नालायक बेटे के लिए,हमेशा बहु ही जिम्मेदार क्यों ….? – यामिनी अभिजीत सोनवडेक

अर्पिता,गुस्से में आज,दिल का गुबार निकाल रही थी,थक चुकी थी वो,इस अनचाहे भेदभाव और अनावश्यक ताने सुन सुनकर..

आपका बेटा नालायक है, तो मैं क्या करूं ? ये जिम्मेदारी और जवाबदारी मेरी नहीं है,सासु माँ…

जब हमारी शादी,हुयी,तब आपका बेटा मयंक 30 साल का था,और मैं उसकी दुनिया में 30 साल के बाद आयी,तो उसकी किसी भी बात के लिए आप मुझे कैसे,कुछ भी बोल सकते हो,चुपचाप लिहाज कर के सुन लेती हूँ,तो गूंगी ही समझ लिया,मुझे…

आपकी पारखी नज़र और अनुभव का मयंक की जिंदगी में कोई असर ही दिखाई नहीं देता, मुझे तो आपकी परवरिश ही कुछ कम लगती है, मैं कभी ऐसे बोलना नहीं चाहती थी,लेकिन मजबूर हो गयी हूँ मै,

 

अर्पिता की सास – बिना बच्चे पैदा किए,तुम इतनी बड़ी बात कैसे कह सकती हो ? तुम्हें पता भी है बच्चे कैसे पाले जाते है?,जब खुद पर बीतेगी,तब ही अक्ल आएगी,तुम्हें…

 

मम्मी जी, मेरी बात जब आएगी,तो आप ही क्या, पूरी  दुनिया देखेगी…औरत जब पहली बार माँ बनती है,सारी चुनौतियों का सामना करती है, क्योंकि कोई साथ दे या ना दे,भगवान हमेशा साथ देता है… – अर्पिता

 

देख लेंगे,बेटा,वो दिन भी दूर नहीं जब तुम खुद के किए पर और बोल पर शर्मिन्दा होगी…अर्पिता की सास ने गुमक के साथ कहा…

 



इन दो औरतों की बहस और शक्ति प्रदर्शन में पिस रहा था मयंक,देखा जाए,तो  दोष मयंक का सीधे तौर पर था ही नहीं, लेकिन असर तो उसी पर हो रहा था,वो भी चौतरफा,समझ ही नहीं पा रहा था कि कहाँ कम पड़ रहा है? नौकरी कर रहा है,अच्छा खासा कमा लेता है…पर माँ और पत्नि की आकांक्षाओं के चक्कर में घर ,कुरूक्षेत्र का मैदान दिखाई देता था उसे…

सब उसकी कमाई पर मौज करते और उसे नालायक भी कहते थे,वो सोचता क्या झगड़ा करना,माँ भी अपनी और बीवी भी अपनी ही है…

अर्पिता न महसूस किया,कि जब मयंक उसकी माँ के हिसाब से रहे,तो बड़े काम का लगता है,और अगर कोई काम ना कर सका तो खुद तो ढिंढोरा पीटती साथ में रो-रो कर सबको बताती,कि मयंक तो नालायक है,जब से शादी हुयी है,सुनता ही नहीं है… अर्पिता को इन्हीं शब्दों से चिढ़ थी,वो मयंक के जज्बात और भावनाओं को वो समझती थी,लेकिन उसकी सास का बार बार ताना मारना कि शादी के बाद से फलाना-ढिकाना हो गया है…बॉय गॉड़ झाँसी की रानी ही बन जाती थी वो…

और इस बार तो सीधा,तोप का गोला दागा था,सासु जी की तरफ…

अर्पिता की सास को तो काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गयी…रोज-रोज की उलझनों और परेशानियों से तंग आकर,फाइनली अर्पिता और मयंक ने अपना वैवाहिक जीवन बचाने के लिए,अलग रहने का फैसला किया,

अर्पिता ने कहा-अब आप किसी को भी कुछ भी बोलो,लेकिन कम से कम इतना ध्यान जरूर रखना मम्मी जी- नालायक बेटे के लिए,हमेशा उसकी बीवी ही जिम्मेदार नहीं होती,कभी कभी खुद माँ भी इसके लिए उत्तरदायी होती है।.

 

और मयंक तो बेचारा,अपना सा मुँह लेकर कुछ बोल ही नहीं पाया…और खट्टी-मीठी यादें लेकर निकल पडे दोनों,एक दूसरे का हाथ थाम,जीवन के एक नये अध्याय की शुरूआत के लिए…।

 

दोस्तों,जिंदगी हमेशा,हमारे नजरिये के हिसाब से दिखाई देती है,कभी कुछ कम तो कभी ज्यादा, आपको अर्पिता और मयंक की स्थिति जानकर उनका फैसला सही लगा या नहीं, मुझे जरूर बताएं…

आपका प्रोत्साहन और प्रतिक्रियाएं मुझे बेहतर लेखन की प्रेरणा देती है,आशा करती हूँआपको यह रचना पसंद आयी होगी।.

 

 

आपकी सखी – याभिनीत

(यामिनी अभिजीत सोनवडेकर) 

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