“नजरिया बदलो ,नजारे खुद ब खुद बदल जाएंगे “- दीपा : Moral stories in hindi

moral stories in hindi : आज इस बात का प्रत्यक्ष अनुभव कर रही कविता जी को अलग ही खुशी हो रही थी ।वर्षों से चली आ रही परिपाटी से उबर कर एक नई व सही राह पर चलना कितना आसान व सुखद है, यह समझने में लंबा समय लगा था उन्हें ,पर कहते हैं ना ‘जब जागो ,तभी सवेरा’।

 आज रक्षाबंधन के दिन एक नए उल्लास के साथ घर के काम निपटाने में लगी हुई थी ।सारे काम अकेले को जो करने थे। हमेशा जिन कामों को करने में उनके कमर- पैर में दर्द होने लगता था, आज वही सब करना उन्हें अच्छा लग रहा था .उनकी खुशी में उनका साथ देने उनका मोबाइल भी नाच उठा मतलब फोन की घंटी बजी ।

देखा तो बेटी कीर्ति का फोन था ।झट फोन उठा कर बोली- हेलो कीर्ति !कैसी है ?

मां ,मैं ठीक हूं। पर क्या बात है , हमेशा शिकायती लहजे वाली आवाज में यह खनक कैसी ?मामा जी आ रहे हैं क्या?

 झेंपते हुए कविता जी बोली -अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है ।आज मेरी इस खनक की वजह तू है लाडो ।अगर तू मुझे सही राह नहीं दिखाती ,तो मैं इस खुशी से वंचित ही रह जाती।

 मतलब …….कीर्ति बोली ।

कविता जी कुछ बोलती ,उससे पहले ही कीर्ति के घर की डोर बेल बज उठी ।वह मां का कॉल होल्ड कर मोबाइल टेबल पर ही छोड़ दरवाजा खोलने चल देती है।

 इतनी सी देर में ही कविता जी के दिमाग में 2 दिन पहले बेटी से हुई वार्तालाप पुनः स्मरण हो आई।उस दिन उन्होंने कीर्ति को रक्षाबंधन पर मायके आने के लिए फोन किया था ।

इस बार रक्षाबंधन पर 4 दिन का समय लेकर आना ।तीज करके ही जाने दूंगी। हर बार एक रात रुक कर चली जाती है।- कविता जी ने उलाहना देते हुए बेटी को प्यार भरा निमंत्रण दिया।

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 कीर्ति बोली -हां मां !इस बार एक रात भी नहीं रुकूंगी।

 कविता जी बीच में ही बोल पड़ी- चलो आज पहली बार में ही तूने अपनी मां की बात मान ली। तभी कीर्ति बोली- मां आप पूरी बात तो सुनिए ।इस बार मैं रक्षाबंधन पर नहीं आ सकूंगी ,क्योंकि दीदी 3 साल बाद इंग्लैंड से आ रही है। वह भी सिर्फ 8 दिन के लिए और मेरी शादी के बाद शायद पहली बार ही हम दोनों को साथ राखी बंधेगी और फिर भैया भाभी व बुआ जी भी यही आ रही है इसीलिए मैंने ही मना कर दिया। सोमेश और मांजी  ने तो कहा था ।एक दिन के लिए चली जाना ,पर मैंने ही मना कर दिया।

क्यों ठीक किया ना मां मैंने!

हां  !कविता जी उदास स्वर में बोली।

 मां भाभी कैसी है ?-कीर्ति ने पूछा ।ठीक है !

संक्षिप्त सा उत्तर पा वह आगे बोली- राखी पर भाभी का क्या प्रोग्राम है?

 क्या प्रोग्राम रहेगा?-चिढती हुई सी कविता जी बोली। उसके मायके से तो भाई राखी पर आता ही नहीं ।शादी के शुरू-शुरू में आता था ,पर अब तो कई साल बीत गए ।कहो तो बहाना बना लेती है या टाल जाती है।

 ‘तो आप कभी फोन कर बुला लिया करो ‘।इस पर कविता जी बोली-‘ मैंने कभी किसी को मना किया है क्या आने का या बुलाने का? आवाज में थोड़ी तल्खी के साथ कविता जी ऊंचे स्वर में बोली ।किचन में कम कर रही उनकी बहू प्रीति के कानों तक उनकी आवाज पहुंच चुकी थी ।

प्रीति मन ही मन बोली- कभी खुद से तो बुलाती नहीं है और जब आ जाता था तो यह सुनाती रहती थी ,कि हमारे मायके से तो कोई आता ही नहीं है .हमें तो याद भी नहीं की कब अपने भाई को राखी बांधी थी ।सब सुनते-सुनते उसने भी अपने भाई को राखी पर बुलाना बंद कर दिया। भाई बहन फोन पर ही बात कर मन बहला लेते। प्रीति को मार्केट जाना था सो वह इन सब बातों में ना उलझ घर से चल दी ।

कविता जी बेटी से बोली -इस बार तेरे भाई की कलाई सूनी ही रहेगी ।

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कीर्ति बोली- मां भाभी के भाई की कलाई तो हर बार ही सुनी रहती है। यदि उनका भाई नहीं आता तो क्या हुआ ?आप भाभी को वहां भेज दो। आपने भी तो कभी उन्हें राखी पर उनके मायके नहीं भेजा ।मेरी सास तो खुद हर बार आगे रहकर राखी पर मुझे भेजने की तैयारी करती है ।कभी मैं मना भी करूं तो कहती है ,राखी पर बुलावे की राह मत देखा करो । भले ही एक समय के लिए चली जा ।और मां भैया भी तो अपनी व्यस्तता के चलते कभी नहीं आता, पर उन्होंने कभी मुझे इस बात के लिए ताना नहीं दिया ।

क्या राखी का त्योहार बेटी के आने पर ही पूरा होता है ।कभी बहू को उसके मायके भेज कर भी तो त्यौहार की खुशी को दोगुना किया जा सकता है। बेटी की सहजता में कहीं बात से कविता जी के दिलों दिमाग में विचारों का मंथन शुरू हो गया ।फिर थोड़ा संयत होते हुए बोली

-सच में आज तूने मुझे मेरी गलती का एहसास कर एक नई शुरुआत करने के लिए प्रेरित किया है ।।चल अब फोन रखती हूं मुझे भी अपनी बहू को उसके मायके भेजने की तैयारी करनी है। कहती हुई कविता जी फोन रख तैयारियों में व्यस्त हो जाती हैं।

वे बिना देर किए किचन में जाकर मिठाइयां और नमकीन बनाने मैं जुट जाती हैं और बेटे को फोन कर बहू के मायके भेजने के लिए तोहफे लाने का कहती है। प्रीति जब मार्केट से लौटी , तो आश्चर्यचकित सी कविता जी को देखती हैं और बिना कोई सवाल जवाब किए उनका हाथ बटाने लगती हैं ।

रात को खाने की टेबल पर कविता जी प्रीति से कहती हैं- इस बार कीर्ति राखी पर नहीं आ रही है। तो मैं सोच रही हूं कि तुम दोनों उसके यहां चले जाओ । मैंने विकास से बात कर ली है । पैकिंग कर लेना ।कल शाम में निकलना होगा। प्रति कुछ नहीं बोली, क्योंकि उसके पास ना करने का कोई कारण ही नहीं था और हिम्मत भी नहीं थी ।कविता जी ने विकास के साथ मिलकर प्रीति को उसके मायके छोड़ कीर्ति के यहां जाने का सरप्राइस प्लान किया था ।

इसी बीच लैंडलाइन फोन की घंटी से उनकी तंद्रा भंग हुई ।एक हाथ में मोबाइल लिए दूसरे हाथ से रिसीवर उठती हुई कविता जी की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले ।मोबाइल पर बेटी की और लैंडलाइन पर बहू की चहकती खिलखिलाती आवाज उनके कानों में मिश्री घोल गई ।दोनों ही कविता जी को थैंक यू बोल रही थी। आज बहू को उसके मायके भेज और बेटे को बहन के यहां भेज कर कविता जी को असीम खुशी मिल रही थी। फोन रख वे पति के साथ मंदिर जाने के लिए निकल पड़ी।

दीपा

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