अरे, बहन तुम तो प्रैग्नेंट हो,कैसे ऊपर की बर्थ पर चढ़ोगी,तुम्हे कोशिश भी नही करनी चाहिये।देखो मेरी बर्थ नीचे वाली है, तुम इस पर लेट जाओ,मैं ऊपर चली जाती हूँ।
बहन जी आपकी बड़ी मेहरबानी, मैं कहते झिझक रही थी।
आपके पति साथ नही आये।आपको सामान आदि रखने उठाने में परेशानी नही होगी क्या?
मैं अपने मायके में थी मेरे चाचा ने मुझे यहां दिल्ली से ट्रेन में बैठा दिया था।मुंबई में मेरे पति स्टेशन पर लेने आ जायेंगे, नही आ पाये तो टैक्सी कर घर पहुंच जाऊंगी।
गर्भवती सुषमा दिल्ली से मुंबई अकेली ही जा रही थी,उसकी बर्थ ऊपर थी।नीचे की बर्थ की पेशकश उसी ट्रैन में हमसफ़र राखी ने उससे की थी।राखी डॉक्टर थी और दादर के एक हॉस्पिटल में नियुक्त थी।दोनो का परिचय हुआ तो एक दूसरे को पता चला कि दोनो दादर में ही रहते हैं।
लंबे सफर के कारण दोनो ने बातचीत शुरू हुई तो दोनो एक दूसरे से खुल भी गयी। अचानक डॉ राखी ने पूछ लिया सुषमा तुमने ये क्यो कहा कि मेरे पति नही आये तो मैं टैक्सी कर चली जाऊंगी।तुम्हारे पति तुम अकेली गर्भवती पत्नी को लेने भला क्यो नही आयेंगे?
एक फीकी सी मुस्कान के साथ आंखों को चुराते सुषमा ने मुँह दूसरी ओर फेर लिया।राखी फिर बोली सुषमा जी यदि उत्तर नही देना चाहती तो कोई बात नही।नही -नही राखी जी,सोच रही थी क्या उत्तर दूँ, देना भी चाहिये या नही,यही असमंजस था।राखी ने कुछ न बोलकर बस सुषमा का हाथ दबा दिया।कुछ क्षण रुककर राखी ने कहा कभी कभी मन का गुबार निकल जाने से मन हल्का हो जाता है।आंखों में आये पानी को साड़ी के पल्लू से पोछते हुए
सुषमा बोली मेरे माता पिता बचपन मे ही गुजर गये, चाचा चाची ने ही पाला पोसा,ये अच्छा रहा पिता जी अच्छा खासा छोड़ गये थे,पर माँ और बाबूजी के बिना जीवन मे आये अकेलेपन को झेलती आयी हूँ।ये मेरी किस्मत थी या फिर मेरी मनहूसियत,पता नही।मेरी शादी राकेश जी से कर दी गयी,वो बहुत अच्छे हैं।सुख का एक वर्ष भी नही बीता था कि मैं गर्भवती हो गयी,एक महिला का माँ बनना उसका परम सुख होता है,परम अनुभूति होती है, राखी जी ये परम अनुभूति मुझे भी हुई थी।
पर एक दिन सासू माँ ने कहा कि सुनो सुषमा देखो मुझे तो पोता ही चाहिये।मैं तो सुनकर धक से रह गयी।क्या ये मेरे वश में है कि पोता हो या पोती?मेरी किस्मत फिर दगा दे गयी, एक अनजाना भय से मैं घिरी रहती हूं कि कही पोता न दे सकी तो—?बस यही प्रश्न मुझे खाये जाता है।मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते है,पर माँ की इच्छा को वे हमेशा हर चीज में सर्वोपरि रखते हैं।मुझे नही पता जब राकेश को अपनी माँ की इच्छा का पता चलेगा तो वे कैसे रियेक्ट करेंगे?
क्या तुमने इस विषय मे अपने पति से बात की?राखी ने पूछा।
नही-राखी जी मेरी हिम्मत ही नही हुई।मैं जानती हूं मेरा नसीब खराब है।
मुम्बई आ गयी थी,स्टेशन पर सुषमा को लेने उसके पति राकेश आये थे।राखी को ये अच्छा लगा।उसे सुषमा से न जाने क्यों सहानुभूति हो गयी थी।ट्रैन से उतरने से पूर्व ही राखी ने सुषमा से उसका और उसे अपना मोबाइल नंबर आदान प्रदान कर लिया था।
सुषमा की राखी से कभी कभार बात चीत फोन पर हो जाती थी।सुषमा सदैव ही आशंकित प्रतीत हुई।इसी बीच सुषमा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई,उसे लगा कि अब उसके दिन बहुर गये,सासू मां की इच्छा पूर्ति भी हो गयी।पर पता लगा कि नवजात के दिल मे छेद है।बच्चे को माँ से अलग कर मशीन में रख दिया गया।सुषमा की छाती में उतरा दूध भी उसका बच्चा पी न सका।
सुषमा फिर अतीत में पहुँच गयी।वह बिस्तर पर पड़ी पड़ी रोते रोते, बड़बड़ाती रहती भगवान मेरे बच्चे को मेरे दुर्भाग्य की सजा मत देना, उसे ठीक कर दो प्रभु,उसे मेरी गोद मे डाल दो।राकेश भी अपनी पत्नी को सांत्वना देता,पर सुषमा अवसाद से घिरती जा रही थी।
आज हॉस्पिटल ने एक हार्ट स्पेसीलिस्ट को सुषमा के बच्चे को दिखाने के लिये बुलाया।यह डॉक्टर संयोग वश डॉ राखी थी।जब उसे पता चला कि जिस मरीज को वह देखने आयी है वह सुषमा का ही बच्चा है।राखी ने बच्चे को देखा और सारी रिपोर्ट का अवलोकन किया।वह फिर सुषमा के पास गयी, राखी को देख सुषमा के रुके आंसू फूट पड़े,वो बोली देखा राखी,मेरी किस्मत कितनी खराब है,हूँ ना मैं मनहूस।मैं ही हूँ जो पहले अपने मां बाबूजी को खा गई और अब मेरा मनहूसियत का साया मेरे बच्चे पर भी आ गया।
राखी ने सुषमा को आश्वस्त किया,सुषमा तुम्हारे बच्चे का मैं इलाज और ऑपरेशन करूँगी,और मैं तुझे गारंटी देती हूं तेरा बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हो जायेगा।तू बिल्कुल भी मत घबरा,मेरा यकीन कर।राखी सुषमा के बच्चे की मेडिकल फाइल देख चुकी थी इसलिये उसे पूरा विश्वास था कि बच्चा ठीक हो जायेगा, फिर भी उसने अपनी ओर से एक अन्य सीनियर डॉक्टर को भी ऑपरेशन के समय बुला लिया।ऑपरेशन सफल रहा।खुशखबरी मिलते ही सुषमा के चेहरे पर काफी दिनों बाद मुस्कान दिखाई दी।
राकेश डॉ राखी को धन्यवाद देने आया।तब राखी बोली राकेश जी एक बात तो बताओ कि क्या महिला के हाथ मे होता है कि उसके बेटा हो या बेटी? वह आश्चर्य से डॉक्टर का चेहरा देखने लगा।बोला मैं समझा नही ड़ॉ ,आप ऐसा क्यूँ पूछ रही है? राखी ने बताया कि सुषमा इन दिनों किस मानसिक यंत्रणा से गुजरी है।
अपनी मां को भी समझाओ और पत्नी को विश्वास में लो राकेश जी।वह अपने को किस्मत का मारी मानती है,उसकी यह ग्रंथि तुम ही निकाल सकते हो,उसे संभालो राकेश,सुषमा बहुत अच्छी है।ईश्वर तुम सबका भला करे।
राकेश को कुछ मालूम ही नही था, उसकी सुषमा ऐसी यंत्रणा से गुजर रही थी।उसने माँ से भी बात की।माँ ने कहा बेटा मैं पुराने ख्याल की जरूर हूँ पर इतनी गयी बीती भी नही जो अपनी बहू को प्रताड़ित करू। पोते पाने की इच्छा को बताने को बहू ने इतना मन पर ले लिया,मुझे पता भी नही चला।मैं उसकी गुनहगार हूँ।
पोते को गोद मे लिये सासू मां अपने बेटे राकेश के साथ सुषमा के पास आयी।बच्चे को सुषमा की गोद मे लिटाकर अपने से चिपटाकर बोली मेरी बेटी मुझे माफ़ कर दे,मेरे कारण तूने बहुत पीड़ा झेली है, मेरी बच्ची मुझे माफ़ कर दे।
अवसाद का आवरण सुषमा के मन मस्तिष्क से उतरता जा रहा था,उसने कस कर अपने बच्चे को अपने आगोश में ले लिया।नयी सुबह होने जा रही थी।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित
#रोते रोते बस अपनी किस्मत को कोसती जा रही थी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है
कहानी बहोत अच्छी है रुला गयी