बहु आंगन में नल के नीचे रात के झूठे बर्तनों से जूझ रही थी. उधर दालान में बैठी सासू मां नहा धोकर, पूजा पाठ कर चाय के लिए आवाज़ लगा रही थीं. दो-तीन बार पुकारने पर भी जब ‘ अभी लाती हूं, अम्मा जी ‘ ही जवाब मिला तो सासू मां दनदनाती हुई आईं और बहु की पीठ में कोहनी जड़ दी. ‘ ‘आजकल की बहुएं कमर दिखाने में ही अपनी शान समझती हैं . जल्दी हाथ चला, दोपहर होने को आई, एक चाय भी नसीब नहीं हुई ‘
दर्द से दोहरी होती बहु हाथ धोकर पहले चाय बनाने के लिए रसोई की ओर मुड़ गई. रोकते रोकते भी आंखों से आंसू छलक ही गए.
ऊपर चारदिवारी पर खड़ी ननद सुभागी ने सब देखा. कल ही ससुराल से आई थी. उसके यहां तो ऐसा कुछ नहीं है. घर के सभी लोग उसे प्यार और सम्मान देते हैं. ससुर जी ने शादी के बाद पहले दिन ही उसे घर में बेटी जैसे रहने को कह दिया था. मनचाहा पहनने पर भी कोई रोक-टोक न थी. यहां मां का घर की बहु से ऐसा व्यवहार उसे ठीक न लगा.
दोपहर के खाने के बाद वह मां के पास जा बैठी. ‘ मां, इस बार मैं दस-बारह दिन यहीं रह लूं ‘
‘ हां, हां, अरे तेरा घर है बिट्टो…क्या दामाद जी टूर पर गए हैं ‘ मां ने जिज्ञासावश पूछा .
‘ नहीं मां, मेरा वहां मन नहीं लगता. ‘
‘ अरे, ये क्या बात हुई, उनसे झगड़ कर आई है क्या ‘ मां के ललाट पर चिंता की रेखाएं उभर आईं.
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‘ नहीं, लेकिन सासू मां मुझसे खुश नहीं रहतीं. मेरा कोई काम पसंद नहीं आता. रात दिन ताने देती रहतीं हैं. कल तो…’
‘ कल क्या…’ मां ने घबराकर पूछा.
जवाब में सुभागी रोने लगी. ‘ मैं भाभी की तरह नहीं सह सकती . कल तो कमर में कोहनी मारकर धमकाया. मैं नहीं जाऊंगी वहां ‘
अपनी बहु का ज़िक्र आने पर मां सकपका गई. ‘ अरे नहीं, मैं तो तेरी भाभी को बहुत प्यार से रखती हूं. सुबह तो चाय न मिलने पर थोड़ा गुस्सा आ गया था. बहु तो बहुत अच्छी है, पूरा घर संभाल रखा है. मेरा भी खूब ध्यान रखती है ‘
मां को बहु के प्रति अपने रुखे व्यवहार का एहसास हो गया था.
सुभागी अपनी हंसी बड़ी मुश्किल से रोक पाई, और पर्दे के बाहर खड़ी बहु भी मुस्कुराए बिना न रह सकी…
– डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा