पाखी और निकेतन को उनके ताऊजी का उनके घर आना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। जब भी वह आते थे 10वीं में पढ़ने वाले निकेतन और अपने बेटे चेतन की तुलना अवश्य करते थे। पाखी बड़ी थी, वह 12वीं कक्षा में थी। वह समझ जाती थी लेकिन निकेतन निराश हो जाता था। आज फिर ताऊ जी, चेतन के साथ पधारे थे
सोफे पर बैठते हुए बोले-“निकेतन, कितने नंबर लाया अंग्रेजी में, प्री बोर्ड में।”
निकेतन ताऊ जी के पैर छूते हुए बोला-“ताऊ जी, 85”
ताऊ जी-“अरे अरे! फिर पीछे रह गया ना चेतन से इसके तो 92 आए हैं। कुछ मेहनत कर ले नहीं तो जिंदगी खराब हो जाएगी। कुछ सीख चेतन से।”
निकेतन”ताऊ जी बाकी विषयों में बराबर ही नंबर आए हैं।”
ताऊ जी-“बाकी विषय, क्या बाकी विषय, अंग्रेजी की बात कर, अंग्रेजी की।”
ताऊ जी की ऐसी आदत पड़ गई थी कि रोकने पर भी रुकते नहीं थे। हर बार किसी न किसी बात पर चेतन को ऊपर और निकेतन को नीचे ही रखते थे। इससे निकेतन के आत्मविश्वास की धज्जियां उड़ जाती और चेतन अति आत्मविश्वासी होता जा रहा था। ताऊ जी समझ नहीं रहे थे कि वे दोनों बच्चों का नुकसान कर रहे हैं।
ताऊ जी के जाते ही निकेतन को उदास देखकर पाखी और उसके माता-पिता उसे समझाते-“बेटा, इनकी तो आदत है बोलने की, बोलने दो कोई बात नहीं हमसे बड़े हैं। तुम जैसा पढ़ सकते हो पढ़ो, मेहनत से पढ़ो। हमारी तरफ से तुम्हारे ऊपर कोई दबाव नहीं है और हमें तुम पर पूरा विश्वास भी है कि तुम अच्छे नंबर ही लाओगे। ताऊ जी की बातों से कभी निराश मत होना।”
निकेतन समझ जाता और पढ़ाई में लग जाता। फिर भी वह कई बार ऐसा कुछ कह जाते कि निकेतन मायूस हो जाता। उसे कहते-“निकेतन नहीं निकम्मा कहो निकम्मा, ये हमेशा चेतन से पीछे ही रहेगा, देख लेना।”
निकेतन उदास हो जाता फिर उसने हौसला देना पड़ता। ऐसे समय बीतता गया और निकेतन पढ़ लिखकर सेना में भर्ती हो गया। सैन्य सेवा और सिलेक्शन के बाद अब वह कर्नल बन गया था और चेतन अपने अति विश्वास के कारण एक साधारण सी नौकरी कर रहा था। उसके पिता उसकी इतनी अधिक प्रशंसा करते थे कि उसे लगने लगा था कि मैं हर चीज में अव्वल हूं और वह मेहनत से पीछे हटने लगा।
आज निकेतन को युद्ध काल में अपना अतुल्य योगदान देने के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया जा रहा है। उसका परिवार बहुत खुश है।
जब निकेतन पुरस्कार लेकर मंच से नीचे उतर कर ताऊ जी और अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करता है तो पाखी हंसते हुए धीरे से उसके कान में कहती है- “निकम्मा सैनिक”और निकेतन भी मुस्कुराने लगता है।
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गीता वाधवानी शालीमार बाग दिल्ली