नई चलन’ – पूनम वर्मा

आज रंजना मैडम स्कूल नहीं आई थीं । कोई मैसेज भी नहीं किया । रश्मि मैडम की घरेलू नज़दीकी है इसलिए  वह ज़्यादा ही परेशान थीं । उन्होंने छुट्टी के समय कॉल किया पर किसी ने रिसीव नहीं किया । अब उन्हें चिंता होने लगी । शाम को रंजना मैडम का फोन आया कि सुबह ही उनके बेटे का स्कूल जाते समय एक्सीडेंट हो गया इसलिए उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा । रश्मि मैडम अस्पताल का पता पूछकर अपने पति के साथ अस्पताल पहुँचीं और हालचाल लिया । उसके एक पैर में फ्रैक्चर था इसलिए डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए कहा था । रंजना मैडम बहुत दुखी और परेशान लग रही थीं । कुछ रिश्तेदार  उन्हें हिम्मत दिला रहे थे । घर आकर रश्मि मैडम ने अपने पति से विमर्श किया, “आज रंजना मैडम को पैसे की सख्त ज़रूरत होगी । हमें उनकी सहायता करनी चाहिए ।”

पतिदेव ने सहमत होते हुए कहा, “हाँ ! वह सिंगल पैरेंट हैं । कमाई भी ज़्यादा नहीं है और अस्पताल के खर्चे तो बहुत होंगे ।”

“तो कल उन्हें पाँच हज़ार रुपये एक लिफाफे में डालकर दे देती हूँ । दोस्ती के नाते इतना तो कर ही सकती हूँ ।”  रश्मि मैडम ने अपनी तरफ से सहायता के लिए सुझाव दिया । पति को यह सुझाव पसन्द आया पर वह सोचने लगे इतने से उनकी क्या सहायता हो पाएगी भला ?

अगले दिन सुबह रश्मि मैडम ने स्कूल में सभी शिक्षिकाओं को रंजना मैडम की परिस्थिति से अवगत कराया । सभी जानकर चिंतित हो गईं । सभी उनसे मिलकर उनका दुख बाँटना चाहती थीं । उनमें से दस-बारह शिक्षिकाओं का आज शाम को अस्पताल जाने का प्रोग्राम बना । तभी तूलिका मैडम ने कहा,



“अरे ! कुछ फल या हॉर्लिक्स वगैरह भी तो लेकर जाना होगा तो हमलोग आपस में डिसाइड कर लें किसको क्या ले जाना है ?”

तभी रश्मि मैडम को सहायता करने वाली बात का ध्यान आया और उन्होंने उन्हें फल या हॉर्लिक्स के बदले लिफाफे में नकद देने का सुझाव दिया ।

रजनी मैडम तपाक-से बोल पड़ीं- “हम शादी में थोड़े ही जा रहे हैं कि शगुन का लिफ़ाफ़ा लेकर जाएंगे ! बेचारी रंजना मैडम भी क्या सोचेंगी कि मेरा बेटा अस्पताल में पड़ा है और मेरी सहेलियाँ शगुन का लिफ़ाफ़ा लेकर आई हैं !”

“वो तो ठीक है रजनी मैडम ! पर जरा सोचिए, वास्तव में शगुन के लिफ़ाफ़े की ज़रूरत कहाँ होती है ? शादी एवं अन्य उत्सव तो पूर्वनिर्धारित होते हैं । इसमें होने वाले खर्च का अनुमान पहले से रहता है इसलिए उसकी व्यवस्था हम पहले ही कर लेते हैं । अस्पताल की ज़रूरत किसको, कब पड़ जाएगी ये कहाँ पता रहता है ?” रश्मि मैडम ने समझाने की कोशिश की ।

सभी शिक्षिकाओं को रश्मि मैडम का सुझाव पसन्द आया ।

जब सभी शिक्षिकाएँ  अस्पताल में रंजना मैडम को लिफ़ाफ़े दे रही थीं तब रंजना मैडम की कृतज्ञता उनकी आँखों से निकलकर गालों पर ढलक पड़े । आस-पास खड़े उनके रिश्तेदार इस नई चलन के लिए शिक्षिकाओं की तारीफ करने लगे और वे भी आगे बढ़कर सहभागी बने ।

-पूनम वर्मा

राँची, झारखण्ड ।

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