अपने इकलौते बेटे अंकुर के विवाह के लिये वसुंधरा जी ने अनगिनत सपने देखे थे लेकिन कनाडा जाते ही उसने सूचना दी कि साथ काम करने वाली एक विजातीय लड़की तान्या के साथ उसने विवाह कर लिया है तो उनके सारे सपने चूर- चूर हो गये थे।पति से अक्सर कहतीं कि आजकल के बच्चे अपने माता-पिता का सम्मान नहीं करते…
नयी पीढ़ी को परिवार-समाज से कोई सरोकार नहीं है।भारत आने की बात पर बेटा अपनी व्यस्तता बताता तो वो अपना मन मसोसकर कर रह जातीं और बेटे-बहू से विडियो काॅल पर बातें करके ही संतोष कर लेती थीं।
तीन साल बीत गये…उनके रिश्तेदारों ने उनसे पूछना शुरु किया कि कोई खुशखबरी? कोई कहती,” अंकुर के बाद तो मेरे भतीजे की शादी हुई थी और अभी देखो…गोद में बेटा खेल रहा है।” तो कोई कहती,” आजकल की बहुएँ तो बच्चा करना ही नहीं चाहती..।”
दादी बनने के सपने तो वसुंधरा जी भी देख रहीं थीं लेकिन अब इतनी दूर से…बच्चों से ये सब…।दूसरों की बातें सुनकर तो कभी-कभी उनके मन में भी नकारात्मक ख्याल आ ही जाते थें।
दो दिन पहले जब अंकुर ने बताया कि माँ…हम लोग आ रहें हैं और कुछ दिन आपके साथ रहेंगे तो वसुंधरा जी खुशी से नाच उठीं थीं।वो बेटे का कमरा ठीक करवाने लगी…उसकी पसंद की चीज़ें जुटाने लगी।
उन्होंने खुले दिल से बेटे-बहू का स्वागत किया।घर-परिवार..कनाडा-भारत की बातें हुईं और दो दिन बीत गये।एक दिन वो रसोई में थीं तो उन्होंने देखा कि तान्या कामवाली चंपा के दो वर्ष के बच्चे को पुचकार रही थी।उन्होंने सोचा कि यही मौका है।बस तुरन्त पूछ लिया,” बेटी…तुम दोनों के विवाह के तीन बरस होने को आये..अब आगे क्या सोचा है…अपना परिवार बढ़ाने..।”
तान्या सास का हाथ पकड़कर उन्हें कुरसी पर बिठाते हुए बोली,” मैं आपसे इसी के बारे में बात करना चाहती थी मम्मी,…आईये..बैठिये ना…।” वसुंधरा जी घबरा गईं, बोलीं,” चिंता मत कर…कोई भी प्राब्लम होगी तो हम इलाज़ करवायेंगे..।”
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तान्या हँसते हुए बोली,” ऐसी कोई बात नहीं है।दरअसल…।” वो चुप हो गई।
” बता ना..क्या बात है..मैं भी तो तेरी माँ हूँ….फिर हिचक कैसी..।”
” वो क्या है कि..हम दोनों अपना बच्चा करना नहीं चाहते हैं मम्मी..हमारे आसपास इतने ऐसे बच्चे हैं जिन्हें एक वक्त का खाना भी नहीं मिल पाता है।आपकी इज़ाजत हो तो हम उन्हीं में से एक को अपनाकर उनका भविष्य सँवारकर अपना जीवन सार्थक करना चाहते हैं।अंकुर आपसे बात करने में हिचकिचा रहें थें तो मैंने..।” कहते हुए तान्या उनकी तरफ़ उम्मीद भरी नज़रों से देखने लगी।
वसुंधरा जी को समझ नहीं आया कि क्या ज़वाब दे।नयी पीढ़ी में अभी में संवेदनाएँ जीवित हैं..ऐसा उन्होंने कभी सोचा नहीं था।समाजसेविका बनकर उन्होंने कई कार्य किये थे…अनाथ बच्चों को गोद लेने के लिये लोगों से अपील भी किया था लेकिन ये नेक कार्य उनके घर से..उनके बेटे के हाथ से होगा..
.ऐसा उन्होंने कभी नहीं सोचा था।उन्होंने तान्या का माथा चूम लिया और आशीर्वाद देती हुई बोलीं,” तुमने जो सोचा है..उस कार्य को पूरा करो…मैं और तुम्हारे पापा पूरा सहयोग देंगे।”
” थैंक यू मम्मी…।” कहते हुए तान्या ने उनके चरण-स्पर्श किये तो उन्होंने उसे गले से लगा लिया।अंकुर और उसके पिता वसुंधरा जी का ये रूप देखकर चकित थे और खुश भी।
विभा गुप्ता
स्वरचित