…अभिनव को अधिक इंतजार नहीं करना पड़ा…
अगले दिन सुबह ही निधि ने फोन किया…
” भैया शांभवी का मैसेज आया था… रात को… दरअसल वे यहां हैं ही नहीं…
उसने लिखा… कि उसकी मदद कोई नहीं कर सकता… वे कोलकाता आ गए हैं…!”
” ठीक है निधि… अब तुम छोड़ दो… तुम्हारा बहुत शुक्रिया… मैं देखता हूं… मैं क्या कर सकता हूं…!”
इतना कह कर अभिनव दत्ता तुरंत अपना सामान पैक कर… होटल से चेक आउट कर गया…
बेंगलुरु से सीधा… फ्लाइट लेकर दत्ता कोलकाता पहुंच गया…
इसी बीच उसने… शांभवी के मोबाइल की लास्ट ओपन लोकेशन… ट्रेस करने के लिए अपने मित्र ज्ञान को भेज दी…
कोलकाता पहुंचते पहुंचते ही पहला जो मैसेज आया… वह उसके मित्र ज्ञान का था.…
ज्ञान ने लोकेशन ट्रेस करके भेज दिया था…
अभिनव ने बिना देर किए… उस तरफ अपनी कार दौड़ा दी…
लगभग 4 घंटे के थकाऊ सफर के बाद…
वह एक निहायत ही पिछड़े गांव में पहुंचा…
यहां तो दिन में ही रात जैसा महसूस हो रहा था…
पक्की सड़क खत्म होने के बाद… गाड़ी ने आगे जाने से मना कर दिया…
अंदर रोड की हालत बहुत ही खराब सी दिख रही थी…
अभिनव ने उससे आगे पैदल ही जाने का विचार कर…
अपने एकमात्र बैग को अपनी पीठ पर टांगा…
जूते की लेस को कसकर बांध…
हाथ में मोबाइल ले लोकेशन की पहचान करता… आगे बढ़ने लगा…
उसे ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ा…
लगभग दस मिनट बाद ही…
वह एक बड़ी सी खंडहरनुमा हवेली के पास खड़ा था…
उसके मेन गेट पर बड़े-बड़े अक्षरों में बोर्ड पर लिखा था…” राय निवास”…
क्या मतलब था इसका…
तो क्या नीलांजना राय… अपने ही घर में थी.…
उनका भी सरनेम तो राय ही था…
आसपास उसी तरह के दो चार खंडहर और थे…
सब में ताला जड़ा था…
थोड़ा हटकर… नए बने छोटे-बड़े घर… झोपड़ी… सब दिख रहे थे…
यहां जहां यह हवेली थी… कोई नजर नहीं आ रहा था…
एक तरफ दूर-दूर तक खेतों का समूह था… और थोड़ा पीछे की तरफ… अभिनव ने जाकर देखा तो वहां बस जंगल ही जंगल… घोर जंगल…
इस जंगल के आगे खड़ा “राय निवास”.…
इतना तो पक्का था कि शांभवी का मोबाइल यहीं था…
अगर मोबाइल था… इसका मतलब वह भी थी…क्योंकी… कल ही उसने इस फोन से मैसेज किया था…
अभिनव घर के चारों तरफ अपनी नज़रें फेर रहा था… सोच रहा था कि अब क्या…?
इसी बीच अचानक घिर आए मेघ ने… झमाझम बारिश की शुरुआत कर दी…
जोर के कड़ाके की आवाज के साथ… बरसते बादलों से बचने के लिए…” राय निवास” के एक तरफ बने शेड जैसे टूटे हिस्से में लगकर… अभिनव खड़ा हो गया…
बारिश तो जैसे रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी…
अचानक आई इस बारिश से परेशान… दत्ता ने खुद को बारिश से बचाने के लिए दीवार में और चिपकने का एक भरपूर प्रयास किया…
मगर फटाक से जोरदार आवाज के साथ… भड़भड़ा कर उस हिस्से की दीवार गिर पड़ी…
दीवार गिरने के साथ ही… ऊपर पड़ा शेड भी धड़ाम से गिरा…
अभिनव जब तक संभाल पाता… या निकलता… वह उस हादसे का शिकार हो चुका था…
***
जब अभिनव की आंख खुली… तो रात हो चुकी थी…
उसने महसूस किया कि वह उसी घर के अंदर है… जिसके बाहर वह खड़ा था…
आंख खोल कर उसने चारों तरफ देखने का प्रयास किया… वहां कोई नहीं था…
पूरा कमरा एक पुराने पीले बल्ब की धीमी रोशनी से टिमटिमा रहा था…
एक बड़ा सा कमरा…
जिसमें एक बिस्तर के अलावा कुछ भी काम की चीज नजर नहीं आ रही थी…
अभिनव ने उठने की कोशिश की… तो उसे महसूस हुआ…
उसके सर पर पट्टी थी… हाथ और पैरों में भी पट्टियां लगी हुई थी…
उसका कमर तो बिल्कुल ही अकड़ा हुआ था…
किसी तरह उसने अपने बैग की तरफ हाथ बढ़ाया…
जो वहीं पास पड़े टेबल पर रखा था…
उसे पकड़ने की कोशिश में बैग धप्प से नीचे गिरा…
आवाज सुनकर एक महिला ने कमरे में प्रवेश किया…
यह नीलांजना राय ही थी…
हां बिल्कुल वही थी…
इस लगभग पांच सात दिनों में… अभिनव ने इतनी बार उनकी तस्वीर देखी थी… कि उसके लिए यह चेहरा बिल्कुल भी नया नहीं था…
माथे पर बड़ी सी बिंदी लगाए… करीने से साड़ी लपेटे…
एक ढीले ढाले जुड़े में नीलांजना राय का व्यक्तित्व निखर रहा था…
उन्हें सामने देख… अभिनव दत्ता एक पल को घबरा गया…
मगर उसे अधिक परेशानी नहीं हुई…
हंसते हुए नीलांजना जी ने उसका बैग उठाया… और ऊपर रखते हुए बोली…
” क्या है… इतनी हड़बड़ी क्यों है तुम्हें…
इतनी चोट लगी है… थोड़ा धीरज रखो…
किसने कहा था दीवार से लड़ने को… वह दीवार तो कब से गिरना चाह रही थी…
मगर छत ने दीवार को और दीवार ने छत को पकड़ रखा था…
बहुत चोट आई है तुम्हें… अभी थोड़ा समय लगेगा ठीक होने में…
मैंने गांव के डॉक्टर को बुलवाया था…
उन्होंने देखकर पट्टी कर दी है… दर्द की दवाएं भी दी है…
अगर फिर भी… कहीं कुछ अधिक तकलीफ महसूस हो तो बता देना…
कहीं बाहर दिखा लाऊं…
यहां तो बस इतना ही इलाज मिलेगा…
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नीलांजना ( भाग-7 ) – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi
रश्मि झा मिश्रा