नई शुरुआत… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

“कैसी सीमा रेखा अतुल… आप कहना क्या चाहते हैं…? क्या इतने सालों बाद भी ऐसी बात आपको शोभा देती है… बीस साल हो गए हमारी शादी को… इतने बड़े-बड़े बच्चे हैं… अगर उन्हें पता चला की मां पापा में किस बात की बहस चल रही है तो वह क्या समझेंगे…?”

” सुनने दो और समझने दो जो समझेंगे… तुम्हें इस बात को तूल देने की जरूरत नहीं… जितना कहा है बस वही याद रखो…!”

” पर अतुल… वह मेरी दोस्त का पति है… अर्पिता के हस्बैंड से तुम्हारी भी तो बनती है… फिर आज क्या ऐसा देख लिया आपने… कि मुझे सीमा में रहने को बोल रहे हैं… बात ही तो कर रही थी ना… हां थोड़ा हंसकर… थोड़े मजाकिया हैं… हंसाते हैं… तो क्या अब जोक्स पर भी… आपकी तरह मुंह बना कर निकल जाऊं…!”

 अभी कुछ महीने पहले ही अतुल का भोपाल ट्रांसफर हुआ था… यहां अनु की सबसे खास दोस्त अर्पिता का घर पास ही था… अतुल हमेशा से थोड़ा रिजर्व रहते थे… उन्हें लोगों का घर पर अधिक आना जाना पसंद नहीं था… अर्पिता के पति सुनील अतुल के स्वभाव से बिल्कुल विपरीत थे…

शुरू-शुरू में तो कुछ दिन अतुल को भी उसका हंसमुख और मिलनसार स्वरूप अच्छा लगा… उसकी मदद से नए शहर में सब सेटल करना बहुत आसान हो गया…सारी व्यवस्थाएं सुनील ने हंसते-हंसते मैनेज कर दी… पर अब सब व्यवस्थित हो जाने के बाद भी… उसका घर पर बराबर आना जाना… अतुल को अखड़़ने लगा था… 

वह बार-बार अलग-अलग तरीकों से अनु को समझाने की कोशिश करता… आज तो बिना किसी काम के घंटे भर अकेला बैठा… अनु के साथ हंसी मजाक करता सुनील… अतुल को बुरी तरह अखड़़ गया… इसलिए उसके जाते ही… अतुल ने अनु को चेतावनी दे डाली की “सुनील से इतनी नजदीकियां बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं… जैसे मैं समय नहीं देता… उसे बोलता छोड़ उठ जाता हूं… वैसे ही तुम भी उठ जाया करो… थोड़ा सीमा में रहा करो…!”

 पर यह बात अनु को चुभ गई… आखिर उसकी दोस्त का पति था सुनील… इतना हंसमुख इंसान… वह उसका दिल नहीं दुखाना चाहती थी…

 आज इतनी बहस होने के बाद भी… अगले दिन फिर से सुनील… सुबह-सुबह ताजी पालक की पत्तियां लेकर दरवाजे पर हाजिर था… अनु करे तो क्या करे… अतुल तो एक छोटी सी स्माइल देकर घर के अंदर चला गया… अनु भी कैसे अंदर चली जाए… पर आज उसका मन कल के वाकये से थोड़ा सचेत था… उसने सुनील को कुछ बहाना बनाकर निपटा दिया जल्दी…  

अतुल की नाराजगी सुनील के लिए… अनु का सिर दर्द बन गई थी… सुनील भी पता नहीं क्यों… हर दूसरे या तीसरे दिन कुछ ना कुछ लेकर या फिर चाय पीने के बहाने से… कभी सुबह तो कभी शाम पधार ही जाता… अब तो अनु भी आजिज होती जाती थी… आखिर करे तो क्या… सुनील को कुछ कह नहीं सकती थी… और अतुल तो पहले से चीढ़े बैठे थे…

 आखिर कोई हल न मिलते देख… अर्पिता से ही बात करने की सोच… एक दिन सबको कम पर भेज अनु निकल गई अर्पिता से मिलने… अर्पिता नहा धोकर बैठी पराठे खा रही थी… अनु को अचानक दरवाजे पर देख अकचका गई…” अरे यार… तू कैसे इतनी सुबह…!”

” हां अर्पिता कुछ काम था…!”

” आओ ना… तुम्हें आने की क्या जरूरत थी… यह तो गए ही होंगे सुबह… इनसे बोल देती… या फिर फोन ही घुमा देती… मैं सुनील को भेज देती…!”

” अरे नहीं यार… इसी बारे में तो बात करनी है…!”

” क्या हो गया… इस बारे में क्या बात करनी है…!”

” देखो अर्पिता… हम तुम बचपन के दोस्त हैं… एक दूसरे को अच्छे से जानते हैं… पर अतुल का स्वभाव कुछ अलग है… उन्हें सुनील जी का बार-बार हमारे घर आना पसंद नहीं आता है… इसी कारण हमारे बीच कहासुनी भी हो चुकी है… मैं बस इतना कहना चाहती थी कि… तुम अपने तरीके से… जिससे कि उन्हें बुरा भी ना लगे… समझा दो कि हफ्ते में या दस दिन में ही मिला जाए तो बेहतर है…!” 

अनु को नहीं मालूम था कि सुनील भी घर में ही थे… वह बाहर जाने को तैयार हो ही रहे थे… अनु की आवाज सुन बाहर आने को हुए… तो उसके मुंह से यह बात सुन सकपका गए… अनु भी उन्हें देख असंयत हो गई…” आज सुनील जी अभी तक घर में ही हैं…!”

” हां आज कुछ ज्यादा काम नहीं था… तो सोचा जरा देर से ही जाऊंगा…और एक तरह से अच्छा ही हुआ… मुझे भी लग रहा था… अतुल उखड़े उखड़े रहते हैं… कोई बात नहीं अनु… आप चिंता मत करिए… मैं नहीं आऊंगा…!”

” सुनील जी… आप बुरा मत मानिएगा… उनका स्वभाव ही ऐसा है…!”

” कोई बात नहीं अनु… आप जाइए…!”

 अनु वापस आ गई… यह बात उसने अतुल से भी नहीं की… कई दिन बीत गए… सुनील नहीं आए तो अतुल को शक हुआ… पूरे 1 हफ्ते बीत गए… वैसे तो यह आदमी हर दूसरे दिन हाजिर हो जाता था… अब क्या हो गया… दस दिन हो गए तो अतुल ने ही अनु से पूछा…” क्या हो गया… सुनील जी नहीं दिख रहे हैं… कुछ हुआ है क्या…?”

” आपको क्या… आपके लिए तो अच्छा ही है ना…!”

” पहेलियां मत बुझाओ… कुछ हुआ है तो बोलो…!”

 अनु ने उस दिन की सारी बातें अतुल से कह सुनाई… फिर कहा…” अच्छा ही हुआ ना…!”

 अतुल बिल्कुल झुंझला गया…” यह क्या किया अनु तुमने… मैंने उन्हें टरकाने को कहा था… तुम तो सीधे रिश्ता ही तोड़ आई… लाओ फोन लाओ… नहीं फोन से नहीं… अब तो मुझे खुद ही जाना पड़ेगा…!”

 अगले दिन अतुल अनु को साथ लेकर अर्पिता और सुनील के घर गया… दिल खोलकर बातें की… और अपने बर्ताव के लिए माफी भी मांगी… अर्पिता ने आगे बढ़कर कहा…” नहीं अतुल माफी मत मांगिए… गलती सुनील की है… हर रिश्ते की एक सीमा रेखा होनी चाहिए… चाहे वह दोस्ती हो या रिश्तेदारी… अनु मेरी दोस्त है… सुनील का रोज-रोज उससे मिलने जाना गलत ही है… इसमें आपका कोई दोष नहीं…!”

 “हां अतुल… अर्पिता सही कह रही है… गलती मेरी ही थी…!”

“पर जो भी हो… इतने से बात से क्या हमारा प्यार भरा दोस्ती का रिश्ता टूट गया अर्पिता…!” अनु दुखी हो कर बोली… 

“अरे नहीं अनु… यह किसने कह दिया…!”

” फिर दस दिन हो गए तुम लोगों ने तो बिल्कुल ही खोज खबर लेना बंद कर दिया…!”

” बस हम भी इसी सोच में थे कि क्या कहें… हमारी वजह से तुम दोनों में तकरार हो गई… खैर… अब कोई बात नहीं… हम अपनी दोस्ती और उसकी सीमा रेखा दोनों का मान रखेंगे…!”

 सब ने रात का खाना साथ में खाया… और दोस्ती की नई शुरुआत कर प्यार से विदा हुए…

स्वलिखित 

रश्मि झा मिश्रा 

#सीमा रेखा

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