जब ऋषि ने प्रिया से पूछा ” मम्मा वो बुआ वाला महीना कब आएगा ?” तो प्रिया हंसते हुए बोली बस अगले हफ्ते आने वाला है तो वह बहुत खुश हुआ और खेलने चला गया।
ऋषि बुआ वाला महीना जून के महीने को बोलता था जब उसकी बुआ छुट्टियों में 10 दिनों के लिए उसके यहां आती थी।
ऋषि और मनु ,प्रिया के 2 बच्चे थे जिन्हे जून के महीने का हर साल बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता क्योंकि वो दोनो तब अपनी बुआ के बच्चों से मिलते और घर में रोज़ कुछ अच्छा खाने को बनता था वो अलग
एक हफ्ते बाद………
“ऋषि, मनु कल तुम्हारी दोनो बुआ आने वाली है तुम्हारे भाई बहनों के साथ ….”जब दादी ने ये खबर सुनाई दोनों बल्लियां उछलने लगे खुशी के मारे।
” दीदी अब तो रोज अच्छा अच्छा खाने को मिलेगा “
” हां ऋषि और मम्मी की डांट भी नही पड़ेगी चाहे मर्जी जो करो ओए बल्ले बल्ले…”..दोनो नाचने लगे और घर के बाकी लोग उन्हे ऐसे खुश देख कर हंसने लगे।
प्रिया की ननदों से बहुत पटती थी, वो दोनो उसे छोटी बहन का प्यार जो देती थी। आने के एक हफ्ते पहले ही प्रिया की छोटी ननद फोन कर मजाक में बोल देती थी _, “प्रिया अब एक हफ्ते ज्यादा पकवान मत बनाना, क्योंकि अगले हफ्ते हम आने वाले है ।तुम अभी बना लोगी तो फिर हमारे आने पर बोलोगी
“दीदी हमने तो अभी बनाकर खाया है सब और गर्मी भी बहुत है तो कुछ हल्का बना लेती हूं खाने में “, फिर कुछ बनाकर नही खिलाओगी उधर प्रिया बोलती _ “अरे दीदी आप आओ तो हम बस लौकी और दाल ही खायेंगे तब तक और दोनो नंद भौजाई ठहाके मारकर हंसती ।
प्रिया के ससुर जी भी एक हफ्ते पहले ही प्रिया को बोल देते बेटा राशन क्या लाना है लिस्ट बना देना बच्चों के हिसाब से , सब आयेंगे तो खाना पीना बनता रहेगा उसकी भी लिस्ट बना देना , जी पापा कहकर प्रिया सामान की लिस्ट बनाने लग जाती उधर सासू मां भी बिस्तर , बर्तन छांटने लगती ,घर की अतिरिक्त साफ सफाई भी करवा देती प्रिया के साथ मिलकर क्योंकि फिर बेटियों के आने के बाद इतना टाइम नही मिलता ना।
बड़ी अच्छे से तैयारी चलती प्रिया के ससुराल में जून के महीने की या कह लो ननद के स्वागत सत्कार की
आज प्रिया की ननद अपने बच्चों के साथ आने वाली थी तो जाहिर हैं तैयारियां पूरी थी आते ही सब बच्चों ने धमा चौकड़ी मचाना शुरू कर दिया और हल्ला मचा कर पूरे घर को सर पे उठा लिया पर कोई कुछ नही बोलता उन्हे, पूरी छूट मिलती थी बच्चों को नाना नानी के घर पर इन 10 दिनों में।
आमतौर पर ननद जब भी अपने मायके आती हैं तो भाभी का काम बढ़ जाता है क्योंकि सास हमेशा अपनी बेटी का पक्ष लेती है यह कहकर कि मेरी बेटी तो यहां आराम करने आई है , काम तो उसके ससुराल में ही बहुतेरा है ।
पर प्रिया की सास बहुत समझदार और सुलझी हुई महिला थी । उन्हें पता था कि जितने लोग, उतना काम इसलिए वो प्रिया की पूरी मदद करती थी काम में और अपनी बेटियों से भी हाथ बंटाने कहती थी ताकि प्रिया को काम करने में आसानी रहे और अपनी ननद के आने से वो दुखी नहीं बल्कि खुश रहे । प्रिया की ननद इसी बात को लेकर अपनी मां को छेड़ती रहती थी।
प्रिया की बड़ी नन्द अपनी मां को देखते हुए उन्हें चिढ़ाते हुए बोलती _”प्रिया आज का काम तुम कर लो , कल से हम कर लेंगे ।आज हम थक कर आए हैं न, नही तो मम्मी बोलेगी मेरी बहु पूरे दिन काम में लगी रहती है और तुम आराम करती हो , है ना मम्मी..”
और सब हंस जाते थे।
” हां तो जैसे तुम बेटी हो वैसे ही वो भी तो मेरी बेटी है और तुमसे ज्यादा ध्यान रखती है मेरा , तुम तो 8 दिनों के लिए आती हो पर वो हमेशा मेरे साथ रहती है तो उसका ध्यान तो रखूंगी न, “प्रिया की सास भी हंसते हुए बोलती। प्रिया की सास और उसका मां बेटी का रिश्ता था , दोनो सारे दिन बाते करते रहते थे दुनिया दारी , रिश्ते नाते की। सास बहु का आपसी सामंजस्य होने से घर का वातावरण हमेशा तनाव मुक्त रहता था और प्रिया की दोनों ननद भी अपने मायके बिना हिचक के , अधिकार से आती थी
अगले दिन से ही प्रिया की दोनो ननद उसका पूरा हाथ बंटाती थी घर के काम में, बड़ी ननद कपड़े सम्हालती तो छोटी बच्चों का नाश्ता पानी, साथ में सासू मां भी ऊपर का साफ सफाई का काम करती , प्रिया बाकी सारे लंच, डिनर, चाय, पानी, बर्तन देखती। सारे काम सब मिल बांट कर करतें थे
तो प्रिया पर ज्यादा जोर नही पड़ता काम का। उसकी सासू मां का नियम था 10 बजे तक सब काम से फ्री हो जाओ फिर चाहे पूरे दिन आराम करो । और जितने लोग उतना काम हो जाता है तो उन्होंने अपनी दोनो बेटियों से भी यही बोल कर रखा था कि सबका काम है तो सब करेंगे , एक अकेला काम करे और बाकी सब आराम.. ये कहा का नियम है?
प्रिया को बहुत अच्छा लगता जब सब एक साथ होते।
बच्चे भी कभी नाना के साथ कैरम खेलते तो कभी उनको जोक सुनाकर हंसाते, कभीं नानी के साथ चंगा पो खेलते तो कभी ताश। प्रिया के सास ससुर भी बड़े हंसते मुस्कुराते रहते इन दिनो, बच्चों के साथ वो भी बच्चे बनकर अपना बचपन फिर जी लेते। शाम को खाना होने के बाद सब मिलकर(प्रिया, उसकी ननदे, पति, सारे बच्चे) सतोलिया खेलते और सब बड़े, बच्चे बन जाते। प्रिया के यहां खाना दिन में ही बन जाता था गर्मी के कारण क्योंकि
उसकी सासू मां चाहती थी कि सारे काम से फ्री होकर प्रिया भी बाहर घूम ले नहीं तो वो अकेली काम करतीं और सब बाहर खेलते, तो उनको अच्छा नही लगता था। तो बोलती खाना बनाकर रख दो जिसे जब खाना है खाता रहेगा, गर्मियों में वैसे भी गर्म खाना खाया नहीं जाता ।
बहुत अच्छा नियम था उसके घर का जिससे सब ज्यादा से ज्यादा टाइम एक दूसरे के साथ बिता पाते थे और छुट्टियों का मज़ा ननद के साथ साथ घर की बहु भी लेती थी।
रात को बड़े बच्चे सब मिलकर अंताक्षरी या दम सराज खेलते , मोबाइल में ज्यादा देर खेलने की बच्चो को छूट नही होती इन 10 दिनों में ताकि सब मिल जुल कर हंस बोल सके।
ऐसे ही हंसते मुस्कुराते ये दिन कब निकल जाते पता भी नहीं चलता ,घर हमेशा खुशियों से भरा रहता, सासू मां और ससुर जी के हाथ पैर के दर्द भी इन सब खुशियों में छुप जाते । बच्चों को भी कोई डांट फटकार नही। प्रिया तो हमेशा बोलती_” जून का महीना अपनो के प्यार का महीना होता है जो मीठी मीठी यादें छोड़ जाता है
ये यादें ही रिश्ते मजबूत करने का काम करती हैं जब हम दूर होते हैं एक दूसरे से। अपनो के अपनेपन का एहसास दिलाती हैं। “
जब ननदों के जाने का टाइम आता तो प्रिया दोनो को छेड़ते हुए बोलती_” दीदी इस बार बच्चों ने ज्यादा खर्चा करवा दिया राशन में तो आपकी विदा कम कर दी हमने इस बार , क्यों मम्मी जी है ना… और उसकी सासू मां भी हां में हां मिलाते हुए हंसती पर ननदे भी कहां पीछे रहने वाली थी बोलती_”
हां, हां हम तो कह रहे हैं तुम विदा दो ही मत इस बार , हमे बस पूरी गर्मी यही रोक कर गर्म खाना बनाके खिलाती रहो ऐसे ही, क्यों पापा है ना…. प्रिया के ससुर ननदो की तरफदारी करते और इन्ही खट्टी मीठी नोक झोंक से ननद भौजाई का रिश्ता और पक्का हो जाता।
उसके सास ससुर के लिए तो जैसे जून का छुट्टियों का महीना खुशियों का खजाना था जब उनके सारे बच्चे एक साथ रहकर उनके घर की रौनक में चार चांद लगा देते थे।
जब प्रिया की ननदें गले मिलकर उनसे विदा लेती तो न चाहते हुए भी उसके आंसू सबको दिख जाते और बच्चे बोलते मामी रोना मम्मी को चाहिए पर रोती आप हो , ऐसा क्यों? आप तो हंसते हुए ही अच्छी लगती हो हमारी प्यारी मामी और प्रिया बच्चों को चूमते हुए गले लगा लेती।
प्रिया की ननद सही का पक्ष लेती थी न कि पक्षपात करती। वो अपनी मां को ही समझाती थी हमेशा कि “मां प्रिया नए घर में आई है तो उसे अभी सेट होने में समय लगेगा , आप उसे बहु नहीं बेटी मानकर रहोगी तो वो भी आपको मां मानकर आपकी बात सुनेगी और समझेगी भी।”
प्रिया भी कभी उदास होती तो अपनी ननद से अपने मन का हाल कह देती थी और उसकी ननद हमेशा उसे समस्या का समाधान सुझा देती।
ननदों की समझदारी भी एक भाभी को ससुराल में मायके के सुख का एहसास दिला सकती है ये बात प्रिया भली भांति समझ गई थी इसलिए जब भी अपने मायके जाती अपनी भाभी के साथ भी वह दोस्त की तरह रहती थी और उसका पूरा हाथ बंटाती थी।
दोस्तों कितना अच्छा लगता है ना जब पूरा परिवार साथ वक्त बिताता है और ऐसे मेहमान विशेषकर ननद , मेहमान न बनकर मेजबान (घर के सदस्य) बन जाए और भाभी का पूरा हाथ बंटाए तो छुट्टियों का मजा दुगुना होना स्वाभाविक है नहीं तो ननद के आने से भाभी अपने आप को अकेला महसूस करेगी और समय के साथ ननद भौजाई का रिश्ता बस औपचारिक रह जाएगा।
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स्वरचित और मौलिक
निशा जैन