बहू… आज तुम्हारी पहली रसोई है, तो सबसे पहले खीर बना लेना और हां उसमें किशमिश मत डालना… वह क्या है ना..? तुम्हारे पापा को पसंद नहीं… कहीं नाराज हो गए तो…? पार्वती जी ने अपनी नई नवेली बहू तरुणा से कहा
तरुणा फिर जैसा पार्वती जी कहती है वैसा ही करती है… कुछ रस्मों के बाद तरुणा अपने कमरे में चली जाती है.. अगले दिन पार्वती जी तरुणा से कहती है.. बहू वैसे तो घूंघट करने की जरूरत नहीं है कभी.. पर पापा के सामने घूंघट रख लेना, वह क्या है ना..? नई नवेली बहू का यूं ससुर जी के सामने घूमना फिरना बिना घुंघट के अच्छा नहीं लगता.., और फिर कहीं पापा नाराज हो गए तो..?
तरुणा ठीक है मम्मी… कह कर अपने कमरे में चली जाती है… कुछ दिन ऐसे ही बीत जाते हैं और इन दिनों तरुणा को इतना समझ आ गया था के उसके ससुर जी काफी कड़क इंसान है… जो अपने नियम और उसूलों के काफी पक्के हैं.. क्योंकि बात-बात पर उसकी सास पापा नाराज हो जाएंगे यह करो, पापा नाराज हो जाएंगे वह करो, कहती ही रहती थी…
एक दिन तरुणा पार्वती जी से कहती है… मम्मी आज खाने में कढ़ी चावल बना दूं क्या.? मेरे घर में सब कहते हैं कि मैं कढ़ी बहुत अच्छी बनाती हूं, तो मैं वह आप सबको भी खिलाना चाहती हूं…
पार्वती जी: अरे नहीं नहीं बहु.. तुम्हारे पापा को कढ़ी बिल्कुल पसंद नहीं.. अगर खाने के टेबल पर कढ़ी देख ली उन्होंने तो काफी नाराज हो जाएंगे… तुम कुछ और बना लो गोभी पड़ी है फ्रिज में, तुम वह बना लो और साथ में चने की दाल भी…
तरुणा बड़ी दुखी हो जाती है क्योंकि कढ़ी उसे काफी पसंद है और अब उसके ससुर जी को बिल्कुल नहीं पसंद, फिर तो वह कैसे बनाएगी? थोड़ी देर चुप रहने के बाद उसके दिमाग में एक तरकीब आती है कि जब भी उसका मन कढ़ी खाने को करेगा, वह अपने लिए थोड़ा सा बना लेगी.. वैसे भी वह सबसे अंत में खाना खाती है तब वह आराम से कढ़ी खा लेगी..
पर आज नहीं कभी और बनाऊंगी यह सोचकर तरुणी गोभी बनाने लगती है
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फिर एक दिन तरुणी पार्वती जी से पूछती है… मम्मी शादी को अब दो महीने हो गए हैं… अब क्या मैं सलवार पहन सकती हूं..? साड़ी पहन कर काम नहीं होता..आदत नहीं है ना
पार्वती जी: बहू..! आदत ऐसे ही नहीं लगती… लगानी पड़ती है अब तुम सूट ही पहनोगी तो साड़ी की आदत कैसे लगेगी..? वैसे भी तुम्हारे पापा को साड़ी के अलावा कुछ और नहीं पसंद… वह नाराज हो जाएंगे
तरुणी अपने कमरे में गुस्सा होकर चली जाती है और खुद में बड़बड़ाती है… घर ना हुआ जेल हो गया… जहां एक जेलर के डर से जीना पड़ता है… यह मत करो वह नाराज हो जाएंगे… वह करो वह नाराज हो जाएंगे…. इधर मम्मी विदाई के समय और कह रही थी कुछ ऐसा मत करना जिससे कोई नाराज हो… पर यहां मैं खुद से ही नाराज हुए जा रही हूं…
कुछ भी मन का नहीं कर सकती.. पता नहीं किस युग में जी रहे हैं सभी. यह सोचते सोचते तरुणा सो गई और जब वह उठी तो उसने सोचा आज अपने लिए कढ़ी ज़रूर बनाऊंगी और मुझे इसके लिए किसी की इजाजत नहीं चाहिए… आखिर यह घर मेरा भी तो है.. उसके बाद उसने कढ़ी बनाई और सबके खाने के बाद खुद खाने बैठी…
तभी उसके ससुर जी वहां से गुजर रहे थे… पर वह खाने में इतनी व्यस्त थी कि उसका ध्यान उन पर नहीं गया., वह तो चटकारे ले लेकर खा रही थी. तभी उसके ससुर जी दीनानाथ जी कहते हैं अरे आज घर में कढ़ी बनी है क्या..?
तरुणा दीनानाथ जी की आवाज से सब पका कर खाने को छोड़कर कहने लगती है… वह पापा मुझे खाने का बड़ा मन था इसलिए अपने भर बनाया और आपको पसंद नहीं है इसलिए अंत में खाने बैठी
दीनानाथ जी कड़क आवाज में बोले और बची है..?
तरुणा: हां थोड़ी सी…
दीनानाथ जी: जाओ ले आओ…
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तरुणा घबराते हुए रसोई में गई और बड़बड़ाने लगी… पता नहीं अब क्या करेंगे पापा..? उसके बाद वह कटोरी में कढ़ी लेकर आती है और दीनानाथ जी उसके हाथ से कटोरी लेकर झट से खाने लगते हैं.. और गपा गप खाते हुए दो ही मिनट में कटोरी खाली कर देते हैं… जिसे देखकर तरुणा हैरान हो जाती है और पूछती है… पापा आपको तो कढ़ी बिल्कुल भी पसंद नहीं..?
दीनानाथ जी: और यह जरूर तुम्हारी सासू मां ने बताया होगा..?
तरुण: हां पापा
दीनानाथ जी: बहू वह क्या है ना…? जो तुम्हारी सास को पसंद नहीं वह हमेशा मेरा ही नाम लगाकर कहती है… मतलब अब तक उसने तुमसे जितने भी मेरे नापसंद के बारे में बताया होगा वह सारे उसके ही होंगे… क्योंकि उसे ऐसा लगता है मेरा नाम लेने से बातों में ज्यादा वजन पड़ेगा और वह असर करेगी भी…
हां जबकि होता भी ऐसा आया है. पहले तो विपुल से भी वह ऐसे ही मेरा नाम लेकर बातें मनवाती थी.. पर अब जब विपुल सब जान गया है तो तुम पर आजमा रही होगी… पर बहु तुम उसे यह बात कभी मत बताना कि तुम्हें भी इस बात का पता चल गया है.. बस तुम इतना समझ लेना कि मैं कोई जेलर नहीं, तुम्हारा पिता हूं…
तरुणा सोचने लगी कहां तो अपने ससुर जी को खडूस जेलर समझ रही थी और कहां यह इतने खुश मिजाज इंसान ह… तरुणा की खुशी का ठिकाना ना रहा और वह जोर से हंस पड़ी और कहने लगी… पापा अब आपने ही मम्मी की पोल खोल दी वह भी मम्मी के सामने.. यह कहकर वह पीछे देखने का इशारा करती है… जहां पार्वती जी खड़ी होती है
पार्वती जी: आपसे ना कभी मेरा राज चलता हुआ देखा नहीं जाता… पहले बेटे को सब बताया और अब बहू को…. अरे कुछ दिन तो मुझे सास बनने का मौका देते… बाद में इसे भी तो सब पता चल ही जाता…
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तरुणा अपनी सास से लिपटकर कहती है… मम्मी जरूरी नहीं हुकुम चलाने वाली ही सास हो… प्यार से गले लगाने वाली भी सास हो सकती है और वह सास कम मां ज्यादा लगती है और रही बात मेरी सास की…. आपका हुकुम सर आंखों पर.. बस यह साड़ी और घूंघट से बचा लीजिए… फिर और कोई फरमाइश नहीं करूंगी… वहां मौजूद सभी हंस पड़ते हैं
धन्यवाद
#नाराज
रोनिता कुंडु
VM