निर्णय – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

श्रद्धा ने राहुल को बहुत समझाया था, जल्दबाजी में कोई निर्णय मत लो।  मगर जैसे राहुल पर कोई भूत सवार था। वह श्रद्धा की कोई बात नहीं मान रहा था। श्रद्धा समझा-समझा कर थक चुकी थी।

वह बिल्कुल नहीं चाहती थी कि राहुल जल्दबाजी में कोई भी निर्णय ले और फिर पछताए। 

श्रद्धा और राहुल दोनों बहुत अच्छे मित्र थे । स्कूली पढ़ाई से लेकर कॉलेज और उसके बाद एक ही कंपनी में जॉब लगभग 12 वर्षों का उनका साथ था।

साथ रहते-रहते कब अच्छे मित्र से और ही करीबी रिश्ते की और बढ़ चले पता ही ना चला। 

दोनों को जॉब करते हुए 2 वर्ष हो चुके थे। श्रद्धा चाहती थी कि अब उन्हें शादी का निर्णय ले लेना चाहिए।   राहुल को उसके इस निर्णय से कोई एतराज नहीं था। मगर दोनों के मध्य एक समस्या आन खड़ी हुई थी।

राहुल के सर पर जॉब छोड़कर छोड़कर नया स्टार्ट अप करने का भूत सवार था। श्रद्धा उसे पिछले कई महीनो से यह समझाने का प्रयास कर रही थी इस स्टार्टअप के लिए जॉब मत छोड़ो। स्टार्टअप चाहते ही हो तो जॉब के साथ-साथ करो। कहीं ना कहीं श्रद्धा को यह स्टार्ट अप सफल होगा इसमें संशय था। उसने राहुल को कई कारण बताए थे मगर राहुल एक भी मानने के लिए तैयार नहीं था।

श्रद्धा राहुल को यह समझाने का प्रयास कर रही थी कि   स्टार्ट अप में सफल न भी हुए तो भी जॉब तो हाथ में रहेगी। श्रद्धा को लगता था की जीवन का सबसे महत्वपूर्ण एवं गंभीर निर्णय वे लोग अब लेने जा रहे हैं उसमें राहुल का जॉब छोड़ देना बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा। मगर राहुल को लगता था कि वह दोनों काम एक साथ नहीं कर पाएगा। वह अपना 100% अपने स्टार्टअप को देना चाहता था। 

बस दोनों के मध्य इसी विषय को लेकर आए दिन बहस होती रहती थी। 

श्रद्धा को लगता था कि राहुल समझ जाएगा। मगर नहीं राहुल ने तो ठान लिया सो ठान लिया। आज अचानक उसने ऑफिस में रिजाइन दे दिया इस बारे में उसने श्रद्धा से घर पर कोई बात नहीं की थी। 

उन दोनों के मध्य इसी बात को लेकर तीखी बहस छिड़  गई थी।

राहुल चाहता था कि उसके इस निर्णय में श्रद्धा उसका साथ दे। मगर श्रद्धा चाहती थी कि राहुल उसकी भी बात माने जॉब ना छोड़े। 

इसके लिए आज उसके रिजाइन करने पर श्रद्धा बहुत दुखी हुई। श्रद्धा  ने भी राहुल को कह दिया कि जिस तरह तुमने अपना फैसला ले लिया है मैंने भी अब एक फैसला ले लिया है। 

तुम आज मेरे किसी फैसले का सम्मान नहीं कर रहे हो जिंदगी भर क्या करोगे ?? क्या हर समय अपने फेसले मुझ पर थोपते रहोगे। मुझे लगता है अपनी शादी के निर्णय के बारे में हमें फिर से सोचना होगा। 

राहुल को श्रद्धा के ऐसे निर्णय की बिल्कुल भी अपेक्षा नहीं थी।  राहुल “टका-सा मुंह लेकर” उसे देखता रह गया। श्रद्धा अपना बैग लेकर जा चुकी थी। राहुल को लगा था कि श्रद्धा थोड़ा सा नाराज होगी मगर मान जाएगी।

श्रद्धा को जाते देखकर उसे ऐसा लगा जैसे अचानक किसी ऊंचाई से वह नीचे आ गिरा हो। जॉब तो हाथ से गई ही, श्रद्धा ने भी उससे अलग होने का निर्णय ले लिया। अब अचानक उसे अपने निर्णय पर पछतावा हो रहा था। उसे लग रहा था कि उसे श्रद्धा की बात मान लेनी चाहिए थी। 

जीवन में बहुत जरूरी होता है कि हम अपने सारे निर्णय सोच समझकर एवं सही समय पर ले। 

अपने निर्णयों का अपने परिवार पर क्या प्रभाव होगा या उनकी सहमति है या नहीं इस बात का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है।

स्वरचित 

दिक्षा बागदरे 

#टका-सा मुंह लेकर रह जाना

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