अरे,ये कौन है,किसने मेरी आँखें बंद की है।ये तो मेरा शैतान बच्चा लगता है।
हूँ-हूँ, दादू आप मुझे हर बार पहचान लेते हैं।क्या आपके पीछे भी आंखे हैं?
मेरे बच्चे, दादू के चारो तरफ आंखे हैं, पर वे तुझे ही देख पाती है।
दादू दादू आज तो आपको मुझे कोई कहानी सुनानी ही पड़ेगी।और हां वो राजा रानी वाली नही।कोई नई कहानी सुनाओ ना दादू।
अच्छा बाबा आज तुझे कोई नई कहानी ही सुनाऊंगा।आ मेरी गोदी में आकर बैठ।
परमानन्द जी की उम्र 70 वर्ष से ऊपर की हो गयी है।सेवा निवृत्ति के बाद से उनका एकलौता बेटा राजीव अपनी मम्मी पापा को अपने साथ ही लिवा लाया था।जिंदगी भर बड़े बंगले में रहने के आदि परमानंद जी को फ्लैट में रहना अटपटा सा लगा।वे यहां घुटन सी महसूस करते।वो तो ये गनीमत थी कि उस फ्लैट की बॉलकोनी पार्क साइड में थी,सो परमानन्द जी अपनी पत्नी सरोज के साथ वही बैठे रहते,जिससे उनका समय व्यतीत हो जाता।फिर एक पोता भी आ गया तो उन्हें थोड़ी राहत मिली।
परमानंद जी दिन भर अपनी पत्नी के साथ बॉलकोनी में बैठे बतियाते रहते और शाम को अपनी सोसायटी के पार्क में आ जाते।यहां उनकी उनके हमउम्र कृष्णा से मित्रता हो गयी थी,सो दोनो एक डेढ़ घंटे एक साथ बैठकर अपने अनुभव शेयर करते रहते।दोनो में खूब पटती थी।परमानंद जी हमेशा कहते रहते कि बेटे के पास समय की कमी है,और वे यहां आकर अकेले पड़ गये हैं।फिर अपने नगर के अनुभव सुनाते हुए कहते कि कैसे नगर के लोग उनका सम्मान करते थे,कितनी बड़ी कोठी थी,यहाँ तो ये फ्लैट दड़बा सा लगता है।कृष्णा जी हमेशा उनकी बातों को हंसकर टाल जाते और कहते परमानंद यही रहने की आदत डाल लें,कब तक पुराना रोना रोता रहेगा।
और एक दिन ऐसा आया सरोज भी परमानंद जी का साथ छोड़ गयी।अब तो परमानंद जी का अहसास ही निपट अकेलेपन का हो गया।परमानंद जी अंदर तक बुरी तरह टूट से गये।कृष्णा जी से भी बात तो करते पर ऐसे जैसे कही खोये खोये हों।अब वह अपने नगर वापस जाने की सोचने लगे थे,उन्हें लगता कि वहां जाकर उनका अकेलापन दूर हो जायेगा।
कृष्णा जी एक दिन बोले परमानंद देख मैं तो हमेशा तेरी ही सुनता आया हूँ,अपनी न तो मैंने कभी कही और न तूने सुननी चाही।पर आज सुन,देख मैं रिटायर्ड आईपीएस हूँ, अपने बेटे के पास रहता हूँ।तुम मेरे आईपीएस होने के रुतबे को समझ सकते हो,पर मैंने रिटायर होते ही उस जिंदगी को बिसार दिया।पुलिस की नौकरी में हमेशा खुद खटते रहे,अब सोच लिया था,कि अपने बेटे ,अपने पोते पोतियों के बीच रहूँगा।आज मेरे पास समय ही समय है,इसलिये मैं पूरे दिन अपने पोते
और पोती के साथ व्यतीत कर असीम खुशी का अनुभव करता हूँ।सोचता हूँ, बेटे के पास समय नही है तो क्या हुआ उसने पोता और पोती तो खिलौने रूप में हमे दिये हैं।हमारे बेटे ने हमे उपेक्षित रूप में अपने घर मे तो नही छोड़ा है,अपने साथ लाया है।परमानंद चले तो जाओगे अपने नगर पर वहां अपने घर मे जब रात में अकेले सोना चाहोगे ना तब तुम्हारे सामने तुम्हारा पोता आकर खड़ा हो जाएगा,और बोलेगा दादू सुनाओ न एक कहानी,तब क्या सो भी पाओगे?अरे परमानंद मृगमरीचिका से बाहर निकल वर्तमान में खुशी ढूंढो यार।
कृष्णा का एक एक शब्द परमानंद जी के जेहन में उतरता जा रहा था,सही मायने में कृष्णा ने उन्हें आइना दिखाया था।वास्तव में बिना पोते के तो अब उन्हें अपनी कल्पना करना ही सिहरन पैदा कर रहा था।उन्हें प्रतीत हुआ कि बेटे के पास से जाना तो जीवन से पलायन करने जैसा है। ये भी तो अपना घर है,तो वह क्यो जाने की सोचता है ,खुशियां यही क्यों नही ढूंढता?
परमानंद जी आज अपने को बहुत ही हल्का महसूस कर रहे थे।शाम को जब राजीव घर आया तो परमानंद जी ने बेटे को आवाज देकर बुलाया और बोले अरे राजू बेटा सुन तो…..।हाँ बाबूजी,आया… क्या बात है,बाबू जी?सब ठीक तो हैं ना?
सब ठीक है बेटा, मैं कह रहा था राजू जिंदगी का अब पता नही कब तक है?
ऐसा क्यों बोलते है?बाबूजी,देख लेना आपका आशीर्वाद 100 वर्ष आयु तक मिलता रहेगा।
राजू वो तो ठीक है,बेटा वो अपने नगर का अपना बंगला है ना,बेटा समय निकाल कर उसे बेच दे।मैं जीते जी उसे बेचना चाहता हूँ।
पर बाबूजी,यहां कोई कमी तो है नही,फिर क्यो बंगले को बेचा जाये, पड़ा रहने दो ना।
नही मेरे बच्चे,मैं उसे अब एक मिनट भी नही रखना चाहता।
परमानंद जी सोच रहे थे कि राजू को वो क्या बताये कि वह बंगला उन्हें कैसे कमजोर बनाता है,कैसे वे कभी भी वहां जाने की सोचने लगते हैं।सच्ची खुशियों को छोड़ उस बंगले के कारण वे सपनो की दुनिया मे विचरण करने लगते है।
अपनी आंखों के पानी को पोंछते हुए परमानंद जी अपने पोते को आवाज देते हुए,बॉलकोनी की ओर चलते हुए कहने लगते हैं, आ रे मुन्ना चल तुझे आज सुनाऊंगा एक सच्ची और नयी कहानी।
मुन्ना भी दौड़ कर अपने दादू को पीछे से पकड़ कर उनके ऊपर चढ़ जाता है।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित।
#छोटी छोटी बातों में खुशियां तलाश करना सीखो