नरेश पढ़ा लिखा अच्छा इंसान था। पर गलत संगति में पड़कर नशा का आदि हो गया था। अपनी योग्यता का उसे जरा भी ध्यान नहीं रहा।
दो बेटे थे। पर कुछ काम धंधा नहीं करता था।
जो कर रहा था उसने वह भी छोड़ दिया। भैया भाभी ने भी पल्ला झाड़ लिया। कब तक पैसे देते।
इधर-उधर से पैसे मांगता और मांग कर नशा में खत्म कर देता था।
पत्नी क्या करती वो भी परेशान तो थी पर,पत्नी की भी झूठी शान थी। भैया भाभी के नीचे नहीं रहना चाहती थी।
बड़े भैया ने भी ध्यान नहीं दिया उन्होंने कहा, “अपने बच्चों को देखूँ या तुम दोनों को देखूँ,मैं इतनी जिम्मेदारी नहीं उठा पाऊंगा।”
नरेश की पत्नी भी लड़ झगड़ कर मायके चली गई और साथ में बच्चों को और अपने पति को भी ले गई यानी कि नरेश को।
मायके वाले भी कब तक साथ देंगे, शादी के बाद तो पल्ला झाड़ लेते हैं, कोई सहारा नहीं देता।
इधर-उधर छोटी-मोटी नौकरी करता छोड़ता और सारे पैसे शराब, पान, गुटखा में खर्च कर देता था।
जहां उसका मायका था, वहीं नरेश की बड़ी बहन का ससुराल भी था।
नरेश की बड़ी बहन और नरेश के जीजा को दोनों बच्चों पर दया आई गयी
बेचारों की पढ़ाई लिखाई नहीं हो पा रही थी, खाने पीने का कोई ठौर ठिकाना नहीं था।
नरेश नशे में रहकर घर में झगड़ा किया करता था।
बच्चों को बड़ी बहन ले गई और संभालने लगी। बच्चों को बड़ी बहन ने तो संभाल लिया।
नरेश के बड़े बेटे का नाम था विजय, एयर फोर्स में उसकी नौकरी हो गई थी।
नरेश आज अस्पताल में भर्ती था।
उसे मुंह का कैंसर हो गया था।
पत्नी भी पिछले वर्ष ही गुजर गई थी।
शराब के साथ गुटखा का सेवन करता था, इसलिए मूंह का कैंसर हो गया था।
आज अंतिम सांसे ले रहा था।
नरेश की बड़ी बहन और उसके जीजा जी नरेश से मिलने अस्पताल गए।
नरेश ने अंतिम सांस लेते वक्त, अपने जीजा जी की तरफ हाथ जोड़कर देखते हुए, अपनी आंखें बंद कर ली, हमेशा के लिए।
विजय नरेश का बड़ा बेटा रोते हुए कहने लगा, “आज अगर फूफा जी ना संभालते, बुआ ने सहारा नहीं दिया होता,तो ना जाने हमारा क्या होता, फूफा जी हमारे लिए फरिश्ता हैं, पर सब के नसीब में तो ऐसे बुआ फूफा नहीं जो संभाल ले, सहारा दे!”
स्वरचित- अनामिका मिश्रा
झारखंड, (जमशेदपुर)