“हेलो शमिता! “
“ हाय तारा!”
“ कैसी हो शमिता ..”
“ फिट एंड फाइन यार! तुम बताओ कैसे हो ??”
“ मैं एकदम ठीक हूँ, पर शायद तुम ठीक नही हो…, रो रही थी क्या??आवाज़ में भारीपन है…”
“ अरे! नहीं यार..बस… ऐसे ही …।”
“अच्छा रुक शाम को ‘इंडिया हैबिटेट सेंटर’ में मिलते है, बहुत दिन ही गए…”
“नहीं ..यार फिर… कभी “
“ नो… मुझे आज ही मिलना है तुमसे बस।”और तारा ने फ़ोन काट दिया ।
शमिता ने रोते हुवे फ़ोन रख दिया और धम्म से सोफे पर बैठ गई ।
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बहुत देर तक ऐसे ही बैठी रही और रोते हुवे अपने मृत पति की फोटो को देखने लगी…और बोली…” मुझे किस मझधार में छोड़ के चले गए आप… और फफक -दफ़क कर रोने लगी… नित्य का यह हो गया था कि… बच्चे कुछ ना कुछ ऐसा बोल देते… जिससे… शमिता का दिल ज़ख़्मी हो जाता…उसे इस बात का पछतावा होता कि… उसने अपना घर बेच कर बच्चों के साथ रहने आ गयी ।गलती नहीं थी फिर भी… उसे बच्चों की कोई आदत या बात बुरी लगती तो वो एक माँ के नाते बोल देती या टोक देती.. फिर क्या.. सब बदज़ुबानी करते और वो टूट जाती..
सोमेश जब जीवित थे तो ऐसा नहीं था या फिर बच्चे बाहर ही पढ़े-लिखे तो साथ भी जल्दी छूट गया था और वो पति सोमेश की जॉब के चलते कहीं जा भी ना पाती थी।
सोमेश के अचानक चले जाने से वो एकदम डिप्रेश हो गई थी … उस समय जिसने जो कहा वी करती गयी अपना कोई डिसीजन दे ही ना पायी और यहाँ बच्चों के साथ आ गयी… कुछ दिन तो ठीक रहा पर इधर एक साल से वच्चों की आदते कुछ अच्छी नहीं लगी तो… माँ होने की वजह से टोक देती थी ।
यहाँ एक दिन बाज़ार में तारा से मुलाक़ात हुई और फिर सुबह-शाम टहलने वक्त एक दो मुलाक़ात और होने पर पता चला कि..वो बगल वाली सोसाइटी में रहती थी है और एक स्कूल की प्रिंसिपल है ।एक साल में ही उससे एक अच्छी दोस्ती हो गयी.. वो हमे बहुत समझाती और उसी ने हमे दुनियादारी सिखायी… उसके भी पति नहीं थे .. तो वो सारा काम करती और हमे भी सिखाती ।
मैं भी धीरे-धीरे आत्मनिर्भर हो रही थी … अब पेंशन भी मिलने लगी थी तो… मैं अब बोझ नहीं बनाना चाहती थी किसी पर ..बेटा-बहू और बिटिया-दामाद … सबकी मंशा भी समझती थी।केकिन फिर भी सोचती और कौन है मेरा इन सबके अलावा …
“ कितना और सुनोगी सबकी बकवास… बस बहुत हो गया… बहुत जी चुकी अपबे बच्चों और परिवार के लिए… अब अपने बारे में सोचो और आगे बढ़ों शमिता!”
“ हाँ तारा आज तो पानी सिर से ऊपर हो गया यार! मेरे बच्चे मुझसे कहते है कि… ‘ आपको भी पापा के साथ मार जाना चाहिए था ।’ क्या मैं इतनी बुरी हो गई उनके लिये???? बहुत खुला हाथ है आपका… , बहुत खर्च करती है आप…. आपके रहते हमे कैब करनी पड़ती है बच्चों के स्कूल के लिए…आप एक काम भी ठीक से नहीं करती…”
….कुछ देर सन्नाटा….
बस.. अब बहुत हो गया…आख़िर… कब तक …
#निर्णय तो लेना ही पड़ेगा तुम्हें शमिता….कबतक अपना आत्मसम्मान खो कर जियोगी शमिता… आख़िर कब तक?????
संध्या सिन्हा