नाराज सुकन्या – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

मैं हूं “सुकन्या”। आज सुनिए सुकन्या की कहानी सुकन्या की जुबानी। 

मैं सुकन्या चलाती हूं एक टिफिन सेंटर जिसका नाम है, “सुकन्या टिफिन सेंटर”। 

आप सोच रहे होंगे की टिफिन सेंटर ?? क्या खास है इसमें टिफिन सेंटर तो बहुत से लोग चलाते हैं। 

बहुत खास है सुकन्या का यह “सुकन्या टिफिन सेंटर”। 

पहली खास बात कि ये टिफिन सेंटर कुछ खास लोगों के लिए ही है। यह टिफिन सेंटर है उन वरिष्ठ नागरिकों के लिए जिनके बच्चे नहीं हैं। अगर है तो उनके साथ नहीं रहते।  यानी कि वे या तो किसी और शहर में रहते हैं या विदेश में रहते हैं। 

लोग कहते हैं कि बच्चा- बूढ़ा एक समान। मगर नहीं वास्तविकता बहुत अलग है।  बच्चों को उनकी मां कभी अकेला नहीं छोड़ती उसका शारीरिक मानसिक विकास और उसकी हर तरह से देखभाल करती है उसकी मां।  पिता उसकी परवरिश के लिए जी जान लगा देता है।

मगर बात अगर बूढ़ों की करें यानी कि वृद्ध जनों की, तो नहीं उनके बच्चों के पास इतना समय ही नहीं है कि वे उनके पास बैठकर एक कप चाय भी पी लें। बाकी देखभाल क्या खाक करेंगे। 

देखिए यहां बात उन बच्चों की नहीं हो रही है जो अपने माता-पिता की देखभाल करते हैं। चाहे भी उनके साथ रहते हो या ना रहते हों।

यहां  विशेष तौर पर बात उन्हीं बच्चों की हो रही है जो अपने माता-पिता की देखभाल ना तो स्वयं ही कर रहे हैं और ना ही ऐसी कोई व्यवस्था कर रहे हैं जिससे कि उनकी देखभाल सुचारू रूप से हो सके। 

कुछ के तो बच्चे ऐसे हैं जो ना तो उन्हें फोन ही करते हैं और ना ही कोई आर्थिक मदद करते हैं। 

कई मां-बाप तो ऐसे हैं जिनके जीवन साथी भी अब उनका साथ छोड़ चुके हैं। अब उनका एकाकीपन है और वो हैं।

बस अपने आसपास कुछ ऐसी ही दुखद परिस्थितियों में कई वृद्धि जनों को देखा सुकन्या ने।

 शुरुआत हो गई “सुकन्या टिफिन सेंटर” की।

सोच रहे होंगे कि जहां वृद्ध जनों की देखभाल नहीं हो रही, वहां टिफिन सेंटर का क्या विशेष योगदान ?? 

जी बिल्कुल ठीक सोच रहे हैं आप। हमारे आसपास तो हर कॉलोनी में एक टिफिन सेंटर मिल ही जाएगा तो वहां से भी खाना मंगवा ही सकते हैं। 

तो चलिए हम देखते हैं कि सुकन्या टिफिन सेंटर में खाने में क्या विशेष बनता है और कैसे बनता है? 

कैसे मैनेज करती है सुकन्या इस टिफिन सेंटर को यानी कि मैं। हां जी मैं ही, आपकी सुकन्या। 

शाम का समय है- खाने में बन रहा है दलिया, खिचड़ी, मूंग की दाल, टमाटर का सूप, लौकी की सब्जी और चपाती। वैसे तो यह मेनू कुछ विशेष नहीं है। मगर यह मेनू आम टिफिन सेंटर से बहुत ही अलग है।

 क्या आप जानते हैं कि यहां खाना कौन बनाता है? अरे आपकी सुकन्या और कौन ??

जरा ठहरिए सुकन्या खाना अकेले नहीं बनाती। यहां खाना बनाने के लिए प्रतिदिन कुछ विशेष लोग आते हैं। विशेष का मतलब समझे आप ???

उम्मीद है समझ ही गए होंगे। यहां खाना जिन विशेष लोगों के लिए बनता है उन्हीं में से कुछ विशेष लोग यहां प्रतिदिन सुबह-शाम खाना बनाने में मदद करने के लिए भी आते हैं। 

मदद के लिए एक दो और सहायिकाएं भी रखी है मैंने। वे खाना बनाने में मदद करने के साथ-साथ बर्तन मांजना, झाड़ू पोछा आदि अन्य सहायक कार्यों को भी करती हैं। 

सुकन्या टिफिन सेंटर के माननीय सदस्य गण प्रतिदिन अपनी  सुविधानुसार यहां आकर मदद भी करते हैं और एक पंथ दो काज भी हो जाता है। जी कैसे?  चलिए बताती हूं।

जो यहां आते हैं वे यहीं गरम-गरम भोजन करते हैं और जिनका भेजना हो उनका टिफिन पहुंचाने के लिए भी वही लोग जाते हैं। 

इस तरह से उन लोगों का दिन भर का एक बड़ा समय कट जाता है और उनका एकाकीपन की कम होता है।

अब समझे आप की यह विशेष तौर पर वरिष्ठ नागरिकों की सेहत को ध्यान में रखते हुए बनाया गया विशेष भोजन है। जिसमें सभी वरिष्ठ नागरिकों की सेहत का ख्याल रखते हुए नमक, मिर्च, मसाले, घी एवं तेल आदि  का कम से कम उपयोग किया गया है। शुद्ध सात्विक भोजन बनाया गया है।

प्रतिदिन सुबह और शाम को सामान्य तौर पर इस टिफिन सेंटर का भोजन लगभग ऐसा ही होता है।

भोजन में कुछ भी विशेष या मीठा तब ही बनाया जाता है, जब किसी सदस्य का जन्मदिन हो या उनकी जिंदगी का कोई विशेष दिन जिसे वे अपने सभी साथी वरिष्ठ नागरिकों के साथ मिलकर मनाना चाहते हों। 

टिफिन सेंटर की ओर से भोजन में विशेष कोई व्यंजन या मिठाई तभी बनाई जाती है जब  किसी सदस्य का विशेष आग्रह हो या फिर कोई बड़ा त्यौहार हो। 

मैं सुकन्या यह तो नहीं जानती कि ये सारे माता-पिता अपने बच्चों से नाराज है या नहीं। लेकिन मैं बहुत नाराज हूं। 

बहुत से माता-पिताओं को उनके बच्चों के लिए तरसते तो आपने भी देखा होगा। लेकिन मैंने देखा है उन मां-बाप को जो दो वक्त के खाने के लिए तरस रहे हैं। तरस रहे हैं, भोजन के उसे टुकड़े के लिए जिसे खाकर उन्हें तृप्ति हो। 

क्या फायदा ऐसी औलादों का जो पढ़ लिखकर काबिल  तो बन गईं मगर अपने मां-बाप के लिए दो वक्त के अच्छे भोजन की व्यवस्था भी न कर पाए।

मैंने देखा है उन वृद्ध जनों को  मोहल्ले में आते-जाते मददगार कामगार महिलाओं के हाथ पैर जोड़ते हुए कि हमारे लिए रोटी बना दो, हम ज्यादा नहीं बनवाएंगे, तुम चाहे छुट्टी ले लेना चार-पांच दिन जब तुम्हें लगे तब महीने में‌।  मगर  लगातार मत लेना हम खाना बना नहीं पाते और बाहर का खाना हम खा नहीं पाते। क्या बीती होगी उन मां पिता पर उस घड़ी।

“सब कहते हैं कि पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है। मगर मैं कहती हूं की वृद्धावस्था में आपके पास कितना भी पैसा हो आप सामान तो खरीद सकते हैं मगर सहायता और सम्मान बहुत मुश्किल से खरीद पाएंगे।”

 “चाहे वह जुबान से कुछ ना कह पाते हों, उनकी नम आंखों की खामोशी बहुत कुछ कह जाती है।”

बहुत दुखद क्षण होता है मेरे लिए जब भी मैं किसी भी मां-पिता को इस स्थिति में देखती हूं।

इसी स्थिति का दूसरा पहलू वे सहायिकाएं जिनके ये हाथ पैर जोड़ते हैं। जब आप उन्हें बातचीत करते सुनेंगे तो आपका कलेजा मुंह को आ जाएगा। इन मां-बाप की औलादों के प्रति आपकी नाराजगी और भी बढ़ जाएगी। 

सुनिए दो सहायिकाओं की चर्चा –  पहली – मैं तो उनके घर में बिल्कुल काम ना करूं बहुत बदबू आती है उनके घर में। 

दूसरी- अरे उनके यहां तो बिल्कुल कोई काम नहीं कर सकता बहुत गंदगी है, बिल्कुल साफ सफाई नहीं है। 

अरे उन्हें तो कोई बड़ी बीमारी है। उनके तो बच्चे और उनकी कोई भी रिश्तेदार भी उनके यहां नहीं आते जाते। 

क्या पता बीमारी मुझे लग जाए तो। नहीं मैं तो नहीं करूंगी उनके यहां काम।

ऐसा और भी बहुत कुछ कहते सुना है मैंने।

अरे अगर वे लोग साफ-सफाई कर सकते होते, वे इतने सबल होते तो वे इन लोगों के इतने हाथ पैर क्यों जोड़ते।

अब आप समझ गए होंगे की क्यों महत्वपूर्ण है इस सुकन्या का यह सुकन्या टिफिन सेंटर। 

यहां आने से में वरिष्ठ नागरिकों को भोजन तो मिलता ही है। साथ ही साथ जिस अपनेपन की तलाश में वे भटक रहे थे , वह भी कुछ हद तक पूरी हो जाती है। जो एकाकीपन उन्हें खाए जा रहा था। उससे भी निजात मिलती है। जो उनके शारीरिक और मनसिक

 स्वास्थ्य मैं भी सुधार लाता है। 

जो सदस्य यहां नहीं आ पाते। टिफिन देने के बहाने सुबह शाम उनसे भी एक नया सदस्य मिलने पहुंच ही जाता है। जिससे कि उपरोक्त लाभ उन्हें भी बराबर मिलता है। 

हां जब भी किसी सदस्य का स्वास्थ्य खराब हो, अब मैं स्वयं उनकी देखभाल का जिम्मा भी उठाती हूं। मगर अकेले नहीं यहां भी मेरा साथ देते हैं यही सारे मेरे परिवार के सदस्य।

आज मैंने अपनी कहानी अपनी ही जुबानी सुनाई है, इसलिए नहीं कि मुझे किसी से कोई विशेष सम्मान  चाहिए।

मेरी इस कहानी का सिर्फ एक ही उद्देश्य है कि मैं चाहती हूं कि ऐसे बहुत से गांव, शहरों में ऐसे बहुत से नाराज मां पिता होंगे। जिन्हें ऐसी किसी “नाराज सुकन्या” की आवश्यकता होगी। 

 तो देखिए अपने चारों ओर और बनिए किसी की सुकन्या। “नाराज सुकन्या”। 

स्वरचित 

दिक्षा बागदरे 

06/08/2024

#नाराज

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