नया सवेरा – निभा राजीव “निर्वी”  : Moral Stories in Hindi

“-मालती मौसी, मेरा कुर्ता पाजामा निकाल दो ना..” प्रणव ने मालती को आवाज देते हुए कहा।

“-अरे हां बेटा, निकाल दिया है और तुम्हारे कमरे में रख भी दिया है..”आह्लाद से भरकर मालती ने उत्तर दिया।

     सुखद भावनाओं के उद्वेग और पुलक को संभाले मालती दौड़ दौड़कर सारे काम निपटा रही थी। आज उसकी खुशियों के जैसे सारे बांध टूटे जा रहे थे और वह फूली नहीं समा रही थी …और होता भी क्यों नहीं, उनका लाडला मुन्ना प्रणव चिकित्सक जो बन गया था। आज मालती को लग रहा था जैसे उसके सारे सपने सच हो गए।

               सारे काम निपटाते निपटाते अतीत के सारे पल जैसे जीवन्त होकर मन की देहरी पर दस्तक देने लगे। ……छोटे से गांव में रहने वाले मालती के माता-पिता की एक दुर्घटना में आकस्मिक निधन के पश्चात उसके चाचा और चाची ने उसका पालन पोषण किया था। या यूं कहें कि सर छुपाने को एक छत मात्र दी थी।

लोक लाज के भय से और उसके पिता की संपत्ति का लाभ लेने के लिए उसके चाचा और चाची उसे अपने साथ ले तो आए थे परंतु उन्होंने सदैव उन्हें एक बोझ के अतिरिक्त कुछ नहीं समझा। मात्र 8 वर्ष के अल्प वय में जब वह स्वयं को समझना सीख ही रही थी कि वास्तविकताओं की झंझा में दुनिया के अनगिनत अप्रत्याशित रंग उसके समक्ष एक-एक करके खुलने लगे।

चाचा ने सरकारी विद्यालय में उसका नामांकन तो करवा दिया था, मगर उसे विद्यालय जाने और पढ़ाई करने का अवसर कम ही मिल पाता था। धीरे-धीरे चाची ने घर के सारे काम उसके जिम्मे में थमा दिए। चचेरे भाई भाई बहन भी उससे एक नौकरानी के जैसा ही बर्ताव करते थे।उसका नन्हा हृदय टूट कर विदीर्ण हो जाता था।

काम करते-करते शरीर के पोर पोर दुखने लगते थे तब जाकर कहीं कुछ बचा कुछ खाने को मिल पाता था। मालती इसी को नियति मानकर संयमित रहने का प्रयास करती थी तथा अपनी ओर से सदैव यही प्रयत्न करती थी कि सब लोग खुश रह सकें। परंतु छोटी सी भी त्रुटि हो जाने पर उसे लात घूसों से बुरी तरह पीटा जाता था।

इसी तरह साल दर साल बीतते गए और एक दिन चाचा ने पैसों के लालच में उसे एक रिक्शाचालक शराबी लड़के के साथ विवाह के बंधन में बांध दिया। और वह दुल्हन बनाकर उसके घर आ गई। परंतु दुर्भाग्य भी सहचर सा उसके साथ-साथ यहां भी आ गया था।

सास ससुर के प्रताड़नाओं के बीच वह पूरे दिन घर के काम करती और रात में पति के अहं और तन को संतुष्ट करती। वह आहत सोचती कि ईश्वर के पास सुखों के घट में से एक बूंद भी उसके लिए नहीं था….

पति की कमाई का बड़ा हिस्सा तो उसके पीने में ही खर्च हो जाता था। अगर वह छुपा कर दो पैसे बचाने का भी प्रयास करती थी तो वह भी नशे की हालत में वह मारपीट कर उसके छीन लिया करता था।‌परंतु उसके दुर्भाग्य और पीड़ाओं का घट जैसे अभी तक भरा नहीं था। विवाह के 7 वर्ष होने के पश्चात भी जब उसकी गोद हरी नहीं हुई तो प्रताड़नाएं और बढ़ गईं और जीवन जैसे नर्क हो गया। 

         अंत में जैसे तैसे वह पड़ोस में रहने वाली एक सहृदय महिला और उसके पति की सहायता से घर से भागने में सफल हो गई और रातों रात शहर पहुंच गई। 

         उस महिला के पति ने फोन के द्वारा अपने एक मित्र को जो शहर में रहता था, इसकी सहायता करने को राजी कर लिया। उसके मित्र ने भी कहा कि वह मालती को वहीं काम दिला देगा जहां वह ड्राइवर का काम करता है, और उन्हीं से कहकर वह उसे रहने की भी जगह दिलवा देगा। 

                 आनंद बाबू एक उच्च पदस्थ अधिकारी थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी और उनका एक डेढ़ वर्ष का पुत्र था। पुत्र के जन्म के कुछ ही महीनों के पश्चात ही अचानक उनकी पत्नी एक व्याधि के कारण पैरों से लाचार हो गई थी। ऐसे में बच्चों के पालन पोषण में भी बहुत परेशानियां आ रही थी। वृद्धा मां भी अब इतना नहीं कर पा रही थी।

अतः पूरा परिवार बहुत कठिनाइयों से जूझ रहा था। इसलिए उन्हें अपने पुत्र के लिए एक आया की आवश्यकता थी ही। अतः मालती को यहां काम मिल गया। 

             मालती बहुत मनोयोग से बच्चे की देखभाल करती थी। और आनंद बाबू का पूरा परिवार भी बहुत ही सहृदय था। मालती को जैसे एक नया जीवन प्राप्त हो गया था। वह बच्चे प्रणव की देखभाल तो करती ही थी और साथ ही आनंद बाबू की पत्नी नंदिता जी के पैरों की मालिश करना‌ और घर के अन्य काम भी निपटाना उसने जैसे सहज ही संभाल लिया था।

नन्हा प्रणव जिसे वह मुन्ना कह कर बुलाती थी,भी अब उससे बहुत घुल मिल गया था। वह बहुत प्रेम से उसके सारे काम करती…. उसे खिलाना- पिलाना, नहलाना-धुलना सुलाना….सब कुछ वह मातृवत भाव से निपटाती रहती थी। जब वह काम कर रही होती थी तो प्रणव उसके पीछे-पीछे घूमता ही रहता था,

और अपनी तोतली भाषा में ऐसी ऐसी बातें करता रहता था कि मालती खिलखिला कर हंस पड़ती थी और कभी बस निहाल हो जाया करती थी और उसकी बलाएं लेती न थकती थी। वह ज्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं थी परंतु जब भी प्रणव उसके साथ होता

तो वह न जाने कितनी धार्मिक कहानियां और उपदेशों से परिपूर्ण कहानियां उसे सुना कर उसके सुसंस्कारों में अभिवृद्धि करती रहती थी। पूरे परिवार ने भी अब मालती को जैसे एक अभिन्न अंग मान लिया था। 

       समय कब पंख लगा कर उड़ गया कुछ पता नहीं चल पाया और आज उसका वही मुन्ना… वही प्रणव एक चिकित्सक बन चुका है। और इसी खुशी में आज घर में पूजा और उसके बाद प्रीति भोज रखा गया था। पूजा पर प्रणव ही बैठा था। पूजा संपन्न होने के बाद प्रणव सब श्रेष्ठ जनों के आशीर्वाद लेने लगा।

वह झुक झुक कर दादी के, पिता के, माँ के… सबके चरण-स्पर्श कर रहा था। मालती पुलकित सी प्रणव को देखकर अपने नयन जुड़ा रही थी। कितना सुंदर और तेजस्वी लग रहा था उसका मुन्ना! 

उसने खिलकर कहा, “-रुको मुन्ना! हम तुम्हारे लिए खीर लेकर आते हैं.. हमने बना रखी है… “

तभी प्रणव ने हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया..

एक क्षण को तो वह सकपका ही गई फिर उसने स्वयं को संभालते हुए कहा,”-अरे हां मुन्ना! आज तो तुम उधर दोस्तों के साथ खाओगे ना… मैं भी पगली कहां तुम्हें अपनी बनाई खीर खिलाने लगी।”

उसकी बात सुनकर प्रणव ने मुस्कुराते हुए कहा, “-खीर तो मैं अवश्य खाऊंगा मौसी, परंतु पहले आशीर्वाद तो दे दो अपने इस बेटे को…”

और वह उसके चरणों में झुक गया। वह भावातिरेक विह्वल हो गई परंतु अगले ही क्षण स्वयं को संभाल कर उसने अपने कदम पीछे कर लिए..

“- छि: छि:..यह क्या कर रहे हो मुन्ना… हम तो इस घर की नौकरानी हैं, ऐसा कभी ना करना बाबू…”

“-नहीं मौसी, आप नौकरानी नहीं मेरी मौसी हो.. मौसी अर्थात मांँ सी.. और आपके आशीर्वाद पर तो मेरा पूरा हक बनता है…”

प्रणव के स्वर में अथाह स्नेह और आदर घुल आया।

      तभी नंदिता जी ने भी भावुक होकर अवरुद्ध कंठ से कहा, “- प्रणव ठीक कह रहा है मालती! प्रणव पर जितना हक मेरा है, उससे कहीं बढ़कर तुम्हारा है। अगर मैंने उसे जन्म दिया है तो उसे पाला पोसा तुमने है। जो मैं ना कर पाई वह तुमने किया है। अगर मैं देवकी हूं तो तुम यशोदा हो उसके लिए। प्रणव को अपने चरण स्पर्श करने दो और उसे अपना शुभ आशीष दो मालती।”

                चरणों में झुके प्रणव को खींचकर मालती ने हृदय से लगा लिया। उसके मस्तक पर हाथ रखते हुए आशीर्वादों की वर्षा कर दी उसने। अनंत दुखों के पश्चात ईश्वर ने उसे इतनी खुशियां और इतना प्यारा परिवार देकर उसकी समस्त पीड़ा को जैसे एक साथ तिरोहित कर दिया… यह पल जैसे अनंत सुखों का नया सवेरा लेकर आया हो उसके जीवन में।

निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी धनबाद झारखंड 

स्वरचित और मौलिक रचना

#हक़ 

VM

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