ननद – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

आखिर बकरे की माँ कब तक खैर मनाती….. शादी शुदा ननद की दखलंदाजी, घर का बिगड़ता माहौल आज तो सुबह सासूमां ने जैसे ही काम और ननद को लेकर बहस की हिम्मत करके श्वेता ने भी बोल ही दिया। ‘माँ ऽऽ ननद अपभ्रंश है “न आनंद” का यानि वह व्यक्ति जो “न आनंद “ देने के लिए ही बना हो ।

इसलिए आप ननद दीदी का नाम न आनंद ही रख दीजिए ‌ अब जहां आनन्द ही नहीं वहां भला निभेगी कैसे…? श्वेता का ऐसा बोलते ही घर के सभी सदस्य एक पल तो एक दूसरे का मुह ही ताकने लगे, सदा गाय

की तरह सीधी-सादी बहू के मुंह से कभी उत्तर मिलेगा ऐसी आशा से विरक्त थे सभी…मगर कुछ पल में ठहाकों की आवाज ने चुप्पी को तोड़ डाला । सारा घर ठहाकों की आवाज से गूँज उठा ।घर का तो माहौल ही बदल गया आज तो ननद रानी के पति भी आये हुए थे बोले..

    “ वाह भाभी क्या हकीकत बयां की है आपने सच्चाई ही सामने रख दी बहू हो आप जैसी “।

दरअसल हुआ क्या….? यह है श्वेता के घर की कहानी।

बुआ आ गई, बुआ आ गई,ये ऽऽ बुआ आ गई । मम्मी दादी देखो बुआ आ गई । सुबह सुबह बच्चों के चिल्लाने की आवाज घर में गूंजने लगी। बच्चों की बुआ यानि रूपाली, श्वेता की बड़ी शादी शुदा ननद, एक ही शहर में रहती अक्सर घर में आती जाती रहती है.. लेकिन जब भी आती ढेरों खेल खिलौने, चाकलेट, टाफियां बच्चों के लिए साथ लेती आती उसके खुद के दो बच्चे और यहां दो

बच्चे श्वेता के, सभी आपस में मिलकर खुशी से चहकने लगते। अब बच्चों को इंतजार रहता बुआ का या अपने संगी बच्चों के साथ का, या बुआ के लाये जाने वाले मिठाई खिलौनों का ये तो बच्चे ही जाने…हफ्ते भर में कभी बुआ न आती तो बच्चे सारा घर सर पर उठा लेते दादी, मम्मी बुआ क्यों नहीं आई ।

लेकिन श्वेता को ननद रूपाली बिल्कुल नापसंद थी। एक तो उसके आते ही बच्चे घर में चुहलबाज़ी धमाचौकड़ी करते,सास ससुर उसी के दाये बाये आगे पीछे ही घूमने लगते और श्वेता अपने ही घर में पराई, अजनबी सी होकर रह जाती। उसके आते ही कोई उसकी तरफ देखता भी नहीं था ‌।और रूपाली अपने तो घर की मालकिन यहां मायके में भी मालकिन ही बनी घूमती रहती।

रूपाली अपने स्वभाव गत अपने ही बारे में सोचने वाली उसे सामने वाली की क्या फीलिंग कोई मतलब नहीं.. यहां तक की दिनभर में पानी भी पीना हो तो श्वेता को ही बैठे बिठाए आवाज लगा देतीं …

    “श्वेता पानी चाहिए जरा देर हो जाये तो कह देती मिलेगा या नहीं “

 बेचारी श्वेता को दसों काम छोड़कर आना पड़ता। आवाज का जवाब तो तुरंत देना पड़ता..आ रही हूँ दीदी अभी लाती हूँ हाथ गन्दें है अभी धोकर लाकर देती हूँ ।

मगर रूपाली एक के बाद एक हुक्म चलाती।जब तक मायके में रहती श्वेता से गुलामी ही करवाती ।

पकौड़े बना दो,छोले भटूरे बना दो, कढ़ी बना दो ..ये बना दो,वो बना दो, ये कभी नहीं कहती मैं बना देती हूँ । 

उसके आते ही श्वेता की हैसियत एक कामवाली की सी बनकर रह जाती।घर के सभी सदस्य ऐसा समझते जैसे श्वेता न हुई वो अल्लादीन का चिराग होकर रह गई। हुक्म बजाया नहीं श्वेता हाजिर होनी चाहिए।

श्वेता को रूपाली नापसंद का मुख्य कारण यह भी- कि वो अपनी ही चलाती। मायके से विदा होकर भी उसके अधिकार खत्म नहीं हुए बराबर दखलंदाजी का उसका स्वभाव श्वेता को क्रोधित कर देता। पिछले हफ्ते आई तो कितनी बहस हो गई दोनों ननद भाभी में….

 भाभी ये पर्दे देखों लिविंग रूम में कहीं भी कमरे के पेंट से मैचिंग नहीं कर रहे। दो साल से यही टंगे हुए हैं।बदलो इनको । मैं  तो देख देख बोर ही हो गई हूँ । मैं चलती हूँ मार्केट आप के साथ, अपनी पसंद के खरीदवा दूंगी। रूपाली बिना रूके बराबर बोली जा रही थी।

श्वेता को तो ये पर्दे बहुत पसंद थे कितने चाव से दीपावली पर दोनों पति-पत्नी खरीद कर लाये थे । तभी दो वर्ष से उसने बदले भी नहीं थे जरूरत ही नहीं बदलने की कितना महंगा और अच्छा कपड़ा था । दुकानदार ने तो पहले ही कह दिया था बहनजी पांच साल तक कहीं नहीं जायेंगे…

     “सस्ता बार बार रोया महंगा एक बार रोया “

उन्होंने भी यही सोचकर खरीदें थे कौन बार बार खरीदेगा ।

श्वेता पहले जवाब देती रही जब रूपाली कुछ समझने को तैयार नहीं तो सब सुन कर चूपचाप रह जाती बोलने का फायदा भी क्या सासूमां ने बखेड़ा खड़ा कर देना था ।

“ जैसा की घरों में आम समस्या होती ही है एक बार बेटी मायके आ जाये, माता पिता को दो पल नहीं लगता बहू को अनदेखा व पराया बनाने में।घर में दिनभर घूमती रहती सास ससुर उसकी हर बात में हां में हाँ करते फिरते बेटी का गुणगान, उसके ही कार्यो की माला जपते घर का अच्छा खासा माहौल बिगाड़ने में देरी नहीं लगाते”!!!

 बात बात पर बहू को नीचा दिखाना…तुम तो हमारी बेटी के आगे कुछ भी नहीं हो वगैरा वगैरा।

सासूमां की सुबह से ही आवाज गूंजने लगती श्वेता सुन, श्वेता देख ले रूपाली क्या कह रही है….? देख कितनी गुणी है। अपना घर तो कितने अच्छे से संभालती यहां भी अच्छे से संभाले हुए हैं।

श्वेता का मन करता आज सुना ही दे…

माँ दीदी अपने घर में खुश होती तो यहां आकर प्रवचन न बांचती..जो इंसान अपने घर में खुश होता है।उसे तो अपने ही घर से फुर्सत कब मिलती है..? दूसरे के घर गृहस्थी में जाकर वहीं ताक-झांक करते फिरते जो अपने घर में खुश व सन्तुष्ट न हों ।

श्वेता का मन कहना तो बहुत कुछ चाहता था…लेकिन मन की बात कलेश न हो इस डर से कह नहीं पाती थी…मन कहता सासूमां आप मुझे अपना तो समझें ,तब तो मैं कुछ करके दिखाऊं, दीदी के आगे इस घर को कभी आपने मेरा बनने ही नहीं दिया..आपकी बेटी के आगे तो मैं पराई बनकर ही रह गई हूँ। उनका अपना घर मिल गया फिर भी मायके में दखलंदाजी करने चली आती है।

 अरे ऐसा भी मायके से क्या मोह ..?

कि भाई भाभी की नजरों में ही खटकने लगो…ननद रानी को समझना चाहिए आखिर मायका माँ पिता तक ही सीमित रखना है क्या..? उनके बाद भी बना रहे द्वार खुला रहे तब तो बात है। मां पिता कब तक एक बार गये नहीं कि मायके के द्वार बंद हो जाते हैं या फिर रिश्ते नहीं निभते बेमनी से ढोये जाते हैं। देखना ननद जी का ऐसा ही व्यवहार रहा तो .. कौन मुह लगायेगा उनको….?, सास ससुर जब तक है कर लो मनमानी ननद रानी बाद में कुण्डी लगा लेनी अन्दर से दरवाजे की …?

“काश ये ननद जी समझ पाती मुझे, परिवार को जोड़ कर रखती हर वक्त बदलने ढलने का दवाब न बनाती “ ।

ये दीदी तो मुझे नाकाबिल इंसान ही समझती है यही साबित करने में तुली रहती है। काश मुझे भी इस घर में सदस्य बना रहने देती । तब आज ये घर आपके रहते भी मुझे अपना लगता ये घर खुशियों का महल सुख नुमा माहौल बनाता ।अरे भई मैं भी एक इंसान हूंँ। दिन भर खटकती हूँ। दसों व्यंजन बनाती हूँ। उसके बाद भी सुनने को मिलता…कल की ही बात मैंनेकहा…

जरा देखिए माँ ये आलू कि हलवा टेस्ट कर बताये कैसा बना है।

सासूमां ने हलवा चखा बूझे मन से बोला हाँ ठीक ही है…आलू हलवा तो रूपाली बनाती एक दम फाइव स्टार होटल के बने हलवे के स्वाद जैसा ।

श्वेता कहना चाहती माँ कभी हमें भी टेस्ट करवा दीजिए फाइव स्टार होटल का स्वाद। 

मजाल ननद रानी किसी काम में हाथ लगा लें ,अरे काम भले ही न करें, परिवार का सदस्य ही समझ लें । उनकी तो अपने बड़े होने की अक्कड़ ही कम नहीं होती ।अब बड़े होने का यह मतलब तो है नहीं अपने सामने सबको हीन या छोटा समझने लगो । इंसान तो वही महान जिसके आगे कोई अपने को छोटा या हीन महसूस न कराये । तभी तो प्यार सम्मान बना रहता है। वरना तो झेलने वाली नौबत बस झेलते जाओ, झेलते जाओ।

“ये जो ननद होती इनकी खोट पैदा करने फूट डालकर राज करने वाला स्वभाव अक्सर परिवार को बिखेर कर रख देता है “।  

उनका बार -बार मायके में आकर जम जाना, पंचायत करना ग़लत नहीं है तो क्या है…? 

जिस परिवार में शादी शुदा ननदों का राज होता है। या उनकी ही चलती , बातें मानी जाती वो परिवार कभी आबाद हो ही नहीं सकता बर्बादी के कगार पर खड़ा हो जाता है।

“काश ननद रानी अपनी ये कमी समझ कर अपना निरीक्षण परीक्षण कर लेती “ ।

यह मेरा घर है, थोड़ी प्रभुत्व की चाह तो मुझे भी है। अब कौन बहू ये बर्दाश्त करेगी …उसकी शादी शुदा ननद घर में पंचायती करती फिरे..अब कुंवारी हो तो हक बनता है शादी शुदा का बोलना कहा तक सही है…? यह बात अलग भाई भाभी राय मांगे तो सलाह मशवरा कर दे।

आज तो जैसे ही सासूमां काम को लेकर छोटी सी बात पर श्वेता की बेइज्जती की …श्वेता तुम रूपाली से बड़ी बहन सा रिश्ता क्यों नहीं रख सकती…?

मैंने (श्वेता) ने भी हिम्मत कर के कह ही दिया माँ रिश्ता बहनों जैसा मजबूत तो तब बनता जब मेरे तुम्हारे को जगह नहीं दी होती,बहू बेटी में तुलना न की होती।

 मैं सुबह से खाली बैठी घर में झूला तो नहीं झूल रही । दिन भर काम में लगी रहती हूँ। क्यूं आप बेटी बहू के लिए अलग-अलग नियम बनाये हुए हो । तभी तो हम एक दूसरे के पीछे मुह बिचकाये घूमती रहती है।

माँ जब तक मेरे तुम्हारे की परम्परा चलेगी सुख शान्ति की कामना करना सांप और नेवले को बेस्ट फ्रेंड की कोशिश ही होगी।ननद भाभी कि बहन बनना असंभव ही है। रिश्ता मधुर बनता जब अपने नजरिए से नहीं सामने वाले के नजरिए से भी देखना जरूरी हो जाता है।

“ प्यार बाँटने से प्यार मिलेगा और नफरत बाँटने से नफ़रत मिलेगी “!!

और जैसे ही श्वेता ने ननद की परिभाषा को समझाया बात  समझ आते ही सारा घर ठहाकों से गूंज उठा सभी हँस हंँस कर लोटपोट हुए जा रहे थे। ननद रानी का भी हंसते बुरा हाल था। अब व्यंग से शायद ननद अपनी गलती का अहसास कर ले और वो सहेली,बहन बन जाए या माँ की भूमिका में आ जाये । श्वेता इसी आस में थी ।

 दोस्तों … रिश्ता ननद का ही नहीं कोई भी हो, सन्तुलन अपनी सीमा बहुत जरूरी है। कोई किसी का दुश्मन नहीं है..कई बार हम खुद तालमेल बिठाने में गलत होते हैं और ठीकरा किसी और के सर फोड़ देते हैं। दोस्ताना व्यवहार रखें।एक दूसरे की ताकत बने,  माहौल खुशनुमा रहेगा । मायके में मेहमान नहीं मेजबान भी रहें । रिश्तों में कड़वाहट या मिठास लाना सब हम पर निर्भर करता है। कड़वाहट की खोज करनी या मिठास की ।

    लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया 

  1. 3. 25

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