अचानक एक नया प्रोजेक्ट मिलने से सौरभ चिंतित हो गया।एक तो पिछले चार पांच दिनों से उसे बुखार आ रहा था।दूसरे ये प्रोजेक्ट किसी शहर नहीं बल्कि छोटे से गांव के लिए था जहां एक महीने रुकने के लिए कोई होटल नहीं था कंपनी कोई व्यवस्था नहीं कर रही थी हां रहने खाने का खर्चा देने को तैयार थी ।
किराए का मकान ढूंढना खाने पीने की व्यवस्था करना वो भी इतनी शीघ्रता में चिंताओं को बढ़ा ही रहा था।अगर प्रोजेक्ट लेने से इनकार कर देता या असमर्थता जता देता तो अगला प्रमोशन खटाई में पड़ जाता। आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रही कंपनी वैसे भी कुछ कर्मचारियों को बाहर निकालने को तैयार बैठी थी।ऐसे में वह अपनी जमी जमाई नौकरी के लिए कोई खतरा नहीं उठाना चाहता था।पत्नी जूही अपने ऑफिस और छोटी बेटी प्रिया के बोर्ड एग्जाम के कारण साथ चल नहीं सकती थी।
इसीलिए जब सहकर्मी सुबोध ने उस गांव के एक परिचित सुखाई काका का पता दिया तो मैं थोड़ा निश्चिंत तो हुआ लेकिन एक महीने किसी के घर पर रहने का संकोच आड़े आने लगा।पत्नी और सुबोध ने समझाया कि पहुंचते ही उन लोगो को कुछ रूपये दे देना ताकि तुम भी और वे भी निश्चिंत रहे। गरीब लोग हैं रूपये की बहुत कीमत है उनके लिए खुश हो जाएंगे ।सुनकर तसल्ली से मैने अपना बोरिया बिस्तर उठाया और उस गांव में पहुंच गया।
जाते ही मैने काका के हाथ में काफी रुपए रख दिए तो काका कुछ नहीं बोले चुपचाप रुपए रख लिए मैं निश्चिंत हो गया।
जैसा उसने सोचा था काका और उनका परिवार तो उससे भी बढ़कर निकले।बहुत बड़ा मकान था काका का।काका ने सबसे हवादार बड़ा कमरा तैयार करवा दिया था।लकड़ी का बड़ा सा तख्त उस पर रुई का मुलायम गद्दा तो सौरभ को अपने आरामदायक डबल बेड से ज्यादा सुकून भरा लगा था।
गर्मी के दिन थे लेकिन कमरे में बड़ी बड़ी खिड़कियों से आती ताजी ठंडी हवा उसे एसी से ज्यादा ठंडक दे रहे थे।मिट्टी के मटके और सुराही का पानी फ्रिज के पानी से हजार गुना मीठा और ठंडा लग रहा था।
सब देख सुनकर मन ही मन सौरभ अपने दिए रूपए का परिणाम है सोचता था।
भोजन जिसकी सर्वाधिक चिंता थी सौरभ को एक दो दिनों बाद उसे संसार का सबसे स्वादिष्ट भोजन लगने लगा था।बिना तेल मसाले का भोजन, खेत से तोड़ी ताजी सब्जी भाजी का स्वाद अलौकिक लगा था उसे।गाय का ताजा दूध, दलिया का नाश्ता,दही मठ्ठा सबने उसकी तबियत दुरुस्त करतेहुए पाचन शक्ति ज्यादा तीव्र कर दी थी।
एक हफ्ते के अंदर वह खुद को ज्यादा स्वस्थ और तरोताजा महसूस करने लगा था। काकी रोज अपने हाथों से पूरा भोजन बनाती और काका प्रेम से पास में बिठाकर खिलाते तब वह संकोच से भर जाता लेकिन रुपए से चुकता करने की बात उसे आश्वस्त कर जाती।
आज उसका प्रोजेक्ट पूरा हो चुका था।कल वापिस शहर जाना था उसे ।कल पत्नी ने भी समझाइश दे दी थी इतना खर्चा उन लोगों ने किया है और धनराशि दे देना।
मन ही मन संतुष्ट था कि जितना इन लोगों ने मुझ पर खर्च किया है उससे ज्यादा ही रुपए मै इन्हें दे रहा हूं।इनकी की हुई सारी मेहनत चुकता हो जाएगी आज इस धनराशि को पाकर संतृप्त हो जाएगी।
काका …मैंने जोर से आवाज लगाई तो काका मेरे लिए ताजा गाय का दूध लाने में व्यस्त दिखे ..”आज और पीते जाओ बचूआ वत्सल स्वर में मुझे बड़ा सा गिलास पकड़ाते हुए कह उठे।
काका ये रख लीजिए आप सबने बहुत खर्चा किया मेरे लिए मैने दर्प से काफी मोटी धनराशि उनकी तरफ बढ़ाते हुए कहा तो काका चुप से हो गए।
बेटा तुम इस घर को कोनो होटल समझ कर रहे थे क्या।पर हम तो तुम्हे अपना बच्चा ही समझ रहे थे ये जोन काका काकी तुम कहते रहे त हम सच में बन गए थे काका ने भावुक स्वर में कहा।
नहीं काका ये खर्च राशि तो कंपनी की तरफ से मिली है जो आपने ही खर्च की है रख लीजिए इसीलिए तो मैने आते ही आपको रुपए दे दिए थे मैने पहले दिए रूपए की भी याद दिलाते हुए फिर दबाव बनाया।
बिटवा ये लो तुम्हारे घर बहु और पोती के लिए घर का घी और ये घर का खोवा लिए जाओ तभी काकी जो हमारी बाते सुन रही थीं सामने आ गईं और ये लो वो रुपया जो तुमने आते ही काका के हाथ में रखा था ।तुम बिना संकोच के यहां रहो इसलिए काका उस वक्त कुछ नही बोले थे ।इसमें ये जो फिर रुपया दे रहो ना मिलाकर हमारी तरफ से हमारी पोती को दे देना जिससे वह अपनी शहरी पसंद का कुछ खरीद लेगी काकी ने मेरे हाथ के रुपए में पहले वाले रुपए रखते हुए कहा ।सुनो ये हमारा घर है तुम हमारे बेटा और घरवालों से कैसा खर्चा का लेना देना .. समझे..!!
काका का अबोला काकी की जुबान में मुखरित हो गया था।मैं #टका सा मुंह लेकर रह गया । अपने शब्दों पर लज्जा महसूस करता मैं धन्यवाद देने की हिम्मत भी नहीं कर सका था।निशब्द हो दोनों के चरण स्पर्श किए तो दोनों ने फिर आना बेटा तुम्हारा ही घर है कह ढेरो आशीर्वाद दे डाले जिनकी कीमत मै दे ही नहीं सकता था..!!
लतिका श्रीवास्तव
#टका सा मुंह लेकर रह जाना