ननद रानी अभी नासमझ है। – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi

शुचि का स्वर थोड़ा तेज हो रहा था, वो अपनी गलती मानने को तैयार ही नहीं थी, आखिर घर की बेटी होकर कैसे घर की बहू से हार मान लें, बहू तो अभी कुछ महीनों पहले आई थी और वो तो यही जन्मी, पली बढ़ी, और इस घर में सालों से उसका ही वर्चस्व रहा है, एकदम से सबका प्यार बंटता देखकर वो बौखला गई थी।

“आपको तो अपनी बहू की अच्छाई के आगे कुछ दिखाई नहीं पड़ता है, आप जब देखो जान्हवी भाभी के ही पक्ष में बोलते हो, इनकी गलती किसी को नजर ही नहीं आती है, और आप मुझे डांट रहे हैं, ये कहकर शुचि उदास हो गई।

ममता जी ने मामले की गंभीरता देखते हुए, उस वक्त चुप रहना जरूरी समझा और शुचि को अपने कमरे में जाने को कहा,  और जान्हवी को उसके कमरे में भेज दिया, वो बेटी के सामने बहू को और बहू के सामने बेटी को डांटना नहीं चाहती थी, आखिर दोनों ही रिश्ते दिल से जुड़े थे, बेटी को जन्म से पाला पोसा प्यार दिया, और बहू का चेहरा बरसों बाद देखा तो उसके लिए भी मन में अथाह प्यार था।

बात कुछ नहीं थी, पर आजकल शुचि जान्हवी के आने के बाद ज्यादा चिड़चिड़ी हो गई है, और जब देखो वो जान्हवी से खुद को बेहतर दिखाने की कोशिश करती है, जान्हवी बेहद संस्कारी और समझदार थी।

वो अपनी सास ममता जी ससुर जी और पूरे परिवार का ध्यान रखती थी, वो घर के काम भी हंसी-खुशी से करती थी, तभी तो ममता जी हर जगह अपनी बहू की प्रशंसा करती थी तो ये बात शुचि का चुभने लगी थी, वो अपनी ही भाभी से जलने लगी थी, और वो उसे नीचा दिखाने का बहाना ढूंढ़ती रहती थी, शुचि अपने भाई नीरज से तीन साल छोटी थी, इस कारण वो घर में सबसे छोटी होने के कारण सबकी लाडली भी थी।

शादी को अभी कुछ ही महीने हुए थे, जान्हवी ने आते ही सबका दिल जीत लिया था, अपने ही माता-पिता से दिन रात अपनी भाभी की प्रशंसा शुचि से सुनी नहीं जाती थी।

सुबह का समय था, जान्हवी सबके लिए नाश्ता बना रही थी, शुचि कमरे में बैठकर टीवी देख रही थी, घंटी पर घंटी बज रही थी, पर शुचि ने दरवाजा नहीं खोला, 

वो टीवी पर गाने देखने में व्यस्त थी, जल्दबाजी में दरवाजे की घंटी सुनकर जान्हवी रसोई से गई तो देखा प्रेसवाला कपड़े लेने आया था, कपड़े बाहर ही रखे थे, लेकिन शुचि अपने सोफे से नहीं उठी।

जान्हवी ने कपड़े देकर दरवाजा बंद किया और रसोई में आई तो देखा, दूध पूरा उफन कर गैस पर बिखर गया था, और थोडा जमीन पर भी फैल गया था, इधर नीरज कमरे से तैयार होकर आयें, उन्हें ऑफिस की जल्दी थी, नीरज नाश्ते के साथ दूध जरूर पीते थे, अब जान्हवी हड़बड़ा गई कि पहले नाश्ता दें या पहले दूध साफ करें, ममता जी पूजा कर रही थी, फटाफट से आई, जान्हवी ने दूध साफ किया और ममता जी ने बेटे को सेंडविच बनाकर दिएं।

नीरज ऑफिस चला गया तो ममता जी ने शुचि से कहा, शुचि तू दरवाजा खोलकर प्रेस के कपड़े दे देती तो जान्हवी को परेशान नहीं होना पड़ता, और ये दूध भी ना फैलता, भाभी की थोड़ी बहुत मदद कर दिया कर।

ये सुनते ही शुचि बिखर गई, आपको तो भाभी की अच्छाई के आगे कुछ नजर नहीं आता है, दूध उनकी गलती से फैला है, वो गैस बंद करके भी जा सकती थी, पर दोष मुझे ही दिया जा रहा है,और पैर पटकते हुए कमरे में चली गई।

ममता जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था, वो क्या करती उन्होंने जान्हवी को अकेले में समझाया।

कोई बात नहीं मम्मी जी, ननद रानी अभी नासमझ है, इनकी शादी होगी तो समझदार हो जायेगी।

कुछ महीनों बाद शुचि की सगाई हो गई, और धूमधाम से शादी भी हो गई, शादी करके वो ससुराल गई तो उस पर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई, शुचि की सास बीमार रहती थी, और एक छोटा देवर पंकज था, जो शुचि के आगे-पीछे होता रहता था, और भाभी…भाभी …. करता रहता था।

एक सुबह सभी नाश्ता कर रहे थे, पंकज अपनी पढ़ाई कर रहा था, शायद दरवाजे पर सब्जी वाला आया था, शुचि के हाथ आटा गुंदने में व्यस्त थे, वो फिर भी हाथ साफ करके दरवाजे पर गई और सब्जियां ली, जब रसोई में आई तो देखा कि तेज आंच पर रखी सब्जी जल चुकी थी, जल्दबाजी में वो गैस धीमी करना ही भुल गई थी, उसे किसी ने डांटा नहीं, क्योंकि सास तो बीमार रहती थी, उसने मन ही मन सोचा कि दरवाजा तो पंकज भी खोल सकता था, लेकिन वो कुछ नहीं बोली।

उसे अपने मायके में की गई हर हरकत हर गलती सामने आ गई, उसने कभी भाभी का साथ नहीं दिया तो वो कैसे किसी से अपेक्षा रख सकती थी।

कुछ दिनों बाद उसका मायके जाना हुआ, तो अब शुचि बदल गई थी, चुलबुली गुस्सैल, चिड़चिड़ी शुचि अब गंभीर, शांत , समझदार हो गई थी।

भाभी जान्हवी हमेशा की तरह रसोई में काम कर रही थी, वो भी वहां पहुंच गई, लाइये भाभी, मै मदद करवा देती हूं, आप अकेले कितना करेगी? शुचि के बदले व्यवहार को देखकर ममता जी और जान्हवी आपस में एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा दी।

जब अपने पर बीतती है तो हर व्यक्ति सुधर जाता है, और उसका व्यवहार भी बदल जाता है, शुचि को

भी अब ममता जी की तरह ही अपनी भाभी में अच्छाई ही नजर आ रही थी।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना 

#आपको तो अपनी बहू की अच्छाई के आगे कुछ दिखाई नहीं पड़ता है।

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