Moral Stories in Hindi : दोपहर के तीन बजे थे। बेटे सोनू की बस का हार्न सुन रश्मि बाहर आयी,तो देखा मकान मालकिन स्मिता आंटी औरसोनू बाते कर रहे हैं ।
सोनू का बस्ता,वॅाटर बैग लेने रश्मि उनके पास गई ,आंटी के हाथ मे अखबार था। रश्मि को देख वे खुशी से चहक कर बोलीं , ‘, सुनो एक खुशखबरी है, आज के पेपर में —‘, वे कुछ बोलतीं तभी सोनू को सु सु लगी।
रश्मि ने कहा ‘आंटी चलिये न , मेरे घर — वहीं बैठ कर बातें करते हैं।’
आंटी को बैठा कर रश्मी सोनू को बाथरूम ले गई।
बाहर निकल कर आई तो स्मिताजी ने पेपर में छपी एक कहानी और उस पर छपे फोटो को दिखाते हुए कहा, ‘ये मेरी छोटी बहन गीता है,बहुत अच्छा लिखती है, उसकी कहानी को पुरस्कार मिला है।’
‘अरे वाह ये आपकी बहन है — आपने कभी बताया नहीं ; मैंने इनकी कई कहानियां पढ़ीं हैं , बहुत अच्छा लिखती हैं ।’
‘हाँ ,कभी मौका ही नहीं मिला ,हम तीन बहने हैं, बड़ी बहन बहुत अच्छा सितार बजाती है।’
‘अरे वाह आपके यहां तो सभी कलाकार हैं।’ तभी सोनू बस्ता ले कर बाहरआया, ‘मम्मी, टीचर ने नेचर का चित्र बनाकर कलर करने को कहा है , पर मुझसे ये नहीं बन रहा है।’
‘अच्छा देखती हूँ, पर पहले दूध तो पियोगे न ?’ कहकर रश्मि किचन में दूध लेने गई।
चाय, बिस्कुटऔर दूध का ग्लास ले कर वह बाहरआई तो देखा,आंटी सोनू को पेन्टिग सिखा रही थीं। ड्राइंग शीट पर बड़ा ही सुंदर दृश्य बना था, पेड़ ,झरना ,पंछी और सूरज।
‘मम्मी, देखो तो दादी ने कितना अच्छा चित्र बना दिया और कलर भी भर दिये हैं’।
रश्मि अपलक उस चित्र को देखती रह गई।
‘वाह आंटी, आप तो मास्टर हैं ड्राइंग में –‘ चाय का कप उन्हें देते हुए रश्मि ने कहा, तो वे फीकी सी मुस्कान लिए चाय पीने लगीं।
सोनू खुशी खुशी पेन्टीग लेकर अंदर रखने चला गया।
रश्मि ने आंटी से फिर पूछा, ‘क्या आपने भी कोई कोर्स किया है ?’ तो वे उदास लहजे मे बोलीं ‘हां fine arts में diploma किया था, पर ss — अब तो सब छूट गया।’
‘आप तो इतनी माहिर हैं ड्राइंग में,आप क्लास शुरु कीजिए ,छुट्टियों मे कई बच्चे आपसे सीखने आयेंगे।’
‘अरे नहीं -नहीं,अब मुझसे कहाँ हो पायेगा,कईssसालों बादआज मैंने ब्रश हाथ में लिया तो हाथ कांप रहे थे।’
‘कई सालों बाद मतलब ?’ पास बैठते हुए रश्मि ने बात शुरू की ,तो उन्होंने अपना सारा अतीत सामने रख दिया।
‘आप अभी भी शुरु कर सकती हैं,अब तो आपके पास समय ही समय है।’ रश्मि ने कहा , तभी ‘मम्मी,मैं खेलने जाऊं ?’ सोनू की आवाज सुन आंटी भी उठते हुए बोलीं , ‘अच्छा रश्मि चलूँ ,तुम्हारे अंकल भी दुकान से आते होगें।’
रात को सोनू को वह सुला रही थी , बाहर मेन गेट लॅाक करने की आवाज से स्मिता आंटी की दोपहर में कहीं बातें रश्मि को याद आ गई।
बड़े परिवार मे ब्याही स्मिताजी ने शादी से पहले fine arts मे diploma किया था उन्हें पेन्टिग का बड़ा शौक था । पर ससुराल में बड़े कुनबे में उनकी इस कला के लिये ना तो उनके पास समय था ना , किसी में उत्साह। पति की अनाज की दुकान थी। घर मे ही गोदाम था। सारा दिन घरेलू काम में बीत जाता। शुरू शुरू में उन्होंने चाव से पेन्टिग शुरू की पर गृहस्थी और बच्चो के जीवन में रंग भरते भरते मन और केनवास दोनों के रंग सूख गये।
यही सब याद आते ही रश्मि को लगा कि आंटी को motivation की जरूरत है पर कैसे ?
अभी दो तीन दिन ही बीते थे कि एक सुबह रश्मि ने देखा आंटी के घर काफी चहल-पहल है । देखा तो पता चला पुणे से उनका बेटा ,बहू बच्चों के साथ आये हैं।
दोपहर में रश्मि स्कूल की काॅपिया जांचने बैठी थी। तभी आंटीजी के बेटा,बहू उससे मिलने आये उसने मुस्कुरा कर उनका स्वागत किया , उन्होंने कहा कल आंटी जी का जन्म दिन है और वे उन्हें निमंत्रण देने आए हैं । उन्हें चाय के लिए पूछा , तो उन्होंने कहा कि उन्हें बाज़ार जाना है, gift लेने ।
शाम को रश्मि भी गिफ्ट लेने के लिए बाजार चल पड़ी।
जन्मदिन मनाकर दूसरे ही दिन सुबह की गाड़ी से आंटी जी के बेटा, बहू पुणे लौट गए , सोनू को स्कूल भेज रश्मि अपने स्कूल चली गई। उसके पति भी अपने आफिस चले गए।शाम को सोनू खेलकर घरआया तो,उसने एक कार्ड दे कर कहा,मम्मी,दादी ने ये आपके लिए दिया है। कार्ड handmade था,जिस पर घने बादलों से झांकते सूरज को आंटी जी ने अपने हाथों से पेन्ट किया था,देख कर लगा,”जैसे निराशा के घने बादलों को चीर करअपनी पूरी चमक लिए आसमान के नीले कैनवस पर अपनी सहस्र रश्मि रूपी तूलिका से चमकीले रंग बिखेरने को सूरज निकल आया है “।
कार्ड के अन्दर ‘thanks Rashmi’ तुमने इतना सुन्दर गिफ्ट दिया”लिखा था।
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सुबह रश्मि स्कूल जाने के लिए निकली बाहर मेन गेट के पास अंकल और आंटी खडे थे। अंकल गेट के ऊपर एक बोर्ड लगवा रहे थे, जिस पर
“स्मिता कला केन्द्र”
यहाँ पर ड्राइंग और पेंटिंग सिखाई जाती है। समय :अपराह्न 1 से 4.
आंटी के चेहेरे की प्रसन्नता देख रश्मि को यकीन हो गया कि आज का सूरज उनके जीवन में एक नया सबेरा ले कर आया है।
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लेखिका: श्रीमती प्रतिभा परांजपे,