निशीगंधा – अनु मित्तल “इंदु”

बात उन दिनों की है जब मैं M.A.Eng करने के लिये अमृतसर आई थी । उन दिनों मैं बेरी गेट में D.A.V.college of Education के होस्टल में रहती थी

M.A.का मेरा सेकेंड year था । मैं अपने रूम में एक रात अपने exam की तैयारी कर रही थी । रात के 12बजे का टाईम था । तभी मुझे लगा कि कमरे के रोशन दान में से कोई झाँक रहा है ।

मैंने आवाज़ दी ‘ कौन है ‘ मगर वो लड़की  भाग गई ।अंधेरे के कारण मैं पहचान नहीं पाई। दरवाजे से बाहर आकर देखा तो उसके सूट का किनारा सा दिखाई दिया ।

मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि अगर भागना था तो आई क्यूँ थी । ख़ैर ..अगली सुबह जब नाश्ते के लिये हम सब mess में इकट्ठे हुये तो मैंने सूट से उस लड़की को पहचान लिया ।वो निशी थी।निशी भी उसी hostel में रहती थी मगर दूसरे wing में।

वो दीनानगर  से आई हुईं थी। वो B.Ed .कर रही थी और मैं postgraduation.हम दोनों के college अलग अलग थे मगर hostel एक था।



मैंने बाहर आकर उस लड़की को रोक कर पूछा …”निशी ,क्या तुम रात को मेरे कमरे पे आई थी “, उसने कहा “हाँ “

तो मैंने उससे कहा कि फिर मिली क्यूँ नहीं , वो कहने लगी” मैं तो सिर्फ तुम्हें देखने आई थी “…मुझे कुछ हैरानी सी हुई कि मुझे देखने क्यूँ आई थी ..

उसने कहा ” मुझे अच्छा लगता है तुम्हें देखना “, उसने बताया ” मैं तो रोज़ तुम्हें देखने आती हूँ , क्या तुमने ग़ौर नहीं किया कि जब तुम कॉलेज जाने के लिये होस्टेल के gate से बाहर निकलती हो तो मैं रोज़ वहाँ gate पर तुम्हारे आने का इंतजार कर रही होती हूँ , मैं सिर्फ तुम्हें देखने के लिये अपनी B.Ed .की क्लास मिस करके रोज़ आती हूँ “।

मुझे बहुत दिलचस्प लगी उसकी बातें , मगर किसी लड़की का लड़की के लिये ऐसा आकर्षण मेरी समझ में नहीं आया ।

उसकी आवाज़ कुछ भारी थी और चेहरे पर छोटे छोटे बाल भी थे। मुझे उसमें कोई interest नहीं था लेकिन वो मेरा इतना ध्यान रखती थी कि वो मेरी दोस्त बन गई।

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उसने मुझे बचपन में अपने दादा द्वारा child abuse का किस्सा भी बताया।एक दिन उसके दादा की मृत्यु हो गई।उसके घर से उसके चाचा उसे हॉस्टेल से लेने आये मगर वो नहीं गई।

उसके बाद वो अक्सर मेरे कमरे में आने लगी । मुझे प्यार से वो”सोना”कहकर बुलाती थी।मेरा बहुत ध्यान रखती , मुझे बादाम छील छील कर खिलाती । एक रात को मैं exam की तैयारी कर रही थी , निशी भी अपनी कुछ किताबें ले कर पढ़ने बैठ गई । 

मुझे नींद आ रही थी लेकिन निशी ने मुझे और पढ़ने के लिये जोर दिया । उसने कहा कि 2 बजे तक पढ़ो , मैं भी पढ़ती हूँ ।

इतना कह कर वो रजिस्टर में कुछ notes बनाने लगी । मैंने एक घंटा और पढ़ा , लेकिन मैं नींद से बेहाल थी , मैंने उससे रजिस्टर छीनते हुये कहा कि लाइट बन्द करो मुझे सोना है ।

जब मैंने उसका रजिस्टर देखा तो उसने सारे pages पर छोटा छोटा करके “सोना” , सोना  सोना लिखा हुआ था । मैंने पूछा “निशी, यह सब क्या है” तो वो रोने लगी।तुम नहीं समझ पाओगी” उसने कहा।

exams के बाद हम सब अपने अपने घरों को चले गये । मैं जॉब करने लगी।उसकी मुझे कोई ख़बर नहीं मिली। उसके बाद कभी मिल नहीं पाये । उन दिनों मोबाइल नहीं थे , हमारे घर में phone भी नहीं था ।

इस बात को इतने  साल बीत गये। आज़ जब इतना कुछ इस बारे में पढ़ चुकी हूँ तो उसका मेरे लिये आकर्षण समझ में आता है। उस वक्त समझ नहीं पाई।मगर मेरे जेहन में यह घटना आज़ भी ताज़ा है । 

अनु मित्तल “इंदु”

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