नानी का घर –  Short Hindi Moral Story

नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए

“नानी तेरी मोरनी को, मोर ले गए,

  बाकी जो बचा था ,काले चोर ले गए”

आज रेडियो एफ एम पर अरसे बाद यह गीत सुना।मयूरी अपने हांथ से सब्जियां और चाकू रखकर, इत्मीनान से गाना सुनने लगी।कितनी सारी यादों ने इस गीत को सुनकर,मचलना शुरू कर दिया।मयूरी की आंखों के सामने सालों पहले का दृश्य घूम गया।तब बेटी पीहू चार बरस की थी,नानी का घर गर्मी की छुट्टियों की एकमात्र घूमने की जगह थी।तपती गर्मी में जहां सात-आठ घंटे बिजली गुल रहती थी, मौसियों का हांथ पंखें से हवा देना होता था पीहू को।हर समय नानी से चुहलबाज़ी करती हुई पीहू अब बड़ी हो गई है।

मयूरी को याद आया कैसे पीहू अपनी नानी को परेशान करती थी”-नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए,गा-गाकर।इतना ही नहीं मयूरी से भी पूछती”मां अगर मेरी एक और बहन होती तो,उसका नाम कोयल रखती क्या नानी?”

उसकी बातों का कोई सिर-पैर नहीं होता था।पहले तो मयूरी को लगता था कि बेटा नानी के घर से ज्यादा जुड़ा है,पर धीरे-धीरे उसे अहसास हुआ कि पीहू को ही ज्यादा लगाव है अपनी नानी के घर से।हो भी क्यों नहीं,आखिर लड़की है ना। जैसे-जैसे साल गुज़रते गये,बच्चों ने अपने बढ़े होने की प्रक्रिया में नानी के घर जाना कम कर दिया।हां  बेटी ही कहने लगती “मम्मी आप हो आओ नानी के पास।मैं घर संभाल लूंगी।आपकी मां हैं वो।साल भर इंतज़ार करती रहतीं हैं तुम्हारा।तुम्हारे ऊपर जिम्मेदारियों की कमी नहीं है साल भर,पर अपनी मां को देखने जाना भी आपकी ज़िम्मेदारी है।”पीहू की बातें सुनकर अक्सर मयूरी सोचती कि बेटियां मायके की अनकही पुकार कैसे सुन लेतीं हैं।पीहू घर में रहकर दादा-दादी और अपने पापा की देखभाल अच्छी तरह कर लेती थी।

अब जब से पीहू बाहर चली गई पढ़ने,उसका मायके जाना भी कम हो गया।उसके पीछे कौन संभालेगा घर?कभी गई भी तो आनन-फानन में लौटना पड़ता। देखते-देखते दोनों भाई -बहन बड़े हो गए।उनकी स्कूलिंग खत्म हो गई पर,मई आते ही मां का पूछना “कब आएगी?”ख़त्म नहीं हुआ।मयूरी मां को समझाने लगी थी,कि उसके घर में बहुत मुश्किल हो जाती है,बाहर चले जाने से।मां तो मां हीं थीं,दामाद के पास झट फोन घुमा देती “कब भेज रहे हैं मयूरी को”और फिर मयूरी के पति का ताना देना शुरू।इन सास-दामाद के झगड़ों में नहीं पड़ती थी मयूरी।कुछ साल पहले वैसा ही फोन आया था मां का”कब आएगी घर?”बड़ी निरीह आवाज़ लगी उस दिन मां की।”आती हूं मां,गेहूं जानने के लिए रखें हैं,अचार बनाना है,पीहू कॉलेज की छुट्टियों में आने वाली है,शायद ननदें भी आएं इस बार।सब निपटा लूं,फिर आती हूं।”मयूरी ने मां को समझाया।




“ठीक है,देख मैंने गोभी-गाजर का अचार ,नींबू का मीठा अचार और चिप्स बना कर रखें हैं पीहू के लिए।तू जल्दी आकर लेती जाना।”मां मास्टर थीं ये सब बनाने में।कुछ दिनों के बाद ही उनकी कैंसर के लास्ट स्टेज में होने का पता चला।छह महीनों के अंदर ही चलीं गईं वो।अब गर्मी की छुट्टियों में कोई फोन नहीं करता।अचार, बड़ी,चिप्स ले जाने की फरमाइश भी कोई नहीं करता।मां का चले जाना मानो मायके का छूटना हो गया।घर पर छोटा भाई,भाभी हैं।बगीचा अब भी है बस फूल नहीं हैं पहले जैसे।अब गर्मी कुछ ज्यादा ही पड़ने लगी है या चुभने लगी है।बिना ए सी के रहा ही नहीं जाता।हर बार गर्मी यही सोचकर बीत जाती है, कि अगले साल जाऊंगी।ना सही समय आ पाया और ना जाना हुआ।

शाम को पीहू से बात होने पर इस गीत के बारे में बताकर उसे पुराने दिन याद करवा रही थी मयूरी”आज न,नानी तेरी मोरनी वाला गाना सुना मैंने रेडियो पर।तुझे याद है,कैसे चिढ़ाती थी नानी को?”पीहू पता नहीं कौन सा जादू जानती थी,वो सारा अनकहा सुन लेती थी जो मयूरी कह नहीं पाती थी।

“मां!तुम्हारा मन कर रहा है क्या नानी के घर जाने का?हो आओ ना।”पीहू ने फिर मन की बात जान ली।

“अरे नहीं-नहीं,बहुत गर्मी है अभी।तेरे भाई को खाने-पीने की दिक्कत हो जाएगी।दादी को कौन देखेगा?”मयूरी पिछले दो सालों से यही बात कह रही थी।

“मां,तुम्हारी ये सारी परेशानियां कभी ख़त्म नहीं होंगी।कुछ भी ना बदलेगा।तुम्हारे जाने के बाद सब अपने आपको संभाल ही लेंगे। दो-चार दिनों के लिए तो जा सकती हो ना तुम?हां अब ये मत कहना कि मामी -मामा ने बुलाया नहीं तुम्हें।अपने घर जाने के लिए अपनों के निमंत्रण की जरूरत होती है क्या??उन्हें भी तो बुरा लगता होगा,जब तुम नहीं जाती।कौन सा हमेशा के लिए जाना है,कुछ दिन अपने मायके में अपने घर पर रह आओ ना।”

पीहू को मयूरी यूं ही नहीं जादूगर कहती,कैसे उसके मन का कोलाहल पकड़ लिया उसने।सच में इंतज़ार ही तो करती रही है वह दो सालों से भाई-भाभी के बुलाने का।पर आखिर क्यों बुलाएंगे वो??आखिर बड़ी दीदी है मयूरी।सारे भाई -बहन कितना मान देतें हैं।भाभी वैसे ज्यादा औपचारिक बातचीत ही करतीं हैं पर,जाने से पूरा ख्याल रखतीं हैं।भाई पूरे मोहल्ले में ढिंढोरा पीट देता है दीदी के आने का।मां के जाने से भाई-भाभी तो पराए नहीं हो गए।अगर ऐसे ही मायके ना जाने का सिलसिला चलता रहा तो,हमेशा के लिए दूर हो जाएगी मयूरी अपने भाई-बहनों से। नहीं-नहीं मुझे अब और इंतज़ार नहीं करना चाहिए,अपने ही घर जाने के लिए निमंत्रण का।




दूसरे दिन सुबह -सुबह पीहू को बता दिया मयूरी ने”कल जा रहीं हूं मैं,नानी के घर।क्या लाऊं तेरे लिए?”

“वहां के हवा की खुशबू,छत से दिखने वाला चांद,नुक्कड़ के दुकान की हाजमा वाली गोली,और गुप्ता जी का मंगौड़ी वाला चाट।”बेटी कुछ भी नहीं भूली थी।

मयूरी ने भाभी को फोन पर बता दिया कल जाने के बारे में।एक सूट,भाई के लिए एक शर्ट,एक डिनर सैट।इतना काफी है।वहां पहुंच कर उन दोनों की पसंद का खाना बनाऊंगी।क्या हुआ जो मां जिंदा नहीं,उनकी उपस्थिति तो उस घर के कोने -कोने में है।उनकी पुरानी अलमारी,अटैची,एल्बम,शोकेस सभी तो हैं वहां जिनमें उनकी जान बसती थी।

बस झटके के साथ रुकी,तब आंख खोली मयूरी ने”अरे!!इतनी जल्दी आ गया घर,हां अब तो रोड काफी अच्छी बन गई है।लाइट होगी तो ठीक,नहीं तो रात को छत पर सोऊंगी आज बहुत सालों के बाद।मां,देखो मैं आ गई।पीहू ने मांगा है नींबू का अचार तुमसे।तुम सुन तो सकती हो ना।

शुभ्रा बैनर्जी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!