नवरात्रि – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

लगभग एक महीने पहले से पूनम जी ने सिंघाड़ा सुखाकर आटा पिसवा कर रख लिया था।बिना नमक के चिप्स,साबूदाने के पापड़,राजगीरे का आटा तैयार करके रख लिया था।बरसों से नवरात्रि की तैयारी करती रहीं थीं,पूनम जी।इस बार की नवरात्र तो खास होने वाली थी उनकी बहू के आ जाने से।

“निशा ओ निशा,कल चुनरी प्रिंट वाली साड़ी पहनना तुम।श्रृंगार करना खूब अच्छे से।जल चढ़ाने मढ़िया जाएंगे हम।वहां पहचान की बहुत सी औरतें मिलेंगीं।ज्योत जलाने के लिए नई रुई रखी है मैंने,बाती बनाकर रख लेना।”पूनम जी ने बहू को आवाज दी।निशा ने उत्तर दिया”मम्मी,सुबह तो आपको अकेले ही जाना पड़ेगा।मेरी ब्यूटीशियन आने वाली है।समय लग सकता है।”

“ओह!!ठीक है बहू।शाम को तो चलोगी ना मंदिर ?”पूनम जी ने प्यार से पूछा ,तो निशा ने कहा”मम्मी,मैंने आपको बताया था ना,कुछ दिनों पहले ही।कल बैठकी के दिन घर पर सुहागिनों को बुलाया है मैंने।मेरी किटी पार्टी की सहेलियां हैं।हम सब मिलकर माता के भजन गाएंगें,चौक बिठाएंगे।आपको भी अच्छा लगेगा।”

पूनम जी बहुत खुश हुईं।नई बहुओं के आने से पहले ही पता नहीं क्यों लोग डरा देतें हैं?आजकल की लड़कियां ऐसी होतीं हैं,वैसी होतीं हैं।अरे, पूजा-पाठ में कोई रुचि नहीं दिखातीं ये।मेरी बहू को देखकर कोई कह सकता है भला,कि आजकल की आधुनिकता का ज़रा भी असर हुआ हो इस पर।हे जगदम्बे मां,मेरी बहू को ऐसी ही सुमति देना। नहा-धोकर पूनम जी मढ़िया में जल चढ़ा आईं।

आतें ही देखा ,निशा की पार्लर वाली आ चुकी थी।दो -तीन घंटों के बाद निशा जब कमरे से निकली,पूनम जी देखती ही रह गईं। नज़र ना लग जाए मेरी,बड़ी सुंदर लग रही है निशा।आलू धोकर-उबालकर छील भी लिए थे पूनम जी ने।राघव तो ऑफिस जा चुका था।शाम को आकर पूजा करने के बाद ही फलाहार करेगा  सबके साथ।

साबूदाना भिंगो रही थीं,तभी निशा बोली”मम्मी,शाम के लिए कुछ अच्छा सा फलाहारी स्नैक्स बना दीजिएगा ना,चुकंदर वाला कटलेट।पुदीने की चटनी के साथ अच्छा लगेगा।ये साबूदाने के बड़े अब पुराने हो गए।रुकिए ,मैं यूं ट्यूब में देखकर और डिश बतातीं हूं आपको।”

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पूनम जी को पता था कि उनके हाथों से बने चुकंदर के कटलेट निशा और राघव को बहुत पसंद थे। जल्दी-जल्दी चुकंदर घिसकर कटलेट की तैयारी करने लगी वे।

शाम ठीक चार बजे निशा की सहेलियां घर पर आ पहुंची।इन औरतों में कुछ पूनम जी की हम उम्र भी थीं।लाल साड़ी सभी ने पहनी हुई थी।माता की फोटो रखकर चौकी बिठाई गई।पूनम जी भी उत्सुकता वश देख रहीं थीं,नए जमाने के नवरात्र की तैयारी।सारी सजावट करने के बाद,औरतों ने ढोलक बजाकर भजन गाना शुरू किया तो,पूनम जी निहाल‌ हो गईं।

नई नवेली बहुओं को ठुमक -ठुमक कर नाचते देखना भा रहा था उन्हें। देखते-देखते शाम होने लगी।राघव भी आ गया था घर।घर पर चहल पहल देखकर पूछा उसने”अरे मां,अभी भी हैं ये औरतें।कब जाएंगी ?अब तो शाम की आरती के लिए हमें मंदिर भी जाना है।

आपने सिंघाड़े का हलवा बनाया है ना?साबूदाने के बड़े तल लिए या पूजा से आकर तलोगी?”पूनम जी हंसकर बोली”छोटा बच्चा ही रह गया ना तू।फलाहार के लालच में ही बचपन से मेरे साथ उपवास रखता आया है।अरे रुक जा अभी।बहू की सब सहेलियां जांएं तो हम भी चलें मंदिर।”

तभी निशा बैठक से अंदर आकर बोली”मम्मी,आपके कटलेट रेडी हैं ना! प्लीज़ अब जल्दी से नाश्ता लगवा लीजिए।मैं अपनी दो -तीन सहेलियों को बुला लातीं हूं।साथ में लेकर चली जाएंगी।मैं नींबू पानी लेकर जाती हूं पहले।”पूनम जी ने जल्दी से कटलेट तलकर निकाले।जो भी फलाहार का सामान बनाया था,सब प्लेट में निकालकर रखा।

निशा और उसकी सहेलियां आ -आकर ले जा रहीं थीं।सात बजने लगे ,तो पूनम जी ने बैठक के पास पर्दे के पीछे खड़े होकर निशा को मंदिर जाने की याद दिलाई।अंदर का नजारा देखकर दंग रह गईं वे।सभी औरतें भगवान की चौकी के पास खड़े होकर सैल्फी ले रहीं थीं।सजावट में लगाए फूलों को ठीक करके,कभी धूप हांथ में लेकर,कभी आरती का दीया लिए हुए।

इन औरतों को इस बात की भी जानकारी नहीं हो पा रही थी कि हांथ जूठे हैं।प्लेट में नाश्ते(फलाहार)का अवशेष भी बचा नहीं था। ड्रेस कोड का लाल रंग अब होंठों से बहकर दांतों में छप चुका था।माता की चौकी के बहाने यह कैसा रंगारंग कार्यक्रम हो रहा था?माना वह संकुचित विचारों वाली नहीं थी,पर यह भौंडापन अब उनकी बर्दाश्त के बाहर हो रहा था।

निशा को आवाज लगाने का कोई फायदा नहीं हुआ,क्योंकि फुल वाल्यूम पर गाना चल रहा था।सींग कटवाकर बछिया बनी अधेड़ महिलाएं भी कमर मटकाने से बाज नहीं आ रहीं थीं।निशा को पूनम ने पहले ही मना कर दिया था कि उन्हें नाचना नहीं पसंद।ना ही उनसे गाते आता है।

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वापस पलट कर पूजा घर में जाकर उन्होंने शाम की आरती की तैयारी की।ज्योत जलाकर ,तुलसी के चौरे में दीपक दिखाने जब बैठक के सामने से आंगन में निकली,निशा को समय का ध्यान आया।जल्दी -जल्दी नवरात्र की पार्टी समेटने का एलान किया उसने।आकर पूनम जी से सॉरी भी कहा।

पूनम ने एक शब्द भी नहीं कहा।राघव भी तिलमिला रहा था।मां के साथ वह भी उपवासी ही था।पूनम जी उसके चेहरे के भाव देखकर समझ गई थीं कि आज घर में महाभारत हो सकती है।निशा को सबके सामने यदि राघव ने कुछ बोल दिया ,तो अपमानित महसूस करेंगी वह हमेशा।

अंदर बैठक में आकर निशा से पूछा उन्होंने “निशा ,मैं और राघव मंदिर जा रहे।तुम चल रही हो ना हमारे साथ?”निशा ने जल्दी से पार्टी खत्म की।ख़ुद को ही कोस रही थी कि क्यों सुमन के कहे में आ गई?आज के दिन घर पर इस तरह का आयोजन करना ठीक नहीं था।सास पता नहीं क्या सोच रही होगी?जाती हुई महिलाओं का अभिनंदन स्वीकार कर रहीं थीं पूनम जी हंसकर।एक महिला ने सफाई देते हुए कह ही दिया”आप भी उपवास हैं क्या आंटी जी?”

अब पूनम जी चुप नहीं रह सकीं।”हां,मैं तो नौ दिनों का उपवास करती हूं।मुझे लगता है आप सभी के घर में सास उपवास रखतीं होंगीं।बेटा, नवरात्र का महत्व तब ही है ,जब हम अपने परिवार के साथ पूजा-पाठ करें।मंदिर साथ में जाएं।उपवास की निष्ठा साथ में फलाहार करने में है।किटी पार्टी तो किसी भी अवसर पर हो सकती है।

माता रानी के इन नौ दिनों में सात्विक जीवन-यापन बहुत जरूरी है।माता को दिखावे की क्या आवश्यकता?जगत जननी हैं ख़ुद ही।अपने घर पर अपनी मांओं के साथ यदि तुम लोग पूजा करो तो ये मां भी खुश होंगीं।समय बदल गया,सोच बदल गई,पर पूजा का महत्व तो नहीं बदला।मुझे नहीं लगता कि तुम सभी के घरवालों को अच्छा लगा होगा,इतनी देर तक तुम सबका घर से बाहर रहना।रील्स बनाने के लिए कम से कम देवी-देवता की पूजा का बहाना मत करो। आधुनिक होने और सभ्य होने में क्या अंतर है,सोचना ज़रा।”

सारी औरतों ने जल्दी जाने में ही भलाई  समझी।निशा आकर माफी  मांगने लगी तो सास ने समझाया”बहू,अपने परिवार की अहमियत सदा बड़ा समझना।दोस्त वो होतें हैं जो सुख-दुख में काम आएं।अभी तुम्हारी नई  जिंदगी की शुरुआत हुई है।समाज में जो दूसरे कर रहें हैं,वही करने की कोशिश मत करना।शिक्षित होने का सबसे बड़ा महत्व यही है कि,सही और ग़लत में फर्क कर सको।बाहरी सुंदरता और पार्टियों की चमक-दमक से ज्यादा आकर्षक होती है

मन की सुंदरता।अभी से यदि तुम इन ढकोसलों के चक्कर में पड़ गई,तो हमेशा दूसरों को ही खुश करती रह जाओगी। पूजा-अर्चना नितांत ही व्यक्तिगत व पावन संस्कार है।यह हमारी जड़ है,इससे खिलवाड़ मत करना।पति कितना भी आधुनिक हों जाए,उसे पत्नी के साथ मंदिर जाकर सुख मिलता है।अपनी परंपराओं को जितना हो सके उतना ही निभाओ,पर निभाओ।”

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राघव को अब निशा से कुछ भी कहने की आवश्यक्ता नहीं बची।मां ने नवरात्र का सही अर्थ अपनी बहू को समझा दिया था।कुछ ही देर में मंदिर से आकर मां के साथ फलाहार करते हुए राघव को देखकर निशा भी खुश हो गई।

शुभ्रा बैनर्जी

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