सुष्मिता को अपनी जिंदगी से निराशा होने लगी थी वह हमेशा अपनी बहू से बोलती मेरी जिंदगी तो “ढलती सांझ” है उसकी बहू प्रियांशी दिल की बहुत अच्छी थी अभी 2 साल पहले ही सुष्मिता और आकाश ने अपने बेटे समीर की शादी की थी बेटे की शादी के 1 साल बाद ही उनकी एक बेटी दिव्यांशी हुई, सुष्मिता और आकाश अपनी पोती को बहुत चाहते थे ,बेटा इंजीनियर था पर बहुत बिजी रहता था, लेकिन बहू का नेचर बहुत अच्छा था शायद उसके अच्छे परिवार के संस्कार ही थे।
प्रियांशी एक सरकारी स्कूल में जॉब करती थी हमेशा बच्चों को अच्छी शिक्षा देती अच्छी-अच्छी प्रेरणादायक शिक्षाप्रद कहानी सुनाती थी इसीलिए उसे मां का ख्याल रखना भी अच्छा लगता था ,और उसके स्कूल का टाइम भी कम था छोटे बच्चों की क्लास होने के कारण उसकी छुट्टी जल्दी हो जाती वह घर जल्दी ही आ जाती थी।
सुष्मिता भी अधिकारी पोस्ट पर एक सरकारी ऑफिस में नौकरी करती थी उसके पति आकाश एक बैंक में मैनेजर थे उनके पास सरकारी बंगला कार सब था घर में कोई कमी नहीं थी। सुष्मिता और आकाश दोनों ने ही अपने बेटे को बहुत प्यार से पाला था अच्छी शिक्षा और संस्कार दिए, देखते-देखते समीर बड़ा हो गया और इंजीनियरिंग में आ गया उसकी नौकरी भी जल्दी लग गई क्योंकि वह पढ़ाई में बहुत अच्छा था।
सुष्मिता के पति आकाश सुष्मिता से 3 साल पहले ही रिटायर्ड हो गए थे, और एक अच्छी सोसाइटी में अपना एक बड़ा फ्लैट भी खरीद लिया था। वह अपने परिवार सहित उसमें जाकर रहने लगे थे। अभी सुष्मिता को रिटायर्ड होने में 3 साल का टाइम था, इसलिए उन दोनों ने मिलकर अपने बेटे की शादी भी करदी, क्योंकि बेटा तो जॉब करने लगा था
प्रियांशी उन्हें बहुत पसंद आई सुंदर ,और संस्कारी भी लगी। सुष्मिता के रिटायर्ड मेंट के 1 साल पहले ही पति की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई और सुष्मिता को लगने लगा अब तो सारी दुनिया बेकार है, सुष्मिता एक्टिव थी। पेंटिंग का, डांस करने का, उसे बहुत शौक था खूब सारी कोम्पटीशन में भाग भी लेती थी, लेकिन कहीं भी जाना होता था तो अपने पति के साथ ही जाती थी इसलिए उनकी जोड़ी प्रसिद्ध थी दोनों ही सुंदर थे।
शाम को जब सुष्मिता ऑफिस से आती और आकाश अपने बैंक से आते दोनों चाय पीते अपने बच्चे के साथ टाइम बिताते और अपने बच्चे को लेकर कहीं ना कहीं घूमने चल देते थे, आसपास के लोग देखते रहते थे, सभी बोलते थे कितनी अच्छी जोड़ी है, दोनों साथ-साथ घूमते रहते हैं पर शायद इस जोड़ी को नजर लग गई,
सुष्मिता के पति उसका साथ छोड़ कर चले गए ! अब तो सुष्मिता को शाम होते-होते अपनी जिंदगी की “सांझ ढलती” हुई दिखाई देने लगी, रोज शाम होते होते उसे अपने पति की याद आने लगती, और वह उदास हो जाती! अपने पति के संग बिताए समय की यादों में खो जाती, हालांकि उसकी पोती दिव्यांशी के कारण उसका थोड़ा मन लगता था लेकिन पोति बहुत छोटी थी।
अब रिटायर्डमेंट का उसका एक ही साल रह गया था, सोचती थी रिटायर्डमेंट के बाद कैसे समय बीतेगा! हालांकि उसके ऑफिस वाले बहुत अच्छे थे, उसका बहुत ध्यान रखते थे, उसके सरकारी काम में भी हाथ वटाते,
और उसे ऑफिस में बिल्कुल परेशानी नहीं होने देते थे, उसकी सहेलियां और दोस्त सभी उसके साथ अच्छी बातें करते ताकि बह खुश रहे, लेकिन घर आते ही सुष्मिता को अकेलापन लगता था क्योंकि बहू बेटे अपने-अपने कामों में बिजी रहते थे ,बेटा तो बहुत ज्यादा बिजी था।
देखते देखते सुष्मिता के रिटायर्डमेंट का टाइम भी आ गया पता नहीं एक साल कब निकल गया सुष्मिता ने किसी तरह से अपने मन को अपने बहु बेटे और पोती के साथ लगाया पर उसका मन इतना नहीं लगता था क्योंकि हमेशा वह बिजी रहती शाम होते होते अपने पति की याद आने लगती , उनके संग बिताए समय का एक-एक पल की यादें ताजा हो जाती थीं।
सुष्मिता मां की यह हालत ; बहु प्रियांशी से देखी नहीं जाती, उसने बोला “मां आप शाम को यहां सोसाइटी का गार्डन है उसमें घूमने जाया करो देखो आपको बहुत लोग मिलेंगे वहां कितना अच्छा लगेगा”एक दिन——सुष्मिता ने सोचा प्रियांशी सही कह रही है और वह उसी दिन से शाम होते ही अपने सोसाइटी के गार्डन में घूमने जाने लगी।
दूर-दूर तक गार्डन में काफी महिला पुरुष कहीं योग करते दिखते, कहीं घूमते दिखते, कहीं एक्सरसाइज करते दिखते, यह देखकर उसे लगता तो अच्छा पर फिर भी वह उदास ही रहती कुछ महिलाओं से उसकी जान पहचान हो गई। कभी-कभी वह उनके पास बैठकर बातें भी करती।
शाम को घूमते घूमते सब महिला पुरुष अपने-अपने घर जाने लगते, और वह उस शाम में अपने पति को ढूंढती “ढलती सांझ”में वह अपनी यादों की पोटली को खोल कर अपने पति के संग बिताए पलों को याद करते-करते अपने ख्यालों में खो जाती और बेंच पर बैठी रह जाती! रोज ही वह ऐसे ही बैठी रहती थी।
कुछ दिनों से दूर एक बेंच पर बैठे कोई सज्जन पुरुष जो शायद उससे उम्र में कुछ बड़े थे उसे ऐसा उदास देखते और उसे ख्यालों में खोया हुआ डूबा हुआ देखते हैं वह सोचते हैं कि यह महिला रोज आती है कुछ महिलाओं से बात करती है फिर चुपचाप बैंच पर बैठकर अपने ख्यालों में खो जाती है।
एक दिन अचानक वही सज्जन पुरुष उसकी बेंच के पास हिम्मत करके आकर बैठ जाते हैं सुष्मिता थोड़ी चौंक जाती है वह आश्चर्य ——–आश्चर्य यह कैसे हो सकता है? उन सज्जन पुरुष की कद- काठी और कुछ शक्ल की झलक अपने पति की तरह दिखाई देती है ,लेकिन फिर अपने ऊपर काबू कर वह कुछ नहीं बोलती, वह बोलते हैं आप यहीं रहती हैं क्या? बुरा ना माने तो मैं आपसे कुछ बात कर सकता हूं! सुष्मिता मूक परमीशन दे देती है, और उनको बताती है
मैं यहीं इसी फ्लैट में चौथी मंजिल पर रहती हूं तब वह सज्जन पुरुष बताते हैं कि मेरा नाम अभिनव है और मैं बैंक मैनेजर था चार साल पहले ही रिटायर्ड हो गया हूं, पर रिटायर्डमेंट के बाद ही मेरी पत्नी एक एक्सीडेंट में मर गई और मैं अब अपने बेटे बहू के पास रहता हूं पर बहुत अकेलापन लगता है ,सुष्मिता कुछ सोचती है, फिर अपनी कहानी भी उन्हें सुना देती है कि वह भी बहुत अकेली है उसके पति का हार्ट अटैक हुआ और वह नहीं रहे, उसे भी बहुत अकेलापन लगता है।
धीरे-धीरे सुष्मिता और अभिनव की दोस्ती होने लगती है वे दोनों आपस में बातें करते हैं और एक दिन अभिनव सुष्मिता से बोलता है क्या आपको मुझसे बात करना मेरे पास बैठना अच्छा लगता है?—– सुष्मिता चुप रह जाती है! यह कैसा सवाल है! हां मुझे आपके पास बैठकर बात करना अच्छा लगता है कुछ भूली बिसरी यादें आप भी सुनाते हैं, मैं भी सुनाती हूं ,अच्छा—— क्या अपन दोनों दोस्त बनकर रह सकते हैं अभिनव बोलता है—— सुष्मिता बोलती है——- हां यह सही बात है मैं भी केवल एक अच्छा दोस्त ढूंढ रही हूं क्योंकि इस उम्र में शादी करने का मन तो होता नहीं अभिनव कहते हैं अगर तुम चाहो तो मैं शादी भी कर सकता हूं अरे——- मजाक मत करिए—— अब इस जिंदगी की “ढलती सांझ” में कौन शादी करेगा हां एक अच्छे दोस्त के साथ जिंदगी बिताई जा सकती है।
बस इतनी ही बात होती है, कि—- सुष्मिता को लगता है! कि अब बहुत शाम हो गई मैं अपने घर जाऊं और वह अपने मन में खुशी लेकर घर पहुंचती है फिर शाम को बहुत खुश होकर अपनी बहू से कहती है चलो आज तो कुछ पकोड़े बनाओ ,अपन मिलकर खाएंगे और अपनी पोती से भी खूब हंस हंस के बात करती है यह देखकर! उसकी बहु प्रियांशी सोचती है आज क्या चमत्कार हुआ? जो मां खुश दिख रही हैं—- उसे मन में खुशी तो होती है पर वह हिम्मत नहीं कर पाती मां से पूछने की,
प्रियांशी चाय नाश्ता लाती है और मां से कहती है मां आप ऐसे ही खुश रहा करो और अगर चाहो तो अपना कोई दोस्त भी बनाने की कोशिश करो, यह सुनकर मां सोचती है प्रियांशी बहुत समझदार है उसे ऐसा क्यों लगा! प्रियांशी कहती है मां आप खुशियां ढूंडो अपने अधूरे सपनों को साकार करो,
हम लोग भी तो लेडिस, जेंट्स सब लोग मिलकर ऑफिस जाते हैं मिलजुल के काम करते हैं आप भी तो अपने ऑफिस में सब लेडिस जेंट्स मिलकर काम करते थे तो फिर दोस्त क्यों नहीं बना सकतीं, मां को बहू की बात सुनकर जैसे एक सहारा सा मिल जाता है और सुष्मिता की जिंदगी में एक नई सोच की “नई रोशनी” की चमक आ जाती है।
नाश्ता करते-करते बहू सुष्मिता मां से बोलती है अगर आपको कोई पसंद हो तो मुझे बताओ मैं आपका पूरा साथ दूंगी आप शादी करना चाहो तो—– मां यह सुनकर सक- पका जाती हैं, बोलती हैं नहीं बेटी मुझे अपने घर में अच्छा लगता है हां— पर एक दोस्त की तरह कोई मुझसे बातें करे, और वह भी अपनी और मैं भी अपनी बातें उसे सुनाऊं, उसके संग घूमने जाऊं, इतना मन तो मेरा करता है, अच्छा—– तो ठीक है—
प्रियांशी बोलती है मां—– आप अपने लिए एक दोस्त ढूंढो !और मैं सीरियसली कह रही हूं, मां थोड़ा सोचती हैं फिर कहती हैं, बेटा तूने मेरे “मन की बात छीन ली” नीचे जब मैं पार्क में जाती थी बहुत दिनों तक तो मैं उदास बैठी रहती थी, एक दिन एक सज्जन पुरुष मेरे पास बैठ गए और शायद वह अपने घर के नीचे वाले फ्लैट में रहते हैं उन्होंने बताया मुझे। उनकी शक्ल और कद काठी काफी कुछ मेरे पति आकाश से मिलती-जुलती है मुझे उनकी बातों में बहुत अपनापन लगा।
अच्छा मां मैं भी उनसे मिलुंगी अगर वह अच्छे इंसान है उनका परिवार अच्छा है तो आप उनसे जरूर दोस्ती करिए हम और समीर आपका साथ देंगे बस आप खुश रहा करें, आपको पूरा हक है अपनी जिंदगी जीने का, अपनी जिंदगी की खुशियां ढूंढें और उसमें रोशनी लाने की कोशिश करें जिंदगी को एक “नई रोशनी” दें इतना सुनकर मां के आंसू आ जाते हैं, और वह इतने दिनों की उदासी को अपने आंसुओं के द्वारा निकाल देती हैं और फूट-फूट कर रोने लगती हैं बहू उनको सांत्वना देती है और बोलती है मां आप उनसे बात करें और एक दिन अपन उन्हें अपने घर पर भी नाश्ते के लिए बुलाएंगे।
जब शाम को समीर ऑफिस से आता है तो प्रियांशी अपने पति को सब बताती है कि मैंने मां की खुशी ढूंढी है समीर भी उदास रहता था कि मेरी मां उदास कैसे रहने लगीं इतनी अच्छी हंसती रहती थीं उसने कहा अरे वह कैसे! प्रियांशी सारी कहानी समीर को बताती है। समीर कहता है अरे वाह यह तो बहुत अच्छा है अपन लोग भी तो दोस्ती करते हैं
मां अगर चाहें तो शादी भी कर सकती हैं उनका जीवनसाथी मिल जाएगा नहीं- नहीं मां—इस फैसले से तैयार नहीं हैं वह कह रही हैं मुझे तो अपने घर ही अच्छा लगता है बस एक ऐसा दोस्त चाहिए जो मेरे संग हर जगह जाए आए मुझसे अच्छी बातें करे चलो जैसा मन चाहे मां का—— दोनों खुश हो जाते हैं, और मां के लिए प्लानिंग करते हैं कि इनकी दोस्ती और पक्की करवाएंगे अपन दोनों उन सज्जन पुरुष अभिनव जी के बच्चों से भी मिलेंगे और मां की जिंदगी में फिर से एक “नई रोशनी” लाने की कोशिश करेंगे जिससे मां कभी यह ना कहें कि मेरी जिंदगी तो “ढलती सांझ” है।
सुनीता माथुर
मौलिक अप्रकाशित रचना
पुणे महाराष्ट्र