूने सुमेश को !
जगवीर की आँखों से आंसू झरने की तरह बह निकले ! जा अपने सुमेश को रोटी खिला !
जगवीर अपनी लाठी लिए कंपकपाते हाथों से द्वार से होता हुआ सुमेश राधा को आशिर्वाद देता चला गया ! शायद आज वो निश्चित होकर जा रहा था !
समाप्त
राधे राधे
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा