“भाभी!…आप गईं नहीं अभी तक…. मैंने आपसे कहा तो था फोन पर कि आप निकल जाना मुझे आने में देर हो जाएगी….” अंजली ने अपनी भाभी कामिनी से कहा।
“अरे तो चली जाएगी….पूरा दिन पड़ा है….तू तो अब आई है सुबह से….अब ऐसे भला अच्छा लगता है कि बहन बेटी घर आएं तो घर की बहू ही न मिलें….” कामिनी के कुछ बोलने से पहले ही उसकी सास सुषमा जी बोल पड़ीं।
“लेकिन मां ऐसे तो इनकी भाभी भी इनका इंतजार कर रही होंगी….अब रक्षाबंधन का त्यौहार तो सभी के लिए है …..और वो भी अगर इनके जाने के बाद जायेगी तो उनको तो शाम हो जाएगी….और वैसे भी मै तो यहां कुछ दिन रुकूंगी जबकि भाभी को तो वापिस भी आज ही आना है”अंजली ने अपनी मां से कहा।
“अब तू मुझे मत समझा…1–2 साल शादी के हुए नहीं कि मुझे ही समझाने चली….चल कमरे में बैठकर बातें करेंगे…..और हां बहू तू जल्दी से नाश्ता लगा दे और जल्दी मायके जाकर आ….वैसे भी अब ये तेरी ननद है न मुझे ही सुनाती रहेगी कि भाभी को देर हो रही है….”कहते हुए सुषमा जी अपनी बेटी अंजली के साथ अपने कमरे में आ गईं।
“तुझे बड़ी चिंता हो रही है अपनी भाभी की…अरे उसे कौन सा दूर जाना है….चली जाएगी….तू और उसका पक्ष लेकर उसे सिर चढ़ा ले….अरे ननद है, ननद की तरह रह, भाभी से खातिरदारी करवाना तो ननद का फर्ज होता है…कुछ अपनी बड़ी बहन से ही सीख ले….”कमरे में आते ही सुषमाजी अंजली से बोलीं।
“सही कह रही हो मां… ननद हूं ननद की तरह रहना चाहिए जैसे दीदी रहती हैं…दीदी की शादी के 2 साल बाद भैया की शादी हुई और 5 साल बाद मेरी लेकिन मैंने न तो दीदी से कुछ सीखा कि ननद होना क्या होता है और न ही भाभी से कि भाभी का फर्ज क्या होता है….अब देखो न दीदी तो हर रक्षाबंधन पर सुबह ही आकर राखी बांधकर अपनी सहेलियों से मिलने चली जाती हैं….आखिर सब सहेलियों का एक साथ मायके आना इसी दिन तो हो पाता है और तभी सब आपस में मिल पातीं है…..
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लेकिन मैं हूं कि देर से ही आ पाई…उस पर भी भाभी से कह रही हूं कि आप गईं क्यों नहीं जल्दी जाओ…..आखिर ननद की तरह खातिरदारी करवाना मुझे आता ही नहीं….और देखो न ससुराल में भी नहीं रुकी कि मेरी ननद आईं हैं तो कुछ उनकी खातिरदारी करूं ….उन्हें नए नए पकवान बनाकर खिलाऊं….भाभी होने का फर्ज़ निभाऊं…सच में मां मैंने यहां कुछ नहीं सीखा…”अंजली कहती जा रही थी
“तू पागल हो गई है!….तेरी शादी क्या हुई…. तेरी तो जैसे मति ही मारी गई है…जाने क्या क्या अनाप शनाप बोले जा रही है….होश में तो है…” सुषमा जी अंजली की बात काटते हुए बोलीं।
“मां, मैं बिल्कुल होश में हूं….और सच पूछा जाए तो अब होश में आ गईं हूं…पता है मां पहले मुझे भी लगता था कि आप और दीदी का भाभी के प्रति व्यवहार बिल्कुल सही है और इस पर मैं ज्यादा ध्यान भी नहीं देती थी लेकिन जब मेरी शादी हुई तब मुझे मेरी ननद के व्यवहार से पता चला कि वास्तव में ननद भाभी का रिश्ता होता क्या है….सच में मां एक सास बहू के रिश्ते में तो एक पीढ़ी का अंतर होता है इसलिए अगर सोच विचार में अंतर हो तो चलता है लेकिन नन्द भाभी तो हमउम्र ही होती हैं
तो इनको तो एक दूसरे की भावनाओं को समझने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि दीदी जैसी नन्द समझ ही नहीं पातीं….आज आप मुझे समय पर देखकर इतनी खुश है तो वो भी मेरी ननद की वजह से हैं….और उस पर भी आप पूछ रहीं थीं कि मुझे इतनी देर कैसे हो गई….वो तो अगर मेरी ननद आज ही वापिस नहीं जातीं तो मैं उनका इंतजार करती भी नहीं उन्होंने तो कहा भी था कि हमारा क्या है हम तो फिर भी मिल लेंगे….लेकिन त्यौहार पहले हैं इसलिए तुम जाओ…
लेकिन इतनी अच्छी नन्द से मिले बिना आने को मेरा मन ही नहीं मान रहा था इसीलिए मैंने भाभी को फोन पर बोल दिया था कि आप चली जाओ…. पता है मां मेरी दोनों ननदें इतनी अच्छी हैं कि जब भी मायके आतीं हैं तो मेरे मना करने के बावजूद मेरी मदद करती हैं वो हमेशा यही कहतीं हैं कि ननद भाभी तो सहेलियां होती हैं अगर नन्द ही भाभी को नहीं समझेगी तो ससुराल में उनको कौन समझेगा….और मां एक बात बोलूं जो ननद एक सहेली न बनकर ननद बनकर रहती है न तो वो अपने मम्मी पापा के सामने तक तो मायके में सम्मान पा लेती है लेकिन बाद में मायका भी पराया सा लगता है और उसको उतना प्यार भी नहीं मिलता…. “
बेटी की बातें सुन सुषमा जी सोच में पड़ गईं कि सही तो कह रही है ये अब वो खुद भी तो अपनी ननदों से दूरी बनाए रखतीं हैं और उनसे उनकी भाभियां….शायद यही कारण है कि हम ननद भाभी के रिश्ते में ही उलझे रहे… कभी एक दूसरे की साहिलयां ही नहीं बन पाए और धीरे धीरे प्रेम खत्म हो गया बस रिश्तों की औपचारिकता ही निभा रहे हैं….
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तभी वहां नाश्ते की ट्रे लिए कामिनी आती है जिसकी आंखें उन बातों को सुनकर प्रेमाश्रुओं से छलक पड़ती हैं और वह ट्रे रखकर अंजली के गले लग जाती है।
सुषमा जी दोनों के सिर पर आशीर्वाद स्वरूप हाथ रखते हुए, ” अब जाएगी भी जल्दी या मुझे भी रुलाएगी अब….और हां आराम से लौट आना कोई जल्दी नहीं। है ….शाम के खाने की चिंता न करना वो हम मां बेटी मिलकर बना लेंगे….”
सुषमाजी की बातें सुन अंजली और कामिनी मुस्कुराकर उनके गले लग गईं।
प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’
#ननद