नमक की मिठास – सरला मेहता : Moral Stories in Hindi

शेखर जी के मन में अपनी बेटी के लिए अनगिनत भावनाएं उमड़ रही थीं। आज उनकी लाड़ली बेटी लावण्या की विदाई थी और उसे एक नए घर में भेजने का समय आ गया था। एक पिता के लिए अपनी बेटी को विदा करना हमेशा ही कठिन होता है, और शेखर जी के लिए यह पल और भी भावुक था क्योंकि लावण्या की माँ इस दुनिया में नहीं थीं। उन्होंने खुद अपनी बेटी को पाल-पोस कर बड़ा किया, हर परिस्थिति में उसका सहारा बने।

शेखर जी जानते थे कि अब उनकी बेटी का सुख-दुख उसके सास-ससुर के हाथों में है। बेटी की विदाई से पहले, वे विनम्रतापूर्वक लावण्या के ससुराल वालों से बोले, “जी, अपनी ओर से मैंने बेटी को सारे संस्कार दिए हैं। आज मैं अपनी जीवनभर की पूंजी आपको सौंप रहा हूँ। बिन माँ की बेटी से कोई गलती हो तो कृपया माफ कर दीजिएगा।” उनकी आंखें नम हो गई थीं, और लावण्या भी भावुक होकर अपने पिता का हाथ थामे खड़ी थी।

लावण्या की सास, ममता जी, एक स्नेही और समझदार महिला थीं। उन्होंने शेखर जी की आंखों में बेटे-बेटी के प्रति वो भावुकता देखी, जो शायद हर पिता महसूस करता है। ममता जी मुस्कुराते हुए लावण्या को अपने गले से लगा लिया और बोलीं, “आज से यह मेरी बेटी है। आप निश्चिन्त रहिए।” उनके शब्दों में अपनापन और सच्चाई थी। शेखर जी की आंखों में संतोष की चमक आ गई, जैसे उन्हें यकीन हो गया कि लावण्या अपने ससुराल में भी माता-पिता का स्नेह और सुरक्षा महसूस करेगी।

शादी के बाद ससुराल में आने के कुछ ही दिन बाद रसोई के मुहूर्त का दिन आ गया। लावण्या को नए-नए रिश्तों के बीच पहला खाना बनाना था। नए घर में पहला खाना बनाने को लेकर वह थोड़ी घबराई हुई थी। ममता जी ने उसके डर को भांप लिया और सहजता से उसे समझाया, “देखो, आज घर में सभी थकान की वजह से देर से उठेंगे। हम दोनों मिलकर जल्दी-जल्दी सब काम निपटा लेंगे। तुम बस दाल-सब्जी बना लेना, बाकी हलवा, पुलाव और रायता मैं फटाफट तैयार कर दूंगी।”

लावण्या को ममता जी के इस तरह से साथ देने पर बड़ा अच्छा लगा। उसने उत्साह और लगन के साथ रसोई में सब तैयार करना शुरू कर दिया। हलवा और पुलाव ममता जी ने तैयार कर दिया और लावण्या ने अपनी तरफ से सब्जी और दाल तैयार की। लेकिन नए माहौल में घबराहट और अनुभव की कमी के कारण उससे एक छोटी-सी भूल हो गई। उसने गलती से सब्जी में ज्यादा नमक डाल दिया और दाल में नमक डालना ही भूल गई।

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जल्द ही सब खाना खाने के लिए उत्सुक होकर टेबल पर इकट्ठे हुए। लावण्या के हाथों का पहला बना हुआ भोजन देखकर सभी बड़े खुश थे। टेबल सजाने में भी लावण्या ने बड़ी मेहनत की थी और हर चीज को बड़े प्रेम और खूबसूरती से सजा दिया था। सबकी नजरें खाने पर टिक गईं थीं। जैसे ही फूफाजी ने पहला निवाला लिया, उनके चेहरे पर एक हल्की-सी असमंजस की झलक दिखी। उन्होंने धीरे से कहा, “अरे, ये सब्जी तो नमक की बनी है और दाल में तो नमक नदारद है!”

यह सुनकर लावण्या के मन में शर्मिंदगी की लहर दौड़ गई। उसे ऐसा लगा कि उसकी गलती सबके सामने उजागर हो गई और उसकी आंखों में हल्के आंसू आ गए। तभी, ममता जी ने तुरंत बात संभालते हुए मुस्कुराते हुए कहा, “अरे, मैं सास क्या बनी कि अभी से सठियाने लगी। मसालदानी में नमक नहीं था, तो मैंने ही बहू से कहा था कि नमक मैं डाल दूंगी और लावण्या को टेबल सजाने का कह दिया।” उनकी बातों में ऐसा अपनापन और सहजता थी कि सब हंस पड़े। लावण्या को सासू माँ की यह बात बहुत राहत देने वाली लगी।

ममता जी ने एक बार फिर उसकी आंखों में झलकते आंसुओं को महसूस किया और प्यार से उसके गालों को पोंछते हुए बोलीं, “देखो, आटा लगा है।” उन्होंने सबके सामने इतनी आसानी से स्थिति संभाली कि किसी ने लावण्या की गलती को गंभीरता से नहीं लिया। उनके इस अपनत्व ने लावण्या को अपनी माँ की याद दिला दी। ममता जी के शब्दों ने लावण्या को राहत दी और उसे महसूस हुआ कि उसके इस नए घर में एक माँ का प्यार और स्नेह उसे मिल रहा है।

खाने के दौरान अनुपम जी भी मजाकिया लहजे में अपनी पत्नी को छेड़ते हुए बोले, “अरे, हलवे में तो तुम्हारे हाथ का ही स्वाद आ रहा है!” सबके चेहरों पर हल्की मुस्कान खिल उठी और माहौल हल्का हो गया।

ममता जी ने फिर सबके सामने कहा, “लावण्या, जल्दी से एक कटोरी हलवा और लेकर आओ। तुम्हारे पापा सारा हलवा चट कर जाएंगे, हमारे लिए शायद ही बचे।” उनकी इस बात ने सबको हंसी में ला दिया और लावण्या ने मुस्कुराते हुए कहा, “माँ, अब बस भी…पापा और हलवा लाऊं।”

उस दिन रिश्तों में नमक-मिठास के इस मिलन ने लावण्या के नए जीवन की शुरुआत में एक मीठा मोड़ ला दिया। उस दिन से लावण्या को अपने ससुराल में माँ-पिता का वही स्नेह और सुरक्षा मिली, जो उसके लिए बेहद मूल्यवान थी।

लावण्या के पति वरुण एक कोने में खड़े यह सब देख रहे थे। वे समझ चुके थे कि उनकी माँ ने बहुत प्यार और सूझ-बूझ से लावण्या को न केवल परिवार का हिस्सा बना लिया था, बल्कि उसे अपनेपन का ऐसा एहसास दिलाया था कि उसकी सारी घबराहट और झिझक गायब हो गई। वरुण की माँ ने जो अपनापन और स्नेह दिखाया था, वह लावण्या के दिल को सुकून देने वाला था।

 

मौलिक रचना 

सरला मेहता

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