Moral stories in hindi : वो जो नाक के उपरी भाग में छोटा सा पहनते हैं वही ना?
हाँ, भैया वही…
ओह तो ऐसा बोलिए न की नाक का लौंग चाहिए।
अब क्या करें भैया? हमारे गाँव में तो नकचन ही बोला जाता है।
कोई बात नही… सोने की दिखाऊँ या चाँदी की?
सोने की दिखाओ भैया… और हाँ उस पर लाल रंग का नग वाला पत्थर भी होना चाहिए।
अरे ब्रजपाल ज़रा वो वाली पीस ले कर आना तो हमारी दुसरी दुकान से।
भैया आप बैठो लड़का गया है लाने, तब तक चाय भिजवाता हूँ… लखन से बोल कर सोनार अपने काम में व्यस्त हो गया।
लखन बग़ल में पड़े सोफ़े पर बैठ कर इंतज़ार करने लगा। थोड़ी ही देर में एक चाय की प्याली मिल गई। चाय की पहली चुस्की पीने के बाद लखन पुरानी यादों में खो गया:
प्राची मैडम साहब की इकलौती बहन थी, साहब से आठ साल छोटी। लेकिन उनकी शादी साहब से पहले हो गई थी। साहब के पिताजी तो पहले ही गुज़र गए थे इसलिए उनकी माँ ने ज़ोर देकर प्राची मैडम की शादी कराई थी। उनका कहना था की मेरा भी भरोसा नहीं है ज्यादा दिन का, दिल का ऑपरेशन होने के बाद भी डॉक्टर ने बहुत सारी चीज़ें मना कर रखी है इसलिए अपने सामने शादी कराना चाहती हूँ।
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प्राची मैडम की शादी के दो साल बाद बड़े साहब की भी शादी करा दी उसके बाद ज़्यादा दिन ज़िंदा नहीं रह पाई।
एक-एक कर दोनों छोटे भाइयों की शादी भी साहब ने करवा दी।
लखन बीस-बाइस साल की उम्र से ही साहब की गाड़ी चलाने लगा था, उनको फ़ैक्ट्री ले जाना, वापस ले आना, बच्चों को स्कूल से लाना और ले जाना।
प्राची मैडम को जब मायके आना होता तो लखन को ही गाड़ी से लाने भेजा जाता। वैसे मैडम और लखन के उम्र में सिर्फ़ दो साल का ही अंतर था, जब शादी नहीं हुई थी तब कभी-कभी लखन कॉलेज भी छोड़ने जाता था। गाड़ी में दोनों जी भर कर बातें करते।
एक दिन प्राची मैडम अपने पति के साथ कहिं जा रही थी की आगे से ट्रक ने टक्कर मार दी। काँच उड़कर मैडम के पती के गले में धँस गई, बड़े हॉस्पीटल ले जाने के बाद भी बच नहीं पाए।
प्राची मैडम का गर्भपात हो गया और डॉक्टर ने दूसरी मनहूस खबर भी दे दी की दोबारा कभी माँ नहीं बन पाएगी।
एक तो पती नहीं उपर से बच्चा भी नहीं तो ससुराल वालों ने मैडम को मायके विदा कर दिया। कुछ दिन तक सब ठीक चला लेकिन कहते हैं न की समय सब बदल देता है। हाँ अब लोग बदलने लगे थे, भाई लोग फ़ैक्ट्री चल जाते, बच्चे स्कूल और भाभीयाँ भी कभी इस सहेली से मिलने तो कभी उस सहेली से, कभी किट्टी पार्टी तो कभी कुछ।
प्राची पुरा दिन घर में अकेले रहती, रसोइये के साथ लगी रहती, भाईयों को खाना अपने देख रेख में बनवा कर भेजती। दोपहर का समय होता जब लखन खाना लेने आता तो थोड़ी बात हो जाती और मन हल्का हो जाता।
लखन शायद इस बात को समझ चूका था इसलिए रोज़ एक घंटा पहले आ जाता।
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प्राची के लिए लखन कोई नया तो था नहीं इसलिए बात करने में हिचकिचाहट नहीं होती।
लगभग पुरा साल निकलने वाला था, लखन को हर जगह प्राची का ही चेहरा नज़र आता। उसे देखने के बहाने ढुँढने लगा। प्राची भी इस बात को पुरी तरह समझ गई थी, एक बार समझाया भी था की “मैं विधवा हूँ” मेरे लिए ठिक नहीं है।
उस दिन लखन ने हिम्मत कर के बात बोल दी “क्या कोई शौंक से विधवा होती है?”
“वो दिन मनहूस था, तुम्हारे हाथ में कुछ नहीं था जिसको बदल पाओ”
“रही ग़लत बात, तो मैं वादा करता हूँ की कोई गलती नहीं करुँगा”
“तुम्हारा मायूस चेहरा देखा नहीं जाता हमसे”
ऐसा भी नहीं था की भाईयों को प्राची की चिंता नहीं थी, जिससे भी बात चलाते वो मना कर देता, एक तो उसको मनहूस मान लेते दुसरा की डॉक्टर का बोला हुआ बात “कभी माँ नहीं बन पाएगी” कोई मिलता भी तो उसके बड़े-बड़े बच्चे होते और पत्नी को छोड चूका हो या फिर पत्नी गुज़र गई हो… जवान प्राची और अधेड़ आदमी… नहीं… नहीं सही नहीं होगा।
भाईयों की चिंता बढ रही थी, एक दो मिले तो उन्होंने प्राची का हिस्सा माँग लिया। जो आदमी शादी से पहले ही संपत्ति का लालच ले कर बैठा हो उसके साथ बहन कैसे खुश रहेगी?
जब से प्राची लखन के दिल की बात जानी तब से वो भी ग़लत और सही के उधेड़बुन में लगी रहती है। न किसी को बता पा रही है न किसी से पुछ पा रही है… पती के फ़ोटो को हाथ में लेकर पलकें गीली करते रहती।
लखन आया तो फ़ोटो को हाथ से ले कर टेबल पर रख दिया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया “साहब, अब आप रहे नहीं”
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“मैडम का जीवन कैसे कटेगा?”
“अगर आप मुझे ये ज़िम्मेदारी निभाने की अनुमति दें तो मैं तैयार हूँ”
प्राची ने ज़ोर का थप्पड़ मारा लखन को, लखन हटा नहीं, प्राची को संभाल कर थाम लिया। आज पहली बार प्राची फूट-फूट कर रोई।
लखन तुमको मेरे भाई मार देंगे।
क्यों मार देंगे? मैं बड़े साहब से बात करुँगा, बात सुनने के बाद मार देंगे तो मरने को तैयार हूँ।
कुदरत को भी ये फ़ैसला मंज़ूर था, बाहर बिन मौसम के बारिश होने लगी, बारिश ख़त्म हुई तब दोनों को होश आया, दोनों एक हो चुके थे, प्राची कपड़े समेटते हुए फ़ोटो ठिक कर रही थी:
लखन जानते हो, आज उनसे इजाज़त ले ली थी मैंने। आज के बाद से वो मेरे पूज्य हैं और तुम्हारे साथ जीवन बिताना चाहती हूँ।
जब दोनों का मिलन हो रहा था तब घर के वफ़ादार नौकर ने सब देख लिया। वफ़ादारी भी दिखानी थी इसलिए बड़ी मालकिन के वापस आते ही सब सुना दिया। किचन के दरवाज़े के पिछे से छोटी ने भी सब सुन लिया और रात में पती को भी सब सुना दिया।
वैसे सुना तो बड़ी बहु ने भी दिया लेकिन पती को समझाया भी की प्राची को भगवान ने जीने का एक और मौक़ा दिया है तो एक बार प्राची से भी बात की जाए। अगर सब राज़ी खुशी से हो जाए तो बेचारी का फिर से घर बस जाएगा।
सुबह लखन पहुँचा तो प्राची के छोटे भाई ने मार-मार कर अधमरा कर दिया। हल्ला सुन बड़े भैया और भाभी निकले तो देखा लखन ज़मीन पर गीरा है और प्राची अपने घुटनों में सर छुपा कर रो रही है। छोटा भाई लात भी चला रहा है और गाली-गलौज भी कर रहा है।
बड़ी भाभी ने देवर को पकड़ कर अलग किया और बड़े भैया लखन को उठा कर अंदर ले आए:
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हाँ लखन, ऐसा क्यों किया तूने?
साहब, हम हिम्मत नहीं कर पाए लेकिन आपसे बात करने ही वाले थे।
तूने वर्षों का भरोसा तोड़ दिया।
नहीं साहब… प्राची जी को हम मान सम्मान से रखेंगे… अगर प्राची जी ने मना कर दिया तो आपका जुता और मेरा सर।
हाँ प्राची, तुम्हारा क्या कहना है?
भैया, एक बार ज़िंदगी ख़त्म हो चुकी है, दोबारा आपकी मर्ज़ी है।
छोटा भाई अभी भी ग़ुस्से में था, बड़े भाई ने समझाया:
छोटे, अगर छुटकी खुश रहेगी तो तुम भी आशिर्वाद दे दो।
थोड़ा समझाने के बाद छोटा भाई भी मान गया।
छोटे भाई ने नौकर को आवाज़ लगाई और मंदिर चलने की तैयारी करने को कहा। पत्नी और भाभी को भी कहा की छुटकी की शादी आज ही करानी है, आप लोग खुद भी सजीए और छुटकी को भी सजाईए, तब तक मैं होने वाले जीजाजी के लिए दुल्हे का कपड़ा ले कर आता हूँ।
शादी होने के बाद उसी शहर में ख़ाली पड़ा फ़्लैट लखन और प्राची को दे दिया गया। लखन ज़्यादा पढ़ा तो था नहीं इसलिए कंपनी में सिक्योरिटी का हेड बना दिया गया लेकिन लखन का मन नहीं माना। इसलिए बड़े साहब को आज भी गाड़ी से लाता ले जाता है और बाक़ी बचे समय में कंपनी में सिक्योरिटी के हेड का काम करता है।
लखन का ध्यान टूटा तो बड़बड़ाने लगा:
अरे बड़े भाई साहब को बताना पड़ेगा नहीं तो वो इंतज़ार करेंगे।
हैल्लो बड़े भैया।
हाँ लखन क्या हुआ?
आज नहीं आ पाऊँगा भैया, आज हमारी शादी की सालगिरह है।
हाँ पगले, तुम हो कहाँ? हमलोग तुम्हारे घर आए हैं और तुम ही नहीं हो?
वो… वो… भैया…
गिफ़्ट लेने गए हो? जल्दी आ जाओ।
उधर से सबके हँसने की आवाज़ आने लगी और इधर लखन शरमाने लगा।
मुकेश कुमार (अनजान लेखक)