नई माँ – सविता गोयल : Moral Stories in Hindi

” माँ.. माँ…. बाबा, मां को क्या हुआ?? मां बोलती नहीं ?? ,,
अपनी अचेत पड़ी मां दमयंती को हिलाते हुए नन्हा सा तीन साल का वासु पूछे जा रहा था।

रघु ने उसे खींचकर अपने कलेजे से लगा लिया ,
” बेटा, अब तेरी मां नहीं बोलेगी । वो भगवान के पास चली गई ।,, सिसकते हुए और वासु का सर पुचकारते हुए रघु बोला ।

वासु के लिए ये सब समझना बहुत मुश्किल था। उसे तो बस उसकी मां चाहिए थी जिसका आंचल पकड़कर वो सारा दिन घूमता रहता था । जो उसके पीछे-पीछे घूमकर उसे खाना खिलाती थी और जो उसे थपकी देकर लाड लडाते हुए सुलाती थी।

रघु की माँ उमा जी भी एक कोने में निष्प्राण सी बैठी थीं। एक तो बहु का यूँ असमय चले जाना और ऊपर से अपने बेटे और पोते के आगे की भविष्य की चिंता ने उन्हें और भी बूढ़ा बना दिया था।

 सब कहते हैं कि बेटा बुढ़ापे का सहारा होता है लेकिन ये बात तो बुजुर्ग भी अच्छी तरह समझते हैं कि असली सहारा था इस उम्र में बहू होती है जो दिन रात उनका ख्याल रखती है । जो घर की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाकर उनके कंधों का बोझ हलका करती है।

इस उम्र में बहू का विछोह बुजुर्गों के कंधों का बोझ दुगना बढ़ा देता है जिससे उनके कंधे पहले से भी ज्यादा झुक जाते हैं । फिर बेटे पोते का मायूस चेहरा देख कर एक मां खुद को कितना लाचार समझती है ये एक मां के दिल से बेहतर कोई नहीं समझ सकता।

जैसे तैसे तेरहवीं का काम निपटाया गया। जिंदगी गुजर रही थी लेकिन बेरंग सी । वासु सारा दिन पूछता रहता , ” बाबा, मां कब आएगी?? , दादी , मां कब आएगी ? ,,

इस कहानी को भी पढ़ें:

दत्तक माँ -नीरजा कृष्णा

उसके इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था ।
लेकिन एक दिन उमा जी बोल पड़ी ,” बेटा तेरी मां जल्दी आएगी …. अब तेरी नई मां आएगी । ,, उनकी बात सुनकर रघु अवाक सा मां का मुंह देखने लगा ।

” मां, क्यों इस बेचारे को झूठी आस दिखा रही हो !! ,,

” नहीं रे रघु , मैं झूठी आस नहीं दिखा रही। मैं अब तुम दोनों को यूं मायूस नहीं देख सकती … बेटा तूं दुसरी शादी कर ले । ,,

” ये तूं क्या बोल रही है मां !!! अभी दमयंती को गए महीना भी नहीं हुआ और तूं दूसरी शादी के लिए बोल रही है!!! नहीं…. मुझे नहीं करनी शादी । ,,

 ” अरे पगले , जितना दुख तुझे है ना उतना दुख मुझे भी है अपनी बहू खोने का । अपने लिए ना सही , एक बार इस नन्ही जान पे तो तरस खा । बेचारा कैसे रहेगा मां के बिना ?? ,,

” लेकिन मां , क्या भरोसा वो आने वाली इसके साथ कैसा व्यवहार करे …. मैं अपने मुन्ने को सौतेली मां के हवाले नहीं कर सकता। मैं खुद पाल लूंगा मेरे बच्चे को।,,

” चुप कर रघु, बच्चे पालना इतना आसान नहीं होता । मैं भी भला कितने दिन बैठी रहूंगी!! अब मैं तेरी एक ना सुनूंगी। एक लड़की है मेरी नज़र में। बड़े भले घर की है लेकिन बेचारी की किस्मत बस तेरे जैसी हीं निकली । शादी के तुरंत बाद ही पति मर गया और ससुराल वालों ने वापस मायके भेज दिया। देखना भगवान ने चाहा तो वो जरूर अपने वासु को मां का प्यार देगी । ,,

उमा जी भी जिद्द पर अड़ी रही । आखिर एक मां अपने बच्चों की भलाई के लिए कोई भी रूप धर लेती है।

रघु भी मां की ज़िद के आगे हार गया और जल्द ही इमली वासु की मां बनकर इस घर में आ गई । गृहप्रवेश के बाद अंदर आते हीं वासु खुशी से सारे घर में नाचता फिर रहा था ,” मेरी नई मां आ गई … मेरी नई मां आ गई।,,

मुंह दिखाई के वक्त उमा जी ने वासु को इमली की गोद में बैठाते हुए कहा , ” बहू , अपनी सबसे कीमती चीज मैं तुझे सौंप रही हूं । चाहे मेरी सेवा कर या ना कर , बस इस बेचारे को मां की ममता जरूर दे देना । ,,

 वासु एकटक सा अपनी नई मां का मुखड़ा निहार रहा था ।उसकी मासूम, भोली सूरत देख इमली ने उसे अपने कलेजे से लगा लिया।

इस कहानी को भी पढ़ें:

संस्कारों की पाठशाला – कंचन श्रीवास्तव

अब तो इमली बहु बाद में थी लेकिन वासु की माँ जरूर बन गई थी… वासु जब अपनी तोतली जुबान में इमली को नई माँ बोलता तो इमली का चेहरा खिल जाता… इमली वासु के सारे काम करती… पीछे पीछे घूमकर उसे खाना भी खिलाती और बदमाशी करने पर माँ की तरह डांट भी लगाती… उमा जी भी अब निश्चिन्त थी कि घर संभालने वाली आ गई है… वासु को खुश देखकर रघु को भी अब इमली में दमयंती की छवि नजर आने लगी थी ।

एक रोज रघु की पहली पत्नी दमयंती के माता – पिता किसी काम से रघु के गाँव आए तो अपने नाती को देखने की लालसा से घर आ गए…. उमा जी उस समय अपने भाई से मिलने अपने पीहर गई हुई थीं …. अपने सास- ससुर के आने की खबर सुनते ही रघु भागा- भागा खेत से आ गया…. ।
घर आकर देखा तो ससुर रामानंद जी वासु को खुद से चिपकाकर जोर जोर से बोल रहे थे, ” मेरी बेटी तो बेचारी असमय चली गई लेकिन हमारे नाती को भी इस घर में दुत्कार मिलेगी तो मैं इसे यहाँ नहीं रहने दूंगा.. मैं इसे ले जा रहा हूँ । ,,

इमली एक कोने में किसी अपराधी की भांति खड़ी सुबक रही थी ।
रघु के बहुत पूछने पर कि क्या हुआ वासु की नानी बोली ,” दामाद जी, हमें आपसे ये उम्मीद नहीं थी…. हमारी बेटी को गए कुछ महीने भी नहीं हुए की दूसरा ब्याह रचा लिया.. और हमारे नाती को ऐसी औरत के हाथों सौंप दिया जो इसे छड़ी से पीट रही है!! आपको नहीं पता औरतें कितने रूप बदलती हैं.. आपके सामने कुछ और पीछे से कुछ और हीं ।,,

 रघु अवाक सा इमली की ओर देखने लगा ।

” जी.. वो… मैं.. मार नहीं रही थी… वो बार बार पानी में भीग रहा था तो बस उसे डरा रही थी…। ,, सुबकते हुए इमली बोली।

रघु जानता था कि इमली और वासु का एक दूसरे से कितना लगाव है। और इमली कभी वासु को चोट पहुंचाने की सोच भी नहीं सकती लेकिन शायद इस समय वासु के नाना- नानी कोई सफाई सुनने की स्थिति में नहीं थे… . उन्हें तो बस इमली सौतेली माँ हीं लग रही थी ।

रघु से ये कहकर कि हम अपने नाती को कुछ दिन अपने साथ रखेंगे… आखिर हमारा भी तो अपने नाती पर कुछ हक बनता है….. रामानंद वासु को अपने साथ ले गए।

इमली ठगी सी वासु को निहारे जा रही थी.. उसकी आँखों से अविरल धारा बहे जा रही थी… वासु भी रो रहा था लेकिन उसके रोने का सही कारण उस समय उसके नाना नानी को नजर नहीं आया ।

इस कहानी को भी पढ़ें:

सम्मान की रक्षा – अनुपमा 


ननिहाल पहुंचकर भी वासु चुप ना हुआ.. बहुत सारे खिलौने और तरह तरह के पकवान भी उसे अच्छे नहीं लग रहे थे। उसकी तो बस एक ही रट थी.. नई माँ के पास जाना है.. नई मां के पास जाना है ‌ रोते रोते हीं वो सो गया।

इधर इमली का सारा बदन बुखार से तप रहा था… ना कुछ खाए ना कुछ पीए । जब उमा जी वापस आईं तो सब कुछ देख- सुनकर हैरान थी…

रघु से बोली, ” तेरे सास ससुर ने ये भी ना सोचा कि माँ लाड करती है तो गलती पर बच्चे को डांटती फटकारती भी है । उन्हें तो बस इमली का सौतेली माँ होना खटक गया.. क्या दमयंती ना डांटती थी वासु को!! ,,

दो दिन बीत गए लेकिन ना वासु ने कुछ खाया ना इमली ने । हारकर रामानंद जी वासु को लेकर रघु के द्वारे वापस आ गए।
आते ही वासु चिल्लाया , ” माँ……. नई माँ….. ,,

वासु की आवाज सुनते ही जैसे इमली में भी जान आ गई । वो भागती हुई आई और वासु को गोद में उठाकर उसका माथा चूमने लगी ,

” क्यूं चला गया था रे तूं मुझे छोड़कर ?? ,, रोते रोते इमली बोल रही थी और वासु उसकी छाती से ऐसे चिपका हुआ था जैसे उसे उसका जहान मिल गया हो ।

रामानंद की आंखें दोनों को देखकर भीग रही थी । रघु और उमा जी भी नम आंखों से दोनों मां बेटे का मिलन देख रहे थे। रामानंद जी ने इमली के सर पर हाथ रखते हुए कहा ,” मुझे माफ कर दे बेटी , मेरी आंखों पर पट्टी बंधी थी जो मैं तेरी ममता न देख पाया । शायद अपनी एक बेटी के मोह में दूसरी बेटी के साथ अन्याय कर रहा था। सदा खुश रह। ,, कहते हुए रामानंद विदा होने लगे तो इमली ने रोकते हुए कहा , ” बाऊ जी, बेटी के घर से क्या बिना जल पान किए वापस लौट जाओगे। आप बैठो मैं अभी आई । ,,
रामानंद भी पता नहीं किस मोह पाश में बंध कर बैठ गए । शायद उन्हें भी इमली में अपनी बेटी की छवि नजर आ रही थी।

लेखिका : सविता गोयल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!