नई सीख-अर्चना सिंह Moral stories in hindi

आज बच्चों की परीक्षा की कॉपी जांचते – जांचते काफी समय लग गया। मधु ने एक नज़र घड़ी पर डाली, शाम के 5 बज चुके थे। थकी सी वो सुस्ताये अलसाये कदमों से चल कर वह घर घुसी तो 6 बजने वाले थे। घर के अंदर आकर उसने झांका तो कोई न दिखा, फिर उसने बालकनी में जाकर नज़र डाली तो उसकी सास और ननद मोहल्ले की औरतों के साथ गपशप और चुगली करने में व्यस्त थीं। अंदर ही अंदर सोच रही थी मधु।

उफ्फ! इनके पास तो यही काम है, इधर की चुगली उधर, उधर की चुगली इधर, दुसरो पर छींटाकशी या फिर मक्खनबाजी। वह खुद को रिफ्रेश कर के रसोई गयी और सोची अभिषेक(पति) आ जाएं इससे पहले खाना बना लेती हूँ। अभिषेक की नौकरी बहुत बड़ी नही थी, इसलिए मधु ने भी बाहर काम कर के जीवनरूपी गाड़ी को सुचारू रूप से चलाने की सोची।

अभिषेक तीन बहनों का अकेला भाई था। दो बहनों की शादी हो चुकी थी और 1 अविवाहित थी। दोनो शादीशुदा बहनों का आधा से ज्यादा समय मायके में ही माँ के कान भरने और झूठी चापलूसी करने तथा मधु की ज़िंदगी मे ज़हर घोलने में बीतती|

 अभिषेक रिफ्रेश होने बाथरूम गए तभी मधु ने चाय बनाया और पकोड़े भी तले। अभी मधु चाय ही छान रही थी कि मधु की ननद ने कमरे में आकर अभिषेक को चाय पकड़ा दिया और पकोड़े देते हुये कहा कि – भाई! मैने तुम्हारे लिए चाय और पकोड़े दोनों बना दिये। पीछे से ट्रे लेते हुए मधु आयी और अंदर अंदर सुन के घुट के रह गयी।

सास के सामने बोलना एक का चार करना था। अभिषेक ने मधु को देखते ही इतराते हुए कहा- देखा! मेरी बहनें, दीदी सब मुझे कितना प्यार करती हैं। मेरे खाने पीने का कितना ख्याल है इन्हें! 

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ये सब सुनकर मधु अंदर ही अंदर आग बबूला हो रही थी लेकिन पढ़ी लिखी संस्कारी लड़की को माहौल झगड़े में बदलना व कलह करना उसने उचित नही समझा। करती भी ऐसा कैसे…?? उसे भी पता था कि अभिषेक अपनी माँ और बहनों के खिलाफ न एक शब्द बोलते हैं, न सुनना चाहते हैं। भाई को खुश करने के लिए छोटी ननद ने पूछा- भैया! डिनर में क्या खाएंगे?

अभिषेक ने मन ही मन खुश होते हुए उत्तर दिया- बहुत दिन हो गए, आज पनीर पराठा बना लो। मधु ये दृश्य देख के हैरान सोच रही थी, इन्हें कोई काम तो करना नही है सिर्फ दिखावा करना है अभिषेक के सामने। चाय पीने के बाद मधु बर्तन धोने लगी, लेकिन किसी ने उसका हाथ बटाना जरूरी नही समझा ।

माँ की अपनी ही ज़िद थी कि आया नहीं रखना है शरीर को आदत हो जाती है आलस्य की । स्कूल से थक के लौटने के बाद भी वो अकेली ही काम मे लगी रही। वो अपने काम मे लगी रहती और बाकी के सब उसके काम मे नुक्स निकालने में जुटे रहते। सासु माँ का बस चले तो शादीशुदा बेटियों को भी यहीं रख लें।

वैसे भी नज़दीक ससुराल होने की वजह से सब मायके में ही चढ़ी रहती हैं ।अंदर ही अंदर घुट ते हुए मधु सोच रही थी , एक तो इतनी महंगाई की एक लोग की कमाई से घर का खर्च न चले और ऊपर से हमेशा इन सबका यहां डटे रहना। लेकिन मजाल किसकी थी जो अपने मुँह से सासु माँ को ये बात कहे।

उनका तो बस यही सोचना था। मेरे बेटे का घर है, मैं बेटे की माँ के अधिकार से हूँ, बहु की कमाई नही खा रही। अभिषेक भला बुरा कुछ नही सुनते, बस माँ के पल्लू में बंध के रहने वाले थे। माँ ने जो सही किया , सही और जो गलत किया वो भी सही। और अभिषेक की माँ इसी बात का फायदा उठाते हुए उसकी कमाई फालतू के खर्च में लुटाते रहती।

किचेन जाकर मधु ने डिनर की तैयार करनी शुरू कर दी, फिर डाइनिंग टेबल पर सबको बुलाया और खाना परोसा। बर्तन धोया, और किचेन समेटते समेटते देर रात हो गयी, सोने गयी तो देखा, अभिषेक लैपटॉप में ब्यस्त थे। अभिषेक ने पूछा- इतनी देर हो गयी काम करने में? मधु ने कहा- सारे काम एक अकेले इंसान को ही निपटाना है,

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तो समय तो लगेगा ही। अभिषेक चौंक कर पूछा… अकेले क्यों? माँ, दीदी और पिंकी ( छोटी बहन) सब तो करते हैं न काम? मधु ने कहा आज तक कभी किया है, जो अब करेंगी। अभिषेक ने कहा- झूठ बोल रही हो, हमेशा तो करते रहती हैं सब। वो आप घर मे होते हैं तभी करती हैं, मधु ने कहा तो अभिषेक ने जवाब दिया कि जब घर आता हूं

वो सब काम पे ही दिखती हैं। बदले में मधु ने चुप्पी साध ली । बात बढ़ाना उसने जरूरी नही समझा। क्योंकि अभिषेक तो माँ और बहनों का भक्त था, जो उसे वो दिखाना चाहतीं वो वही देखता था। जब कि हकीकत ये थी कि अभिषेक के आने का समय सबको पता होता था, सब किचेन में घुस जातीं और मधु को दरवाज़ा खोलने कहते। 

खैर… रात बीती और एक नई सुबह हुई, भोर होते होते मधु उठी और सारे काम कर के फ्री हो के स्कूल के लिए तैयार हो गयी, तब तक उसकी सासु माँ उठ चुकीं थीं। दिन भर के बाद जब वह लौटी तो उसने देखा छत से कपड़े किसी ने नही उठाये और जोर की आंधी आने लगी,

वह पर्स रख के दौड़ी तभी तेज़ बारिश आयी और सीढियां चढ़ते चढ़ते उसका पैर तेजी से फिसला और वो लुढ़कती हुई नीचे आ कर गिरी। सिर से तेजी से खून बह रहा था और पैर बुरी तरह घायल । वो उठ नही पा रही थी। जल्दी से अभिषेक को फोन किया गया और मधु को सबने अस्पताल में भर्ती कर दिया।

ज्यादा चोट की वजह से उसका फ्रैक्चर पैर को प्लास्टर करना पड़ा और डॉक्टर ने हिदायत दी कि तीन महीने बेड से उठना नही है। मधु की आंखे खुली तो वह अभिषेक के आंखों में आंसू देखी तो उसे भी रोना आ गया। अभिषेक ने प्यार से तसल्ली देते हुए कहा-” जल्दी ठीक हो जाओगी मैं हूँ तुम्हारे साथ हूँ । मधु भी स्वयं को हल्का महसूस कर रही थी। अस्पताल से मधु जब घर आई अभिषेक उसके बिस्तर के पास कुर्सी लगा कर बैठा रहता। मधु की सास ने आकर तीनो बेटियों के पास जाकर कहा, अब कैसे होगा घर का काम, आदत ही छूट गयी है।

 अगले दिन आफिस के लिए जब अभिषेक तैयार होने लगे, तो देखा सारे घर गन्दगी मची है। कोई बहन सो रही, कोई टी.वी देख रही है। माँ से पूछा नाश्ते में क्या है तब टेबल पर रखे ब्रेड जैम पे उसकी नजर पड़ी। आधी भूख उसकी खत्म हो गयी, अब रोज का यही था ।

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ठीक खाना न मिलने से वो चिड़चिड़ा हो रहा था। तंग आकर आखिर एक दिन उसने कह ही दिया- माँ ये घर कुछ दिनों में कबाड़ खाने जैसा क्यों दिख रहा? आखिर पहले सब काम साफ और समय से खाना भी मिल जाता था । उसकी दीदी ने सफाई देते हुए कहा भाई! हम तो करने मे लगे ही हैं। पर कितने दिन ये सब झूठा ड्रामा चलता ।

 एक दिन अभिषेक की माँ की तबियत बहुत खराब थी पर उन्हें पता था कि कोई बेटी उनका हाथ नही बटाने वाली वो करने लगीं काम तो उन्हें चक्कर आने लगा उन्होंने बेटियों को आवाज़ दी पर वो आराम से फोन पर गप्पे मारने में लगी थीं, और वहीं से माँ के ऊपर  चिल्लाने लगी और हाथ भी नही बटाया। क्या माँ..?

थोड़ा काम भी नही कर सकती हम कुछ दिन तो यहां आराम कर लें। जी मे आया कि बोले भाभी और माँ की तबियत खराब है और तुम्हे आराम दिख रहा है।लेकिन उन्हें भी पता था कि बेटियाँ बदतमीज हैं कुछ बोल देंगी तो टेंशन हो जाएगा, मन में में खयाल आया रहे थे फिर मेरी बहु को कौन देखेगा। इन सब से अच्छी तो मधु है सारे काम भी कर के खुश रहती है,

प्यार से भी बोलती है और कोई शिकवा नही करती। इन्ही बेटियों की वजह से तो मैं उसे दुख देती थी। आज कोई बेटी मुझे कष्ट में देख के भी करने को राजी नही। वैसे भी.. बेटी कम मधु तो बेटियों से भी ज्यादा सगी हो गयी । अभी तो छुटकी की शादी हो जाएगी वो अपने घर जाएगी और बाकी की 2 तो आराम ही करती हैं।

अगर बुढ़ापे में शरीर को रोग पकड़ लिया तो बेटियां तो कुछ दिन आ के चली जाएंगी और मेरी असली बेटी तो बहु ही है, जो हमेशा साथ देगी। बार बार ये विचार मन मे आ रहे थे । धीरे धीरे मधु ठीक होने लगी अब । एक दिन उसने सासु माँ को चाय बनाते देखा तो वो उठने की कोशिश करने लगी, फिर माँ ने रोकते हुए उसे जूस दिया और मधु के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली..”

और आराम कर मेरी बेटी! फिर छुटकी को बुलाया आज खाना बना दे तू। उसने बोला- क्या माँ! भाभी की ऐसी हालत हुई तो हमें क्यों परेशान करने लगी। माँ ने तमतमाते हुए कहा क्योंकि तुम सब की भी जिम्मेदारी है एक घर मे रह के हाथ बटाने की, और ससुराल जाएगी तो क्या करेगी ? सीखना शुरू कर।

अगली सुबह जब मधु पूरी तरह ठीक होकर उठी और स्कूल जाने की तैयारी करने के लिए घर के काम शुरू करने को हुई तो माँ ने आवाज़ लगाई और सबको अलग अलग काम समझा दिया। दोनों शादी शुदा नन्दो ने तो अपने ससुराल का रुख कर लिया और छुटकी घर के कामों में हाथ बटाने में व्यस्त। मधु समझ नही पा रही थी एक दुर्घटना से सबकुछ इतना कैसे बदल गया । कल तक नही समझने वाली सासु माँ और ननद अचानक कैसे बदल गईं। शायद … अनजाने में एक नई सीख मिल गयी थी।मन ही मन सोच के मधु अभिषेक   को देखकर मुस्कुराई।।।।।।

मौलिक, स्वरचित

अर्चना सिंह

#दिल का रिश्ता

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