रविवार का दिन शनिदेव उतारने के लिए हम मर्दों को वरदान में मिला है।हम यह सोच ही रहे थे कि पीछे से हमारी जीवन संगिनी परिवार कल्याणीं परम पूज्य अर्धांगिनी के स्वर हमारी तपस्या को भंग करते हुए आये और कहा
“हे पति परमेश्वर जगत के कल्याण की कामना रखने वाले ,दिन में आफिस और रात को मोबाइल के दर्शन और कहानियों को गढ़ने वाले देव तनिक शरीर पर घास फूस की भाँति जो दाढ़ी और बाल उगाये हो ।उस ओर भी ध्यान दे लो।पास मैं केश कर्तनालय होते हुए भी भरपूर आलस में पढें रहने वाले बाबा जी सुन लो वरना जो ओटोमेटिक भोजन व्यवस्था चल रही ,उसमें व्यवधान पढ़ सकता है”
भोजन का नाम सुनकर हमारी तपस्या शीघ्र भंग हुई और बिना सवाल किये रोबोट की भाँति पैरों में चप्पल खौंस के।
हमें इंतजार करना पसंद नही है बिल्कुल। लेकिन हमारी इस आदत को हमेशा चैलेंज किया नाईदेव ने और हमसे बोले तीव्र मुस्कान के साथ
“आइये भैया जी बस 5 कस्टमर के बाद आपका नंबर है ,जब तक अखबार पढ़ लो ।”
हमारी कनपटी क्रोध से गर्म होने लगी इतना सुनते ही आँखों में अंगारे तैरने लगे ।रावण की भाँति।फिर हमारे अंदर के राम ने कहा “वत्स प्रतीक्षा के अलावा कोई चारा नही है ,अगर क्रोध करके और युद्ध करके तुम सिंहासन पा भी लोगे, तो ध्यान रखो वो उस्तरे का मालिक है,अंग भंग करने में कसर नही छोड़ेगा,और तुम शूर्पणखा के भाई भी बन सकते हो”
यह राय हमें बहुत भाई और बैठ गये महात्मा बुद्ध की तरह पंक्ति में।
वह नाइदेव किसी लगभग 80 वर्षीय वृद्ध की सेविंग में व्यस्त थे ।वृद्ध का वजन बमुश्किल 40 से 45 किलो के आस पास रहा होगा ,आंखे अंदर घुसी हुई थी हड्डी में ,गाल भी सूख गये थे वो हड्डी में लगे थे ।खाल लटकी हुई और सिकुड़ी हुई थी ।नाईदेव उस्तरा बहुत सावधानी से चला रहे थे जैसे उबड़ खाबड़ रोड पर हम बाईक चलाते।हम पर देखा नही जा रहा था,पता नही अंदर से बड़ी पीड़ा हो रही थी उन वृद्ध को देखकर,पता नही क्यों।
सबकाम होने के बाद वृद्ध ने सिंहासन छोड़ा।और अपनी लड़खड़ाती आवाज में कुछ कहा जिससे नाईदेव रूष्ट हो गये ।तांडव करने लगे ।हमें समझ नही आया बाकी के कस्टमर भी एकठठा हो लिये।
मैनें क्रोध से लाल हुए नाईदेव से माजरा पूछा।
तो उसने सारी बात को एक सांस में ऐसा बताया
“मै इसलिए इन बुडडों की सर्विस नही करते देंगे कम रूपये और नाक के बाल भी काटो बगल के भी और आज तो हद ही हो गयी ।महाराज आज कह रहे नाखून काट दे ।अब आप ही बताओ?”
यह सुनकर जरा अटपटा लगा हमने वृद्ध से पूछा तो सिकुड़े हुए वृद्ध ने लड़खड़ाती आवाज में कहा ।
“बेटा गलती मेरी ही है,पर क्या करूं अकेला हूं ना ,चार बच्चे हैं पर कोई साथ नही हैं ,सोचा था बुढापे में सहारा होंगे,बचपन में उनके बाल संवारना, उनके नाखून काटता था ,आज मेरे लिए कोई नही ,हम बुढ़ापे में भी बच्चे हो जाते ।लेकिन फर्क यह है बच्चों को भरपूर प्यार दुलार मिलता और हमें दुत्कार क्योंकि काया बिगड़ जाती।”
मेरे आंसू निकल पड़े थे मैने खुद को कंट्रोल करके कहा अरे कोई नही बाबा ।मैं बात करता हूं ।मैने नाईदेव को बोला काट दे भाई तीन गुना ज्यादा रुपया दे दूंगा।काट दे और हां जब भी यह आये तो सारी सर्विस करना पैसे का मत सोचना।
नाईदेव को और क्या चाहिए था वो झट से राजी हो गया।
मैनें बाबा को सब बता दिया और कहा बाबा मैं पास में रहता हूं मेरा नंबर लेलो जब किसी चीज की जरूरत पढ़े तो बेहिचक बता देना।
और लोग भी यह सब देख रहे थे उन्होने भी बाबा की मदद का आश्वासन दिया।
वो बूढ़ी पथरीली आँखे और कंपकंपाते होंठों से धन्यवाद देना चाह रहे थे ।लेकिन मैं उनके पैर छूकर निकल गया दुकान से बाहर।क्योंकि मेरी आंखो में आंसुओ का सैलाब था जो मैं जाहिर नही होने देना चाहता था।
-अनुज सारस्वत की कलम से
(स्वरचित और मौलिक)