नीलांजना ( भाग-9 ) – रश्मि झा मिश्रा  : Moral Stories in Hindi

नीलांजना ने आगे कहना शुरू किया …

” मैंने अस्पताल से घर में फोन किया था… मैं नागार्जुन से शायद सब कह देती उसी दिन…

मगर फोन मेरी अम्मा… अंकिता की दादी ने उठाया था…

नागार्जुन तब तक घर नहीं आए थे… अम्मा ने अंकिता की हालत सुनने के बाद… मुझे घर आने से मना कर दिया…

वैसे तो मेरे पास पैसे खत्म होने को थे… फोन से सब मैनेज हो रहा था… तो फोन ही गुम हो गया…

सारे अकाउंट अर्जुन ने फ्रिज कर दिए…

ऐसे में कहीं बाहर रहना हमारे लिए मुमकिन नहीं था.…

अम्मा ने ही सलाह दिया कि मैं कोलकाता आ जाऊं…

यह घर पिछले कई सालों से बंद पड़ा था.… यहां कोई आता जाता नहीं…

अम्मा ने कहा…” जब तक अंकिता नागार्जुन का सामना करने लायक ना हो जाए… उसे यहां सुरक्षित रखो…!”

और कुछ जानना चाहते हो अभिनव दत्ता… या हो गई तुम्हारी जांच पड़ताल…!”

अभिनव ने फोन उठाकर कुछ इधर-उधर घुमाना शुरू किया… तो नीला ने दुखी स्वर में धीरे से पूछा…

” क्या कर रहे हो… नागार्जुन जी को बता रहे हो…

हां सही है… तुम्हारा तो काम ही है यह… इसमें तुम्हारी कोई गलती भी नहीं…

ठीक है बता दो… बुला लो उन्हें… पैसे भी तो मिले होंगे…

मैं तो कुछ दे भी नहीं सकती…!”

” अरे नहीं मैम… अगर उन्हें बुलाना होता… तो मैं चार दिन पहले ही उन्हें बता चुका होता.…

मेरे लिए पैसा या काम से ज्यादा जरूरी इंसानियत है…

इंस्पेक्टर सुधीर भी इस केस में लगे हुए हैं… उनसे भी बात नहीं हुई…  उनके कई मैसेज पड़े हुए हैं उन्हीं को रिप्लाई कर रहा हूं…

वरना ऐसा ना हो कि आपको ढूंढने के बदले में मुझे ढूंढना शुरू कर दें…

आप मेरी तरफ से निश्चिंत रहिए… मुझे जितना हो सकेगा आपकी मदद करने की कोशिश करूंगा…!”

उधर से आते हुए शांभवी हंसकर बोली…” पहले खुद की मदद तो कर लीजिए भैया…!”

नीला ने घूम कर आंखें तरेरी… तो वह झेंप गई… फिर बोली…

” वह मां दीदी पूछ रही है… और कुछ बनाना है या नहीं…!”

“नहीं हो गया.… और सुनो बेटा… अगर कुछ दिक्कत आए पढ़ने में… तो भैया से पूछ लेना… यह तुम्हारी मदद करेंगे… है ना…!”

अभिनव खुश होकर बोला…” हां हां जरूर… मेरा भी मन लगेगा.…

जब तक खुद की मदद ना कर पाऊं… तुम्हारी मदद ही कर लूंगा…क्यों ये होगा ना…!”

शांभवी हंसते हुए भाग गई…

***

जब से अंकिता यहां कोलकाता आई थी… यहां उसे हर तरह से आजादी का एहसास मां की तरफ से मिला था.…

नीला ने घर में कदम रखते ही अंकिता से कहा…”देखो बेटा… मैं जानती हूं मैं तुम्हारे लिए कभी कुछ नहीं कर पाई… मगर अब मैं तुम्हारे साथ हूं… तुम्हें जिसमें खुशी मिले…जैसे जी चाहे… दिल खोल कर जियो…!”

” पर पापा…!”

” उनकी चिंता मत करो… तुम जिस दिन उनका सामना करने को… दिल से तैयार हो जाओगी… हम तभी वहां जाएंगे…!’

अंकित के लिए यह संबल बहुत बड़ा था.…

घर में सारी जरूरत की चीजों की व्यवस्था नीलांजना ने… वहीं थोड़ी दूर पर रह रही… अपनी एक पुरानी सहेली की मदद से कर लिया था…

वह नीला की बचपन की सहेली थी…  नीला तो कभी यहां आई ही नहीं थी… पर इतना जानती थी कि सुभद्रा का ब्याह यहीं इसी गांव में हुआ है…

आज मौके पर सुभद्रा ने बहुत साथ दिया… उसके यहां रहने से नीला को बहुत सहारा मिल गया था…

***

नागार्जुन अपनी दुनिया में अभी भी कैद थे…

रोज की दिनचर्या में… बस एक काम जुड़ गया था…

अभिनव दत्ता को फोन करना… बाकी सब कुछ यथावत था…

अम्मा भी चुपचाप अपने कमरे में बाकी दोनों की तरह ही पड़ी रहती…

उन्हें तो सब पता था कि बच्चे कहां हैं… तो उन्हें किस बात की चिंता थी…

उन्होंने तो वहां खुद बात कर… नीला के लिए घर को साफ करवा… उसके पास पैसों का इंतजाम भी करवा दिया था…

वह भी अपने बेटे की व्यस्त जिंदगी से काफी परेशान थी…

ऊपर से अंकिता के साथ बेटे का बर्ताव उन्हें कभी नहीं भाया…

इतने दिन हो जाने के बाद भी… मां का इस तरह ख़ामोशी से अपने आप में लगा रहना… नागार्जुन जी को अब खटकने लगा था…

एक दिन अचानक नागार्जुन राय… मां के कमरे में जाकर… उनके सिरहाने खड़े हो गए…

” मां क्या तुम जानती हो… नीलांजना और बच्चे कहां हैं…!”

अचानक आए सवाल से अम्मा घबरा गई…

” मैं कैसे जानूंगी… तेरे बीवी बच्चे तुझे नहीं पता… तो मैं कैसे जानूं…!”

” आप नहीं जानतीं… तो आप इतने आराम से कैसे हैं…!”

” आराम से ना रहूं… तो क्या करूं…दौड़ूं …भागूं …रोऊं…चिल्लाऊं… क्या करूं…

जिसके पत्नी बच्चे हैं… वह तो आराम से अपना व्यापार चला रहा है… मैं यहां जान दे दूं…

तू तो लगा हुआ ही है ना… मिल जाएगी तो बता ही देगा… और घूम के यहीं ना आएंगे…

खुद तो तुम्हें बड़ी फिक्र हो रखी है… जो एक दिन काम पर जाना नहीं छोड़ा…

ढूंढने के लिए लोग लगे ही हैं… तो तू जाकर क्या करेगा…

जब तू कुछ नहीं करेगा… तो मैं क्यों अपनी नींद हराम करूं…!”

नागार्जुन झटका खा गया…

ठीक ही तो कह रही थी मां… पर ढूंढे तो ढूंढे कहां…

लेकिन इतना तो उसे फिर भी लग ही रहा था… की मां को पता है… वरना इतने आराम से लड़ने की बजाय… रोना गाना शुरू हो जाता इसका…

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रश्मि झा मिश्रा

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