न्याय की गुहार  – पुष्पा जोशी

आज पूरे ३६ घंटे के बाद रोमा की चेतना लौटी।दो दिन के पहले घटी घटना से वह पूरी तरह दहल गई थी। उसकी आँखों में आँसू नहीं थे, मगर वह कुछ सोच नहीं पा रही थी, उसे लग रहा था कि एक शून्य उसके अंदर समाता जा रहा है, और वह किसी गहन अंधेरे में खोती चली जा रही है। रोमा की चेतना लौटी, उसके अन्तर्मन से आवाज आई ” रोमा… रोमा..तू इतनी कमजोर कैसे हो गई, तू औरों के हक के लिए लड़ जाती है,आज तुझे स्वयं के लिए लड़ना है।तेरा तो कोई अपराध है ही नहीं, फिर तू स्वयं को दंड क्यों दे रही है। वे दरिन्दे आराम से घूम रहे हैं, मजा कर रहे हैं और तू अपने आप को इस कमरे में बंद कर क्या साबित कर रही है, कि तू डर गई? नहीं तुझे हिम्मत से काम लेना है, तू डरने वालोें में से नहीं है। उन्होंनें तेरे साथ अन्याय किया है. तेरा शील हरण करना चाहा, तू उन्हें करारा जवाब दे, उन्हें सजा दिलवा ” अन्तर्मन की आवाज सुन एक ठोस निर्णय के साथ वह उठी, अपना चेहरा धोया, दरवाजा खोल कर माँ को आवाज दी – ‘माँ ओ…माँ ..।’ माँ दौड़ती हुई आई रोमा से लिपट गई,उसका रो रोकर बुरा हाल था बोली – ‘बेटा कैसी है तू ?  मैं दरवाजा बजा-बजाकर थक गई,तुझे कितनी आवाज दी, बेटा सब ठीक हो जाएगा’ माँ की रूलाई फिर फूट पड़ी। रोमा ने कहॉ – ‘हाँ माँ सब ठीक हो जाएगा, कुछ खिलाएगी भी या भूखी रखेगी अपनी बेटी को।’ आवाज सुनकर  मोहन बाबू भी कमरे से बाहर आए, और बोले ‘बेटा साथ में खाना खाते हैं,हमने भी नहीं खाया है।’ तीनों ने साथ में खाना खाया। रोमा अपने माँ पापा की इकलौती बेटी थी और बहुत लाड़ली थी। मोहनबाबू ने कहॉ – ‘बेटा तू जरा भी चिंता मत करना।’ माँ  बोली – ‘कल अनिमेष आना वाला है उसके आगे कोई बात मत करना। बेटा एक बार रिश्ता टूट जाता है तो रिश्ता करना मुश्किल हो जाता है।लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। बड़ी मुश्किल से अच्छा रिश्ता मिला है।’

रोमा ने दोनों की तरफ देखा और बोली – ‘ मैं झूठ और फरेब की बुनियाद पर अपने भविष्य की इमारत खड़ी नहीं करूँगी। रिश्ता हो, न हो मगर मैं कुछ नहीं छिपाऊँगी।’ कहते हुए वह अपने कमरे में चली गई।



          रोमा प्रगतिशील विचारों की थी, बी. ए. तृतीय  वर्ष की छात्रा थी,और टेनिस की अच्छी प्लेअर थी। इस खेल के दौरान ही उसकी अनिमेष से मुलाकात हुई थी।और यह  मुलाकात दोनों के रिश्ते तक पहुंच गई थी। दोनों परिवारों को कोई आपत्ती नही थी। अनिमेष हाइकोर्ट में वकील था, और इसी सिलसिले में बाहर गया था।  दूसरे दिन वह आया । रोमा की माँ रोमा को समझाना चाह रही थी,मगर मोहन बाबू ने रोक दिया, वे अपनी बेटी की जिद को जानते थे। चाय – नाश्ते के बाद अनिमेष रोमा के पास गया और बोला – ‘यह क्या रोमा! दो दिन से तुम्हें फोन लगा रहा हूँ, मगर मेडम का फोन स्विच‌आफ आ रहा है,आज भी चुप चाप बैठी हो, क्या सारी बातें खत्म हो गई मुझसे करने की, मैं जाऊं?’

       रोमा ने कहॉ – ‘तुमसे बात करने की हिम्मत जुटा रही हूँ, कहते-कहते रोमा का कंठ अवरुद्ध हो गया, न चाहते हुए भी दो अश्रु उसकी आँखों से छलक ग‌ए। अनिमेष ने उसके हाथों को थाम लिया और कहा – ‘बताओ रोमा क्या बात है, डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ।’ रोमा का मन कुछ शांत हुआ तो उसने बताया कि वह कॉलेज से घर लौट रही थी, रास्ते में जो अमलतास का पेड़ है उसपर फूलों की बहार आई है, इच्छा हुई उसका एक फोटो खींच लूं। मैं ध्यान से फोटो खींच रही थी,तभी तीन दरिंदे आए और उल्टा सीधा बोलने लगे। मैं जल्दी-जल्दी घर की तरफ बड़ी मगर उन्होंने मुझे दबोच लिया।’कहते-कहते रोमा का शरीर थर-थर कांपने लगा। फिर हिम्मत करके बोली मुझे अपने शरीर से घिन आ रही है, उन्होंने पता नहीं कहाँ – कहाँ  छुआ मुझे। तभी हमारे कॉलेज के दो प्रोफेसर वहाँ से निकले ,मैंने आवाज दी मगर उन्होंने शायद सुनी नहीं, मगर वे तीनों उन्हें देखकर भाग ग‌ए। मैं बड़ी मुश्किल से सबसे छिपते-छिपाते घर आई।’ रोमा ने अपने दोनों हाथों से चेहरे को ढका और फफक कर रो पड़ी।



       अनिमेष ने रोमा का चेहरा अपने हाथों में लेते हुए कहॉ – ‘रोमा तुम्हें कमजोर नहीं पड़ना है,हम उन्हें सजा दिलवाएंगे। मैं तुम्हारे साथ हूँ।’अन्याय उन्होंने किया है.अन्याय सहना भी अपराध है.हम उनके खिलाफ आवाज उठाएंगे.

      अनिमेष कुछ सोचते हुए बोला- ‘तुम्हारा मोबाइल बताना।’ रोमा ने उस घटना के बाद मोबाइल देखा ही नहीं था। मोबाइल को देखकर अनिमेष के चेहरे पर चमक आ गई बोला – ‘अब नहीं बच पाएंगे वे तीनों।’ रोमा उसे आश्चर्य से देख रही थी। रोमा अमलतास की तस्वीर खींच रही थी, उसमें वीडियो का बटन दब गया था,तीनों दरिंदे मोबाइल में कैद हो ग‌ए थे। रोमा ने उन्हें देखा तो उन्हें पहचान ग‌ई।एक उसके कॉलेज का ही था।

            अनिमेष ने कहॉ – ‘तुम मेरे साथ चलो,सब कुछ स्पष्ट बताना, मैं तुम्हारे साथ हूँ।वे दोनों कॉलेज में प्राचार्य के पास ग‌ए, रोमा ने सारी बातें खुल कर बताई, पहले तो प्राचार्य ने टालम टोली  की, मगर अनिमेष ने उन्हें वीडियो दिखाया और कहा यह आपके कॉलेज का मामला है, या तो उसे सजा दीजिए नहीं तो हम कोर्ट में लड़ेंगे।

         प्राचार्य ने उस लड़के को बुलाया, उसके साथियों को भी बुलाया वे दूसरे कॉलेज के थे। उनके प्राचार्य को भी बुलवाया और दोनों प्राचार्य ने आपसी सहमति से तीनों को तीन साल के लिए कॉलेज से निकाल दिया। तीनों ने रोमा से माफी मांगी। यह खबर सारे समाचार पत्रों के मुख पृष्ठ पर छपी और साथ में छपी रोमा की तस्वीर।रोमा और अनिमेष के भविष्य की इमारत झूठ की बुनियाद पर नहीं सच और विश्वास के आधार पर निर्मित हुई।

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक

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