सन 2004 को अचानक दिल्ली सरकार ने हमारे कारखाने को ध्वनि प्रदूषण के नाम पर सील कर दिया कारखाने की मशीनों को उजड़ता देख पिता को फिर से एक बार सदमा बैठ गया हमारे घर की आर्थिक स्थिति दिन पर दिन बिगड़ने लगी 6 महीने घर में खाली बैठने के बाद घर की जमा पूंजी खत्म होते देख मैं किराने की एक दुकान पर नौकरी करने लगा —
रात का वक्त था मैं ड्यूटी से छुट्टी करके घर लौटा ही था कि —
उस दिन मां बड़ी चिंतित थी मेरे घर आते ही बोली
दवाई मैंने ले ली है और गोली भी खाली अब मेरी बात सुनो गौर से
मेरी उम्र का कुछ ठिकाना नहीं कब ऊपर वाले से मेरा बुलावा आ जाए तेरी बड़ी बहन की शादी हो गई तेरे बड़े भाई की शादी हो गई
मैं चाहती हूं अब तेरी भी शादी हो जाए
पैसों की तू फिकर ना कर लड़की मैंने देख ली है
मैं भी फिर हार चुका था उम्र 28 के पार हो चुकी थी और उस रात में कुछ ना कह सका —
कुछ दिन बाद मेरी शादी तो हो गई लेकिन मुझे बाद में पता चला हमारे मकान के कागज पड़ोस के शर्मा जी के पास गिरवी पड़े हैं
कर्ज दिन पर दिन और बढ़ने लगा तब मां ने मकान बेचने का फैसला लिया
उसे पता था कि अब सब बच्चों की शादी हो गई कर्ज अब कोई नहीं चुका पाएगा इसलिए उसने हर्ष विहार में एक बना बनाया मकान खरीदा जो बहुत कम दामों में मिल गया
उसमें केवल दो ही कमरे थे
रात ही रात ट्रक में सारा सामान लाद कर हम नए घर की ओर चल पड़े
मां ने नीचे वाला ग्राउंड फ्लोर मुझे दे दिया और ऊपर वाला फर्स्ट फ्लोर बड़े बेटे को दे दिया
और खुद पिता के साथ छत के ऊपर तंबू बनाकर रहने लगी
मुझसे यह देखा ना जाता था किंतु मेरी भी नई-नई शादी हुई थी बीवी भी नई थी बूढ़े मां-बाप सीढ़ीओ पर चढ़ उतर नहीं सकते थे
इसलिए मैंने एक फैसला लिया —
मोहल्ले के एक वकील के पास जाकर मां की संपत्ति से खुद को बेदखली के कागज बनवा लिए बात 5 हजार रुपए में तय हुई मां अनपढ़ थी पढ़ना नहीं आता था मेरे कहने पर वकील ने मां की अंगूठे के निशान ले लिए अपने हिस्से का मकान में अपने बड़े भाई को दान में दे आया
ताकि बड़े भाई और मेरे माता-पिता को कोई दुख ना हो
दूर मुखर्जी नगर में मैंने एक सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी ढूंढी फिर वही पास में ही एक किराए का कमरा लिया और अपनी बीवी बच्चों के साथ रहने लगा
जब मैं कुछ महीनो तक घर ना लौटा तो बूढ़े मां-बाप को मजबूर होकर नीचे वाले ग्राउंड फ्लोर पर रहना पड़ा आज मुझे 12 बरस हो चुके हैं घर से निकले मैं घर लौट कर नहीं गया
मुझे उस दिन सुकून मिला जब पता चला मेरे बूढ़े मां-बाप छत के बने तंबू से निकलकर अब नीचे ग्राउंड फ्लोर में रहते हैं सर्दी की ठंडी हवाओं से बचते हैं गर्मी की बारिश से बचते हैं
मुझे इंतजार रहता है अपनी तनख्वाह का और खुशी रहती है जब मैं अपने बूढ़े मां-बाप को मोबाइल से पेटीएम करता हूं
किराए के मकान में अभी 1 साल भी पूरा ना हुआ कि मेरी सास ससुर मुझसे मिलने आए कहने लगे यूं किराए के कमरे में कब तक अपना जीवन बिताओगे ससुराल तुम्हारा नजदीक है वह भी तो तुम्हारा अपना घर है
उस समय गले से मेरी आवाज ना निकली एक मां तो बिछड़ गई थी अब मैं दूसरी मां को खोना नहीं चाहता था
11 वर्षों से मैं अपने ससुराल में ही घर जमाई बनकर रह रहा हूं
एक दिन मां को वकील ने सब कुछ बता दिया , मां , पिताजी को लेकर
मेरे ससुराल में आ धमकी मुझे बहुत डांटा भाई भी मां के साथ आया था
कहने लगा नेकराम तूने इतना बड़ा फैसला ले लिया और घर में किसी को पता भी नहीं ,, हम तो सोच रहे थे तेरी नौकरी लग गई है इसलिए तू घर से दूर चला आया है
मैं अपने भाई को एक कोने में ले जाकर धीरे से उसके कान में बताया
भैया तुम तो जानते ही हो मां ने कितने दुख उठाए हैं पिताजी महिनों महिनों घर नहीं आते थे मैं मां और पिताजी को एक साथ एक कमरे में देखना चाहता हूं
ताकि अपनी मां खुश रहे और पिताजी का प्यार मिले
तब भाई बोला मकान के बेदखली के कागज बनाने की क्या जरूरत थी
कुछ देर तो मैं चुप रहा फिर मैंने भाई को समझाया हम बहुत गरीब हैं अपने घर में केवल दो ही कमरे हैं तीसरा कमरा बनाने के लिए हमारे पास कभी भी रुपया इकट्ठा नहीं हो पाएगा
क्योंकि आप भी शादीशुदा हो तीन बेटियां है
मैं भी शादीशुदा हूं अब मेरी भी फैमिली बढ़ती जा रही है
नौकरियां आज लगती है कल छूट जाती है नौकरी से बस पेट भरने लायक ही तन्ख्वाह मिलती है
मैंने भाई और माता-पिता को समझाकर वापस हर्ष विहार भेज दिया
जाते-जाते मैंने भाई को कहा मां का अच्छे से ख्याल रखना
बीच-बीच में मैं आप लोगों से मिलने आ जाया करूंगा
मां ने जाते-जाते मुझसे कहा जब तक मैं जीवित हूं घर के फैसले मैं लूंगी ,, तू नहीं
मां की बात सुनकर हम सब खूब हंसे
भाई ने कहा जल्दी ही मैं तीसरे कमरे की व्यवस्था करता हूं
फिर हम सब मिलकर रहेंगे
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली से
स्वरचित रचना