नई जिंदगी – डाॅ उर्मिला सिन्हा

   शिल्पा ने दोपहर में गेहूं अपने हाथों से  साफ कर आटा पिसवाया  था  फिर रोटियां  किन-किन कैसे हो गई .सब्जी भी उसने बडी़ मन से बनाया था फिर उसमें मिर्चे कहां से आ गयी।शिल्पा ने जरा सा तोड़कर रोटी सब्जी चखा …मुंह का स्वाद बिगड़ गया।रोटी में कंकड़ और सब्जी कड़वी थू थू।

     आज फिर सभी खाने के मेंज से बिना खाये ही उठ गये।ससुर जी ने एक जलती निगाह उसपर डाली ।मेहमानों के समक्ष  उनकी कैसी किरकरी हो गई थी उनकी।वह शर्म से पानी पानी हो उठी।

     सौरभ का गुस्सा सातवें आसमान पर था,”एक सब्जी रोटी भी ढंग से पकाना नहीं आता।”

“नानी ,नानी जी”वह सीढियां फांदता उपरी मंजिल पर नानी के कमरे में जा पहुंचा।

  नानी शायद उसी का इंतजार कर रही थी,”क्या  हुआ मुन्ना क्यों शोर मचा रहा है?”

   “अब क्या बताऊं कम से कम घर में कोई मेहमान आवै तब खाना तुम्हीं बनाया करो!”

    “वह क्या खाक पकायेगी। ,रोटी में कंंकर और सब्जी में ढेर सारा मिर्च ।जल्दी चलो नहीं तो  पिताजी और मेहमान भूखे  पेट सो जायेंगे।”सौरभ नानी का हाथ पकड़ खींचता नीचे ले आया।नानी गर्व से सिर ऊंचा किये रसोई में पदार्पण की तो शिल्पा। फ्रिज से हरी सब्जी दुबारा बनाने के लिये निकाल रही थी।सौरभ ने तेजी से सब्जी की डलिया उससे छीनकर नानी को थमा दिया।”कोई जरुरत नहीं तुम्हें  रसोई में कदम रखने की ,पता नहीं क्या देखकर पिताजी तुम्हें उठा लाये थे।आज से भोजन नानी ही पकायेगी।फूहरों के लिये मेरे घर में कोई जगह नहीं।”

    “किंतु मैंने तो गेहूं को बडी़ मेहनत से साफ कर महरी से पिसवाई थी …सब्जी भी बडी़ चाव से बनाई थी…”शिल्पा बली के बकरे की तरह मिमियाई।

 “तब फिर यह रोटी सब्जी क्या भूत उलट-पुलट कर गया…”सौरभ की दहाड़ सुन वह निरुत्तर हो गई।वह कहे तो क्या और करे तो क्या?

     नानी ने चूल्हा चौका संभाल लिया।मेहमानों की टिप्पणियां ,बाबूजी की जलती निगाहें ,नानी जी की रहस्यमयी चुप्पी एवं सौरभ का विस्फोटक क्रोध…शिल्पा आंसू पोंछती अपने कमरे में चली गई।

   वह अपमान के ज्वाला में दग्ध हो रही थी।उसका दिल जानता था वह निर्दोष है लेकिन सारे सबूत उसके खिलाफ थे।

     नानी के अभ्यस्त हाथों ने आधे घंटे में ही भोजन तैयार कर लिया । बाबूजी मेहमानों के साथ खाने के मेज पर आ डटे।शिल्पा का हृदय कसक रहा था किंतु  कान उधर ही लगे हुये थे।सम्मिलित ठहाके …किसकी बहू कितना स्वादिष्ट भोजन पकाती है  किसकी बेटी ने लजीज व्यजनों के सहारे ही ससुराल वालों का दिल जीत लिया के किस्से शायद उसे ही सुनाकर कहे जा रहे थे।

    वह मन ही मन अनकिये के लिये अपमान का विष घूंट पी अपनेआप को बेकसूर साबित करने का तरकीब ढूंढने लगी।

   सादी रोटी खानेवाले बाबूजी नानी के हाथों तली पूरियां कैसे मजे ले-लेकर खा रहे हैं।इस समय डाॅक्टर का बताया हुआ सारा परहेज तिरोहित हो गया।उसका मन खट्टा हो गया।




     सभी खा-पीकर चले गये।शायद नानी भी…चारों ओर निस्तब्धता छाई हुई थी ।शिल्पा की आंखें भी लग गई थी थोडी़ देर के लिये।भूख भी जोरों की लगी हुई थी।सौरभ,सौरभ कहां है? कमरे की बत्ती जल रही थी।दरवाजे के पट खुले हुये थे ।वह पति का इंतजार करने लगी।इसी बीच घडी़ ने एक का घंटा बजाया    शिल्पा की तंद्रा भंग हुई।ओह!सौरभ नाराज होकर नानी के कमरे में ही सोने चला गया होगा।उसे किसी ने खाने के लिये आवाज नहीं दी ।पूछता कौन उसने इतनी बडी़ गलती जो की थी ,जिसकी सजा है भूखे पेट सोना ।उसे अपनी मां की याद आ गई अगर खाली पेट  कोई भी भाई-बहन सो जाते तब मां झट से कह उठती,”भूखे पेट सोने वाले के शरीर से चिरई बराबर मांस घट जाता है ।बिना मुंह जुठाये सोना मां अपशकुन मानती थी और बगैर खिलाये सोने नहीं देती थी.फलतः बिना कुछ खाये नींद नहीं आने से रही।और यहां वह खाये या नहीं इसकी परवाह किसी को भी नहीं !रुके हुये आंसू पुनः आंखों के कोरों  से बह निकले।

  रात्रि वाली घटना कोई नई बात नहीं थी.पिछले दिनों सौरभ को किसी पार्टी में जाना था ,शिल्पा ने बडे़ मन से पति के कपडे़ धोये इस्त्री कर हैंगर में लटका दिया ।शाम को जब सौरभ कपडे़ पहनने लगा तब उसपर दाग धब्बे देख बौखला गया.”यही पहनकर पार्टी में जाऊंगा,तुमसे एक काम भी ढंग से नहीं होता।”

 पति का चिल्लाना वाजिब था ,शिल्पा हैरत में …साफ सुथरे कपडे़ में दाग धब्बा कहां से लग गया।घर में कोई छोटा बच्चा भी नहीं है सिर्फ वह और नानी जी।

   उसदिन नाराज पति को उसने बडी़ मुश्किल से दुसरे कपडे़ पहनाकर बिदा किया था ।यह घटना भी एक पहेली बनकर रह गई ।आखिर यह हो क्या रहा है?कोई भूत-प्रेत का चक्कर तो नहीं।विज्ञान की छात्रा अपनी ही दलील पर हंस पडी़।

   एक के बाद एक कई छोटी बडी़ घटनाएं जेहन में कुलबुलाने लगी।बडी़ प्रेम से सौरभ के लिये खीर बनाती है ,फ्रिज में ठंढा होने के लिये रखती है …शाम को जब पति के समक्ष परोसती है उसमें मरा हुआ तिलचट्टा मिलता है ।सौरभ की भूख गायब हो जाती है और वह तिलमिलाकर रह जाती है।

    वह बडी़ जतन से  सज संवर कर पति के साथ पिक्चर के लिये निकलने वाली है उसी समय नानी जी के पेट में असह्य पीडा़ उठती है ।पति पत्नी जी जान से उनकी सेवा में लग जाते हैं …बाहर जाने का उत्साह फुर्र हो जाता है ।पिक्चर का समय निकल जाने पर धीरे धीरे नानी सामान्य  हो जाती हैं किंतु सौरभ को अपने पास से  उठने नहीं देती।

    पिछले रविवार को शिल्पा बाबूजी के कमरे की सफाई कर,उनकी चीजें करीने से संभाल मन ही मन बेहद प्रसन्न थी।  आज बाबूजी अवश्य ही उसे हृदय से आशीष देगें.

    वह रसोई में चाय की तैयारी कर रही थी .उसी समय  बाबूजी हाथ में टेबल घडी़ लिये चिल्ला पडे़,”मेरे कमरे की सफाई  किसने की !”

     उनके मनोभावों से अनजान शिल्पा उत्साहित हो बोल पडी़,”मैंने बाबूजी।”

   “इस घडी़ को तोड़ने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ,यह घडी़ सौरभ की मां की निशानी है “बाबूजी क्रोध से थर-थर कांप रहे थे।उनके विस्फोटक क्रोध के आगे शिल्पा का निर्दोष भोलापन फीका पड़ गया था।वह सिर झुकाये चुपचाप सुनती रही ।अपनी सफाई में एक शब्द भी नहीं कह पाई ।उसी वक्त सौरभ भी आफिस से आ पहुंचा और शिल्पा को खरी खोटी सुनाने लगा।

   शिल्पा स्तब्ध।उसने घडी़ को पोंछकर टेबल पर रख दिया था फिर वह टूटा कैसे?ऐसे मौकों पर नानी एकदम चुप्पी साध लेती या धीरे से कुछ टुसुक देती ।उसका भोला मन आहत हो जाता।

   शिल्पा का आत्मविश्वास डोलने लगा था।इस प्रकार की घटनाओं का  आपस में तारतम्य बैठाती वह गहरी सोच में डूब गई।अपनी कार्य कुशलता का विपरीत परिणाम देख वह कुंठित होने लगी।

   खैर,आज कुछ मेहमान आने वाले हैं।शिल्पा बेहद तत्परता से भोजन बनाने में जुटी है ।आज वह सारी शिकायतें दूर कर देगी ।आखिर उसने पाक-कला में विशिष्टता हासिल की है।आज वह बाबूजी और सौरभ का दिल जीतकर रहेगी।

  “कुछ  काम है बहू”नानी के मिश्री घुले बोल पर वह चौंक उठी।




“नहीं नानी जी मैं सब संभाल लूंगी ” उसने विश्वास पूर्वक कहा ।

  “बस भोजन तैयार है “वह खुश थी।

 “जाओ थोडी़ देर आराम कर लो ,थक गई होगी ।मैं भी जा रही हूं अपने कमरे में , जरुरत पडे़ तो बुला लेना”नानी कमर पर हाथ रखे चली गई।

 “जी ,नानी जी।”

  शिल्पा सभी खाद्य सामग्रियों को ढंक तोप …फ्रेश होने अपने कमरे में आ गई।

   आज वह बाप बेटे के चेहरे पर खुशी देखना चाहती थी।सभी व्यंजनों को चख कर देख लिया था क्योंकि ऐसे ही मौकों पर  अक्सर उसकी भद्द पीट जाती और वह हंसी की पात्रा बनकर रह जाती थी।

    उसने पति के पसंद की पीले फूलों वाली साडी़ पहनी।

” पीला रंग तुम्हारे चंपई रंग पर खूब खिलता है जैसे कनेर का फूल!”

    शिल्पा अपने लंबे बालों को जूडे़ का शक्ल दे ही रही थी कि रसोई से बरतन गिरने की झनझनाहट एवं नानी तथा सौरभ की गिलपिल सुन रसोई की ओर भागी ।आज फिर उसकी खैर नहीं ।रसोई के चौखट पर उसके पांव ठिठक गये,सब्जी का डोंगा जमीन पर औंधा पडा़ था।

   सौरभ आश्चर्यचकित …नानी को तैयार भोजन में अपने हाथों से भर-भर मुट्ठी नमक मिर्च मिलाते देख रहा था।

“नानी यह क्या कर रही हो”अचानक चोरी पकडे़ जाने से नानी का संतुलन बिगड़ गया ।नमक मिर्च पाऊडर का  डिब्बा दूर जा छिटका।

   “नानी यह नीचता तुम करती हो और  हम  जलील करते हैं शिल्पा को।आखिर क्या बिगाडा़ है हमने ,मेरी शिल्पा ने…”सौरभ दुखी हो बोला।

   ” इस घर में शिल्पा राज करे यह मुझे बर्दाश्त नहीं” राज खुलते ही नानी अपनी असलियत पर आ गयी थी।

     शोरगुल सुन बाबूजी  भी आ गये।उनकी अनुभवी आंखों ने पलभर में सारा माजरा समझ लिया।

 “शिल्पा और उसके घरवालों को हम क्या मुंह दिखायेंगे।इस मासूम ने तुम्हारा क्या बिगाडा़ है।”सौरभ  दुखी हो गया।

   नानी की करतूतें सुन बाबूजी ने ग्लानि से सिर झुका लिया …जिसे उन्होंने सडक से उठाकर पनाह दी उसी ने उनके साथ गद्दारी की ।इतना घिनौना खेल खेला।

   नानी एक निराश्रित बाल विधवा थी ।जिसे सौरभ के मां की आकस्मिक मृत्यु  के पश्चात …उनकी उजडी़ गृहस्थी और सौरभ के देखभाल के लिये किसी ने उनका नाम सुझाया।वह सौरभ की नानी की  हम उम्र थी अतः  सौरभ उन्हें नानी कहता था वे पूरे घर की नानी बन बैठी।घर गृहस्थी से उदासीन बाबूजी ने अपने इकलौते बेटे के साथ घर गृहस्थी भी नानी के हाथों सौंप निश्चिंत हो गये।बाप बेटे उनकी बहुत इज्जत करते थे।

     बाबूजी  शिल्पा से आंखें मिलाने  में भी लज्जा महसूस करने लगे।अतः बाप बेटे  ने उनकी इस कुकृत्य पर उन्हें घर से निकालने का फैसला किया। 

    नानी एक एककर अपनी गुनाहें कबूलती गई ।शिल्पा पर लगे मिथ्या आरोपों का बादल छंट चुका था।उसके निष्पाप व्यक्तित्व की धवल चांदनी छिटकी हुई थी ।उसने धैर्य से परिस्थितियों का सामना किया और अन्ततः विजयी रही।

    नानी बुझे मन से जाने की तैयारी कर रही थी।उनके मुरझाये मुख को देख पल भर के लिये शिल्पा को खुशी हुई ।अन्ततः उसे सताने की सजा कसूरवार को मिली।

  “नानी कहां जाईयेगा”शिल्पा पूछ बैठी।

“कहां जाऊंगी ,मुझ पापिन को कहां जगह मिलेगी?किसी कुएं तालाब में कूद पडूंगी या रेल पटरी पर”नानी सिसकने लगी।

  “अच्छा नानी अब तो आप जा ही रही हैं. सच-सच बताईयेगा…मैंने आपका क्या बिगाडा़ था कि आपने मेरे साथ ऐसा घिनौना खेल खेला।”




  नानी शिल्पा के सीधे सवाल  को टाल न सकी ,फफक पडी़”तुम्हारे आने के पहले इस घर पर मेरा एकछत्र राज था।सौरभ को मैंने बडे़ जतन से पाला था।मैं बाल विधवा ,दाने दाने को मुहताज …चारों ओर से दुत्कार ।सभी के लिये मैं बोझ थी।वहीं सौरभ नानी नानी करता मेरे आगे पीछे घुमता ।उसके भोलेपन और बाबूजी के  विशिष्ट व्यक्तित्व ने मुझे नवजीवन दिया ।तुम्हारे आने पर बाबूजी और सौरभ का तुम्हारे प्रति लगाव देख मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे अधिकारों पर डाका डाला हो।उनका मन तुमसे फिर जाये मेरा वर्चस्व पहले  की तरह इस घर में कायम रहे यही मेरी मंशा थी ।मैं अपने स्वार्थ में सही गलत भूल चुकी थी” नानी रोते रोते अपनी करतूते गिनाने लगी।

  “आपको गलती काअहसास है “

 “क्यों नहीं मैं भी कैसी मूर्ख थी ,जिस थाली में खाया उसी में छेद करने लगी ” नानी सिसकने लगी।

“नानी तुम अभी तक गई नहीं”सौरभ का तेज स्वर सुन नानी जाने लगी।

शिल्पा ने मन ही मन कुछ फैसला किया ”  नानी कहीं नही जायेगी माना कि उन्होंने मेरे साथ बहुत बुरा किया किंतु उन्हें अपनी गलती का अहसास है।दिलों के रिश्ते इतनी आसानी से नहीं टूटते मैं आपकी बहू बनकर आई हूं प्रतिद्वंदी नहीं।आपका इस घर में वही स्थान रहेगा जो था। मैं  गृहस्थी कार्य में कच्ची हूं मुझे आपके मार्गदर्शन की जरुरत है।” 

   बाबूजी और सौरभ  चुप।

 “बाबूजी एक आग्रह है यह बात घर से बाहर नहीं जाना चाहिये नहीं तो नानी जी जैसे बेसहारों   को कोई भी सहारा नहीं देगा।कोई किसी की मदद अपने घर की सुख शांति दांव पर लगाकर नहीं करेगा।”

  शिल्पा के उदार हृदय के समक्ष नानी , बाबूजी ,सौरभ नतमस्तक थे।उसने नानी जी और रिश्तों को नई जिंदगी जो दी थी।

सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा©®

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