ननद से बन गई भाभी – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  ” बड़ी भाभी.. मैंने कोई जान-बूझ कर तो तोड़ी नहीं..गलती से गिर गयी।और भाभी..मेरे ससुराल वाले मेरी हर इच्छा पूरी कर देते हैं तो भला मुझे आपकी चीज़ों का लालच या ईर्ष्या क्यों होगी।मैं ज़रा नींद में थी तो..।” काजल ने अपनी भाभी को समझाना चाहा।

   ” बस-बस..रहने दो अपना नाटक।” छोटी भाभी कामिनी ने अपना तीर छोड़ा और जेठानी सुनंदा से बोली,” दीदी..शादी के बाद भी ननद छाती पर मूँग दले तो…।” सुनकर काजल की आँखों में आँसू आ गये। जिन भाभियों को वो माँ समान मानती आई थी, उनके मुख से निकले ऐसे तीखे शब्दों से उसका कलेज़ा छलनी हुआ जा रहा था।वो कमरे में गई और अपना बैग पैक करके बाहर जाने लगी।तभी ऑफ़िस से उसके दोनों भाई अजय और अनिल आ गये।उन्होंने काजल को रोकना चाहा तो उनकी पत्नियों ने उन्हें रोक दिया।अपने आँसुओं को रोकने का असफल प्रयास करती हुई वो बाहर निकल गई।

      दो बड़े भाइयों की इकलौती बहन थी काजल।उसके पिता हरकिशन दयाल एक सफल बिजनेसमैन थे। दोनों भाई पिता के बिजनेस के साथ ही संलग्न थे।जब वह बारहवीं कक्षा की परीक्षा दे रही थी, तभी उसकी मम्मी का देहांत हो गया था।उस दुख की घड़ी में उसकी दोनों भाभियों ने उसे संभाला था।उसके खाने-पीने, पहनावे और पसंद-नापसंद का ख्याल ऐसे रखतीं थीं जैसे एक माँ अपनी बेटी का रखती है।काजल भी उनसे बेटी की तरह ही कभी रूठती तो कभी मनुहार करती। 

     फिर काजल काॅलेज़ जाने लगी।तन से वो बड़ी हो गई थी लेकिन मन अभी भी बच्चा ही था।काॅलेज़ से आकर किताबें सोफ़े पर पटककर वो अपने भतीजे-भतीजियों के साथ खेलने लग जाती।एक दिन हरिकिशन जी ने उसे टोक दिया,” बेटी…कभी-कभी रसोई में भी चली जाया करो…अपनी भाभी का हाथ बँटा…।” तभी उसकी बड़ी भाभी सुनंदा आकर बोली,” इसकी कोई जरूरत नहीं है पापाजी…हमारी काजल बहुत समझदार है..यहाँ तो बच्चों के साथ लगी रहती है ना लेकिन जब ससुराल जाएगी तब बहू- भाभी का फ़र्ज़ ऐसे निभाएँगी कि आप देखकर दंग रह जायेंगे।”

      यूँ तो हरिकिशन जी अपने स्वास्थ्य के प्रति काफ़ी सजग थे लेकिन उम्र भी हो रही थी..कब आँखें बंद हो जाये, यही सोचकर एक दिन उन्होंने बेटों से कहा कि मेरे एक परिचित हैं मणिकांत।तीन साल पहले उनका देहांत हो गया था।अब उनका बेटा सुनील उनके कारोबार को संभाल रहा है।लंबे कद का नौजवान है और स्वभाव से भी मिलनसार है।एक विवाहित बहन है और दूसरी छोटी बहन पायल है।मणिकांत की पत्नी पुष्पा भाभी का शांत स्वभाव की महिला हैं।एकाध दिन में बहू के साथ जाकर तुमलोग भी मिल लो..फिर इम्तिहान होने के बाद शादी कर देंगे।

     अजय-अनिल ने सहमति दे दी और जाने की प्लानिंग करने लगे कि तभी एक रात अचानक हरिकिशन जी अपने सीने पर हाथ रखकर चीख पड़े,” अजय…।” बगल के कमरे से अनिल दौड़ता हुआ आया,” क्या हुआ पापा?”

 ” काजल की…।” बात अधूरी ही रह गयी क्योंकि उनके प्राण-पखेरू उड़ चुके थे।पापा-पापा कहते हुए काजल पिता से लिपटकर बहुत रोई थी।

       काजल के इम्तिहान खत्म हुए तब दोनों भाइयों ने उसे पिता की इच्छा बताते हुए सुनील के बारे में बताया और उससे पूछा कि तुम क्या चाहती हो?आगे पढ़ना या हम सुनील की माताजी से बात करे।वो कुछ नहीं बोली..बस नज़रें नीची करके दाहिने पैर का अंगूठा फ़र्श पर रगड़ने लगी।अनुभवी भाइयों ने बहन के मन की बात समझ ली।कुछ दिनों बाद वे सुनील से मिले और उसकी माताजी से बात करके एक शुभ-मुहूर्त में काजल का विवाह उसके साथ कर दिया।दोनों भाई-भाभियों ने मिलकर उसका कन्यादान किया।विदाई की बेला में दोनों भाभियाँ उसे गले लगाकर ऐसे रो रहीं थीं जैसे वो अपनी बेटी को विदा कर रहीं हों।देखने वाले भी कहने लगे थें,” ऐसी भाभियाँ हर ननद को मिले।”

       ससुराल में काजल का शानदार स्वागत हुआ।उसकी छोटी ननद पायल उसके आस-पास ही रहती।उसे भी पायल का भाभी कहना बहुत सुहाता था।एक दिन पायल ने उससे विषय पूछे तो वो बोली,” फिलाॅसफ़ी में ऑनर्स..।” 

   ” तब तो भाभी…मैं फिलाॅसफ़ी के सारे डाउट्स आपसे ही क्लियर करूँगी…।”

   ” हाँ-हाँ..क्यों नहीं…।” इस तरह से जल्दी ही दोनों ननद-भाभी से सहेलियाँ बन गईं थीं।

     काजल मायके जाती तो अपनी भाभियों से सभी की खूब प्रशंसा करती जिसे सुनकर उसकी भाभियाँ खुश होतीं और कहतीं कि हमें मामी कब बना रही हो।तो वो शरमा जाती।

      तीन महीने हँसी-खुशी में बीत गये।फिर काजल का मायके जाना बढ़ने लगा।एक दिन पायल ने हँसी-हँसी में कह दिया,” क्या भाभी…मुझे कुछ डाउट्स पूछने थे और आप अपने मायके चली गई।” इतनी-सी बात पर उसने पायल को भला-बुरा सुना दिया। पायल कभी उसकी लिपिस्टिक लगा लेती या उसकी चूड़ी पहनने की कोशिश करती तो वो भड़क जाती।एकाध बार उसने अपने धनाड्य मायके का रौब भी दिखा दिया था।उसके बदले व्यवहार को देखकर सास भी चकित थी।सुनील भी इसका कारण समझ नहीं पा रहा था।

     उधर काजल के बार-बार मायके आने से सुनंदा भी अचंभित थी।उसने सोचा कि कुछ दिनों में काजल खुद ही ससुराल के महत्त्व को समझ जायेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

     एक दिन काजल को समझाते हुए सुनील बोला,” इस तरह बार-बार मायके जाने से लोग क्या सोचेंगे..यहाँ माँ अकेली हो जाती हैं।दीपा दीदी भी आती हैं तो तुम…।”

  ” तो आप मुझे बाँधना चाहते हैं..।मैं ज़िंदगी भर भी वहाँ रहूँ तो भी मेरी भाभियाँ मुझे कुछ नहीं कहेंगी।मेरे में उनके प्राण बसते हैं।” कहते हुए काजल की गर्दन अहंकार से तन गई थी।

      कुछ दिनों बाद काजल फिर से मायके चली।तब सुनील उसे लेने गया तो उसने साफ़ इंकार कर दिया।तब सुनंदा ने कामिनी से उसे व्यस्त रखने को कहा और सुनील से बात की।सुनील ने उन्हें पिछले दिनों की घटनाएँ बताईं तो वो सब समझ गई और उसे विश्वास दिलाया कि जल्दी ही काजल खुद ही घर चली जायेगी।फिर मुस्कुराते हुए काजल से बोली,” ये तेरा अपना घर है..जब तक जी चाहे रह..।”

   ” मैं तो कभी नहीं जाऊँगी भाभी…।” कहते हुए उसने सुनंदा के गले में अपनी बाँहें डाल दी।

      सुनंदा कुछ नहीं बोली, बस कामिनी को इशारा कर दिया।अपने भतीजे-भतीजियों के साथ खेलते हुए काजल के दो दिन कट गये।तीसरे दिन काजल बोली,” बड़ी भाभी..मेरी चाय?” सुनंदा बोली,” काजल..महाराज बाज़ार गये हैं और मुझे तन्वी के स्कूल जाना है तो तुम खुद ही..।” तीन महीने ससुराल रही तो सास ही चाय बनाती थी, अब वो चाय कैसे…।

      बस उसी दिन से सुनंदा और कामिनी उसे नज़रअंदाज़ करने लगीं..उसे बेवजह टोकने लगीं।बच्चे भी पढ़ाई का बहाना बनाकर उससे कतराने लगे।उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों…? भाई तो दिन भर काम पर रहते..देर रात लौटते और फिर सुबह निकल जाते।एक रात वो पानी लेने के लिये किचन में गई तो गलती से उसका हाथ शो-केस पर चला गया और la-opella के दो बाउल गिरकर टूट गये।सुबह टूटे टुकड़े देखकर सुनंदा उस पर बरस पड़ी और कहा कि तुम्हारे कंगले ससुराल वाले तो खरीद नहीं सकते, इसलिये तुमने ईर्ष्यावश तोड़ दिया है।कामिनी ने भी तीखे बाण छोड़ दिये जो उससे सहन नहीं हुआ और बैग उठाकर वापस आ गई।

      ससुराल आकर वो कमरे में जाकर फूट-फूटकर रोने लगी।सास ने दरवाज़ा खटखटाया लेकिन उसने नहीं खोला।फिर पायल बार-बार पूछती रही,” प्लीज़ भाभी…कुछ तो बताइये…।” तब उसने दरवाज़ा खोला।पायल उसे पानी पिलाने लगी तो अपने व्यवहार याद करके वो फिर से रोने लगी।पायल ने उसके आँसू पोंछे और मुस्कुराते हुए बोली,” भाभी..दो प्रश्न के उत्तर..।फिर तो उसे हँसी आ गई और उसी दिन एक नयी काजल का जन्म हुआ जो सुनील की पत्नी, सास की बहू और ननद का ख्याल रखने वाली भाभी थी।

         कुछ महीनों बाद वो एक बेटे की माँ बन गई..छठी में उसकी बड़ी ननद आई.. भाभियाँ भी आईं थीं लेकिन उसने अपनी सीमा में रहकर उनसे बात किया।रक्षाबंधन और तीज-त्योहारों पर वो मायके जाती लेकिन भाभियों के कहने पर भी नहीं रुकती।दीपा दीदी आतीं तो उन्हें पूरे मान-सम्मान के साथ विदाई देती।

      समय अपनी गति से चलता रहा।पायल की शादी तय हो गई।सगाई के अगले दिन खरीदारी करने काजल मार्केट चली गई।रास्ते में कुछ याद आया तो उसे लेने वो घर आई।उसने देखा कि उसकी सास फ़ोन पर बोल रही थी,” बस बेटी..अब मुझसे काजल का दुख देखा नहीं जाता..मैं उसे सब सच….।” अचानक काजल को देखकर उन्होंने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

     ” कैसा सच मम्मी? ” 

  ” वो…।” उसकी सास की आवाज़ लड़खड़ा गई।काजल ने फिर पूछा तब वो बोलीं,” उस दिन तुम रोते हुए मायके से लौटी तो मेरा मन घबरा गया।मैंने तुम्हारी बड़ी भाभी को फ़ोन किया।तब वो बोली कि चिंता मत कीजिये..सुनील ने जब हमें काजल के बारे में बताया तब हमने ये नाटक किया ताकि वो अपने घर-परिवार के महत्त्व को समझे।मैंने पापा जी को वचन दिया था कि अपनी ननद को बेटी की तरह विदा करूँगी, सो किया लेकिन उसके बचपने को ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाये बिना तो सब व्यर्थ होता ना आँटी जी।मैं बुरी बन गई तो क्या, मेरी ननद तो पायल की भाभी बन गई ना..।मैं तुम्हारी भाभी से यही कह रही थी कि अब मैं सच..।”

   ” और भईया…।” काजल का स्वर गंभीर था।

 ” तुम्हारे आने के बाद उन्होंने अजय-अनिल को सारी बात बताई और कहा कि धैर्य रखिये..काजल अपने घर में बस जाये, उसके बाद सब अच्छा हो जायेगा।” उसकी सास बोली तब काजल अपनी सास का हाथ अपने हाथ में लेकर नम आँखों से बोली,” मम्मी..उन्होंने मेरे लिये बहुत किया है।अब मेरी बारी है। मैं सब जान चुकी हूँ, ये बात हमारे बीच ही रहने दीजियेगा।”

      धूमधाम से पायल का विवाह सम्पन्न हुआ।काजल ने अपने मायके वालों को उपहार देकर विदा किया।घर आकर सुनंदा और कामिनी ने अपने उपहार खोले तो चकित रह गई।दोनों के उपहारों पर लिखा था, भाभी..मुझे ननद से भाभी बनाने के लिये आपको धन्यवाद!” पढ़कर दोनों मुस्कुराने लगी।

      काजल के दिन अपने बेटे को पालने और सास की सेवा में बीतने लगे।एक दिन अजय ने फ़ोन किया,” काजल..तन्वी की शादी तय हो गई है।इकलौती बुआ हो..सप्ताह भर पहले ही आ जाना।” 

  ” जी भईया..।”

       विवाह से दो दिन पहले काजल सुनील के साथ मायके गई।हँसी-ठिठोली के बीच उसने सारे रस्मों-रिवाज़ निभाये।विवाह के बाद तन्वी विदा हो गई।तब अगली सुबह वो कामिनी से बोली,” छोटी भाभी..अब मुझे भी जाना है।पायल आने वाली है..उसके लिये सब तैयारी करनी है।” सुनते ही सुनंदा ने मज़ाक किया,” हाँ भई..हमारी काजल ननद से बन गई है भाभी।तो अब उसे हमारा ख्याल कहाँ…।” 

    काजल भी उसी अंदाज़ में बोली,” बड़ी भाभी..ख्याल तो हमें है लेकिन हमें सिर पर मत बैठाइये वरना…।” कहते हुए वो धम्म-से फ़र्श पर बैठ गई।फिर तो वहाँ खड़े बड़े-छोटे सभी लोग ठहाका मारकर हँसने लगे।उसका बचपना देखकर सुनंदा की आँखें खुशी-से छलछला उठीं।दूर खड़े उसके दोनों भाई भी भावविभोर हो गये,” ईश्वर करे..तेरा मासूम बचपना ऐसे ही बना रहे..तू ऐसे ही सदा हँसती- खिलखिलाती रहे…।”

                               विभा गुप्ता

# ननद                    स्वरचित, बैंगलुरु 

           हर भाभी अपनी छोटी ननद को दुलार करती है लेकिन ननद की गलती को सुधारना भी भाभी का ही फ़र्ज़ होता है जैसा कि काजल की दोनों भाभियों ने किया।

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