नई शुरुआत – संगीता त्रिपाठी

“क्या लिख रही नीरा, इतनी रात में सामानों की फेहरिस्त बना रही हो,”राकेश जी ने पूछा!!

        “न…. सामानों की फेहरिस्त नहीं, अपने शौक और जरुरत की फेहरिस्त बना रही हूँ “…

     “मै समझा नहीं, तुम्हारी कौन से शौक और जरुरत है, सब तो पूरी होती है, वैसे भी अब सांध्य बेला पर क्या शौक……”।

       “आप समझ भी नहीं पायेंगे, जब तक आपकी समझदारी का वो हिस्सा नहीं खुलेगा “,… नीरा ने शांत स्वर में जवाब दिया।

  तुम्हारी बेसिर पैर की बातें, मेरी समझ के बाहर है, मै तो चला सोने, यदि तुम्हारी फेहरिस्त बन गई हो तो लाइट बंद कर दो “…।

      नीरा ने लाइट बंद कर दिया, और सोने का प्रयास करने लगी, पर आँखों में नींद कहाँ, शाम मॉल में मिली  कॉलेज की सहेली ने उसको पहचाना ही नहीं, जब नीरा ने अपना परिचय दिया तो, अरु बोल पड़ी -आप नीरा तो हो ही नहीं सकती, वो तो बेहद स्मार्ट और महत्वकांक्षी  लड़की थी, आप कहीं से भी नीरा नहीं लग रही, मै जिस नीरा को जानती हूँ, वो आप की उम्र की नहीं है,”!!

   तभी वहां उनकी एक और सहपाठी ममता आ गई, अरु उसके साथ ही मॉल आई थी, ममता आइसक्रीम लाने चली गई थी और अरु वहीं चेयर पर बैठी थी, वहाँ से गुजरते हुये नीरा को लगा, ये चेहरा पहचाना सा है, अरे ये तो अरु है, समय की कोई छाप अरु के चेहरे पर नहीं थी, इक्के दुक्के सफ़ेद बाल के सिवा…

      “अरे अरु तुमने नीरा को नहीं पहचाना, हम तीनो की तिगड़ी कितनी फेमस थी कॉलेज में “…।

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      “पर नीरा तो बहुत स्मार्ट और शौकीन थीं, ये खादी की साड़ी और मोटा शरीर, बीमार और थका चेहरा, कहीं से नीरा के साथ मैच नहीं करता, नीरा फिटनेस की कितनी दीवानी थी “.।

       “हाँ इस नीरा में, वो पुरानी नीरा खो गई है, इसलिये तुझे पहचानने में दिक्कत हो रही, हम जब किसी व्यक्तित्व को विपरीत व्यक्तित्व में देखते है, तो स्वीकार नहीं कर पाते है, पर अरु, ये वहीं नीरा है, आ नीरा तू भी बैठ, कुछ पुरानी यादें ताज़ा की जायें..”,..।

   

“नीरा तू इतनी बदल सकती है, मै सोच भी नहीं सकती हूँ,पूरी आंटी लग रही है, फिटनेस की दीवानी इतनी बेडौल  कैसे हो सकती है “,अरु हँस कर बोली।

         

   नीरा शर्मिंदगी से मरी जा रही थी,क्या सच में उसका व्यक्तित्व इतना बदल गया…।ममता के आग्रह पर बैठ तो गई, पर अरु की बात उसको दिल में जा लगी।अरु और ममता दोनों ही चुस्त -दुरुस्त लग रही थी.। अपनी उम्र से पांच -छः साल छोटी दिख रही थी।वहीँ नीरा अपनी उम्र से पांच -सात साल बड़ी लग रही थी..।

  घर आ सामान, बाहर पटक, कमरे में आ, पहले शीशे में अपने को देखा, उफ़्फ़, ये मोटी, बेडौल, सफ़ेद बालों वाली, कौन सी नीरा है…!!खुरदुरे हाथों में नीली नसों ने अपना जाल फैला, उसकी उम्र को बढ़ा दी थी। कहाँ गई वो पचीस साल पुरानी नीरा…। रात कुछ निर्णय ले, नीरा सो गई।

        सुबह हमेशा की तरह जल्दी उठ कर नीरा ने चाय नहीं बनाई, फ्रेश हो पहले थोड़ी कसरत और योगा किया. तब तक बेटा -बहू भी उठ गये थे, पति देव चाय की गुहार कर रहे थे, बच्चे मम्मी मोनू को सम्भालो, हमें थोड़ा और सोना है.। नीरा लपक कर मोनू को लेने जा रही थी, पर अचानक कुछ कौध गया… बढे हाथ पीछे कर लिये, हँलाकि मोनू उसकी कमजोरी है, पर आज तो वो अपनी हर कमजोरी पर विजय पाने के लिये कटिबद्ध है..।

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   “सुनो, जी, बाहर से दूध लाने की जिम्मेदारी आज से तुम्हारी है…,पाखी बहू आज चाय तुम बना लो और अंकित मोनू को तुम थोड़ी देर संभाल लो, मेरा योगा खत्म होने वाला है, फिर मै संभाल लुंगी..। बच्चों के आश्चर्य से भरे चेहरे को अनदेखा कर, नीरा, अपने योगा को पूरा करने में लग गई..। पति देव भी हैरान अचानक उनकी  कर्मठ पत्नी ने नया रुख क्यों अख्तियार कर लिया….। ” नारी को आज तक कौन समझ पाया, “कह  सर हिलाते चले गये.।।पूरे दिन नीरा ने  अपने को भी पूरा समय देते हुये, सबको काम बाँट कर, एक नया दिनचर्या  बना ली…, कुछ समय अपने शौक को देने लगी, शाम चाय के साथ गजल सुनती, सुबह उठ भजन लगा देती….।धीरे -धीरे, बच्चों को भी कानफोड़ू संगीत की जगह भजन और गजल का स्वाद लग गया..।

     दो महीने में नीरा ने अपना वजन कम कर लिया, वजन कम होते ही, बिमारियां भी खत्म हो गई….। योगा से नीरा का तन -मन प्रफुल्लित रहने लगा। चिड़चिड़ी नीरा, खुश रहने लगी। एक दिन पाखी बहू ने बोला -माँ, मान गये, आपकी जिजविषा को, आपने अपने को तो बदला, मुझे भी सीख दे रही, किस तरह मै बच्चे के साथ भी, अपने लिये समय निकालू। अपने व्यक्तित्व को संवारने का सभी को हक़ है…।

   एक दिन पतिदेव बोले -“नीरा तुम्हारे सामने, मै बूढा दिखने लगा हूँ “,…।

    “अपने को संवारने के लिये खुद, खड़ा होना पड़ता है “..।

     “सही कह रही हो, कल से मै भी तुम्हारे साथ योगा करूँगा “पतिदेव की सराहना वाले लफ्ज, नीरा को ठंडक दे गये…।



       “मर्दो को कोई कहाँ समझ पाया…”, नीरा ने पतिदेव की नक़ल उतारी..।

         पांच महीने बाद अरु फिर नीरा के शहर आई, ममता, नीरा और अरु ने मिलने का प्लान किया…, उसी मॉल में मिलने पहुंचे…।

  “नीरा नहीं आई ममता,”अरु ने  पूछा…।

   “ये नीरा है “, ममता के कहते ही, अरु चौक गई,”ओह नो.. ये नीरा वो नीरा नहीं है,, ये तो कॉलेज टाइम वाली है, पिछली बार वाली, वो बेडौल दिखने वाली नीरा कहाँ है…!!

तीनों सहेलियां खिलखिला पड़ी…।

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   “कितने रूप बदलती हो नीरा, पर बहुत अच्छा लग रहा तुम्हे देख कर, वैसे राज की बात बताऊ, मैंने जानबूझ कर ना पहचानने का नाटक किया था पिछली बार….. ममता ने तुम्हारे बारे में बताया था।की तुम अक्सर बीमार रहती हो….।तुम्हे तुम्हारे, मै, से रूबरू कराने के लिये मैंने ऐसा किया था.। हम औरतें सबके स्वास्थ्य की चिंता करती है, बस अपनी नहीं करती,जबकि अपना स्वास्थ्य कितना जरुरी है, जब हम स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगे तो परिवार को भी स्वस्थ और प्रसन्न रख पायेंगे…।सारे कामों को अपने ऊपर लाद लेना, कोई बुद्धिमता नहीं है…,!!

      

       आप क्या कहती हो सखीयाँ… क्या अरु ने ठीक कहा…। अपनी राय जरूर दें…।

                  —-संगीता त्रिपाठी

    

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