निर्भर – अनुज सारस्वत

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“मैं नहीं जाऊंगी अकेले कचहरी आप आजाओगे तभी जाऊंगी मुझे कुछ समझ नही आता कोई भी पागल बना देगा मुझे “

सुरभि ने आकाश से फोन पर कहा

आकाश समझाते हुए बोला

“अरे पागल हो क्या एक एफिडेविट ही तो बनवाना है पासपोर्ट के लिए, देखो मैं अगर इन छोटे मोटे कामों के लिए आफिस से भागता रहा तो कर ली नौकरी मैने ,इतना डरोगी तो सीखोगी कैसे ,जाओ मुझे नही पता बनवाना है पासपोर्ट तो जाओ वरना रहने दो”

इतना कहकर फोन काट दिया आकाश नेअब सुरभि के सामने दुविधा शादी को दो साल ही हुए थे इलाका सारा नया था

गई फिर भी डरते डरते ,उसे लग रहा था सब उसे ही घूर रहे हैं जैसे तैसे काम निपटाकर घर पहुंची ,डर थोड़ा खुला

आकाश ने आने के बाद बहुत तारीफ की और दो-चार काम भी बता दिए, राशन ,बिजलीघर और तहसील के जो पेंडिग थे काफी दिनों से अब सुरभि मरती क्या ना करती वो भी किये ,धीरे-धीरे बह सारे काम करने में लग गई,आकाश को अब किसी काम के लिए नही बोलती यहां तक स्कूटी, कार भी खुद चलाना सीख गई थी और तो और सर्विस भी अपने सामने खड़े होकर कराती अपने वाहन की । अपने खाली टाईम को उपयोग में लाने के लिए ट्यूशन शुरू कर दिए थे

आकाश बहुत खुश था और बेफिक्र भी।

एक दिन आफिस से फोन आया आकाश के दोस्त का


“भाभी जी आप तुरन्त हास्पिटल पहुंचाये आकाश को दिक्कत हुई है”

बदहवास सुरभि अपने 6 महीने का गर्भ लेकर पड़ोसन के साथ पहुंची तो देखा आकाश का एक्सीडेंट हुआ था और वो अंतिम सांस गिन रहा था जैसे उसकी आत्मा सुरभि का इंतजार कर रही हो मुक्त होने के लिए उसने कांपती हुई उंगली से उसके गर्भ को छुआ और मुस्कराकर संसार से विदा हो गया।

अचानक सुरभि को किसी ने झकझोरा

“मम्मी मम्मी कहां खो गई चलो कचहरी

मुझे अपने कोलेज के लिए काम है “

सुरभि ने कहा बेटा तुम बड़ी हो गई हो खुद करो सारा काम तुम्हारे पापा ने कैसे मुझे सिखाया और हमेशा कहते थे मै नही रहूंगा तो भी तो सीखेगी न ,और मै उनके मुंह पर हाथ रख देती थी , वो अपनी पत्नी को आत्मनिर्भर बनाकर चले गये अब बेटी का फर्ज है कि नहीं वो खुद पापा की बेटी बनें।वो हमेशा कहते सहारा हमेशा कमजोर लेते हैं”

सुरभि की सामने सारा मम्मी का जीवन उतर आया कि कैसे निडर रहते हुए उसकी मम्मी ने अकेले उसे पाला और दूसरी शादी भी नहीं की।

मम्मी से पापा की सारी बातें सुनकर

सुरभि की आँखे चमक उठी और मन से डर साफ हो चुका था

फिर उसने अपनी

जोश में भरकर अपनी स्कूटी चेतक की तरह दौड़ायी और रानी झांसी का रूप लिए निडर होकर सारे काम करें।

क्योंकि अब वो निर्भर नहीं थी।

-अनुज सारस्वत की कलम से

(स्वरचित)

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