नहीं पता था, तेरे भी दो चेहरे है – अर्चना कोहली “अर्चि”

“अम्मा। ओ अम्मा”। ऑफिस से आते ही चाय पीने के बाद सुधीर चिल्लाया।

क्या बात है मुन्ना। क्यों चिल्ला रहा है”।

“अम्मा, कितनी बार कहा है, मुझे मुन्ना न कहा करो। अब मैं बहुत बड़ा ऑफिसर हूँ। कोई सुनेगा तो मज़ाक बन जाएगा”।

“नाराज़ न हो बेटा। भूल जाती हूँ। उम्र का तकाजा है। अब बता क्या हुआ? क्यों मुझे बुला रहा था। कोई लाटरी निकल आई क्या”!

“लाटरी ही समझ लो। मेरे लिए नहीं अपने लिए। कल हम हरिद्वार जा रहे हैं। सुबह कार से निकलेंगे। बहुत दिनों से आपका मन था, किसी धार्मिक जगह की यात्रा करने का। इस समय ऑफिस में ज्यादा काम नहीं है तो सोचा, तुझे घुमा लाऊँ। समय कम है। तैयारी कर लेना”।

अरे वाह! बड़ा मज़ा आएगा। कितने समय बाद पूरा परिवार साथ होगा”।

“अरे नहीं अम्मा। हम दोनों जा रहे हैं। राहुल और श्रेया को इस तरह की जगहों में जाना पसंद नहीं। फिर राहुल की परीक्षा भी आनेवाली है”।

“अच्छा बेटा। जैसी उनकी इच्छा। तेरे जैसा बेटा भगवान सबको दे। मन में एक इच्छा थी, धार्मिक स्थलों की यात्रा करने की। पता नहीं कब ऊपर से बुलावा आ जाए, पर पहले घर की जिम्मेदारी और पैसे की तंगी,  फिर तेरे बापू के बीच राह में हाथ छोड़  देने से लगता था, इच्छा अधूरी ही रह जाएगी”।

“अम्मा। अब  छोड़ो भी।  आप तो जाने की तैयारी करो”।

इस कहानी को भी पढ़ें:

जब पराए हो जाए अपने-Mukesh Kumar

“अच्छा बेटा। जुग-जुग जियो बेटा”।

“इस रामलाल के कारण काम आसान हो गया। नहीं तो•••”।

“नहीं तो क्या बेटा!  कौन-सा काम आसान हो गया”। जाते-जाते शिखा रुक गई।

“अम्मा। कुछ नहीं। (घबराते हुए)।

“बेटा। तू तो ऐसे घबरा रहा है, मानो कोई शेर देख लिया हो”। शिखा ने कहा।

कुछ नहीं अम्मा। बस अचानक से पूछकर आपने डरा दिया। ऑफिस के किसी काम की बात है”।

“अच्छा बेटा। एक बात पूछनी है। अचानक याद आई”।

“क्या अम्मा”।

“कितने दिन के लिए जाना है, यही पूछना था। ताकि उसी हिसाब से कपड़े रख लूँ”।

“जितने मर्जी हो रख लो। अपनी कार में ही जा रहे हैं”।

“ठीक है बेटा। जाती हूँ”।

रात को•••

“बहुत प्यास लगी है। आज कमरे में बहू पानी रखना भूल गई। मैं जाकर ले आती हूँ। अरे!  ये बेटे के कमरे से इतनी रात को बातों की आवाजें आ रही है। वैसे किसी की बातें सुनना अच्छी बात नहीं है, पर आज इतनी रात को बात कर रहे हैं। ज़रूर कोई टेंशन की बात है, जो मुझे नहीं बतलाना चाहते। वैसे आज बिटवा कुछ घबराया हुआ भी था”। सुनूं तो•••”!

इस कहानी को भी पढ़ें:

शिक्षा और संस्कार-Mukesh Kumar




“सुनो जी। अम्मा को शक तो नहीं हुआ”। श्रेया ने पूछा।

“बिलकुल भी नहीं। मैंने कच्ची गोलियाँ थोड़े ही खेली हैं। कल से हम आज़ाद। अम्मा को घुमा-फिराकर बहाने से वृद्धाश्रम छोड़ दूँगा”।

“आप ने तो कमाल कर दिया। जायदाद तो पहले ही अपने नाम करवा ली”।

“श्रेया। यह सब तेरे कारण ही है”।

“थोड़ा धीरे बोलें। अम्मा न उठ जाए। वैसे भी उनके कान बड़े तेज़ हैं। वैसे भी कहते हैं,  दीवारों के  कान होते हैं”।

“ठीक कह रही हो। वैसे भी सुबह जल्दी उठना है”।

“इतना बड़ा धोखा। बेटा तू तो बड़ा दोगला है। नहीं मालूम था, बहू की तरह तेरे भी दो चेहरे हैं”।

“मैं तो नहीं जाऊँगी। ये मेरा घर है। देखती हूँ, कौन मुझे निकालेगा! सरकार ने हम बुजर्गों के लिए भी कुछ कानून बनाए हैं”।

अगले दिन••••

“अरे! अम्मा। अभी तक तैयार नहीं हुई। क्या बात है। तबियत तो ठीक है न”।

“बेटा।  बड़ी जल्दी है मुझे वृद्धाश्रम भेजने की”।

“क्या कह रही हैं माँजी । दिमाग में किसी ने कुछ भर दिया है क्या! लगता है, रात को टीवी पर एकता कपूर का कोई सीरियल देख लिया है”। श्रेया ने कहा।

“अम्मा। अब चलो भी। सारी तैयारी हो गई है। फिर पता नहीं कब छुट्टी मिले।  देखो तो कितना दिन चढ़ आया है। तुम्हारी खुशी के लिए हरिद्वार जा रहा हूँ, और तुम उलटी-उलटी बातें कर रही हो”।

इस कहानी को भी पढ़ें:

बंद दरवाजा-मुकेश पटेल

“मेरी खुशी के लिए या अपनी खुशी के लिए मुझे वृद्धाश्रम छोड़ने जा रहा है। क्यों बहू सही कह रही हूँ न! क्या कमी रखी है प्यार में”।

“कोई भी सास बहू को अच्छा मान ही नहीं सकती”। श्रेया ने तल्खी से कहा।

“रात को तुम बातें कर रहे थे न हमें वृद्धाश्रम भेजने की। कमरे में पानी नहीं खत्म होता तो तुम्हारी सच्चाई नहीं जान पाती बहू”।

“मम्मी-पापा दादी क्या कह रही है। क्या यह सच है। बोलो न मम्मा”।

वो वो•••

“मैं दादी को नहीं जाने दूँगा”।

“अरे राहुल। मैं कहीं नहीं जा रही। जायेंगे तो तेरे मम्मी-पापा। यह घर अभी भी मेरा है”। कोई मुझे यहाँ से नहीं निकाल सकता, पर मैं अवश्य निकाल सकती हूँ। मुझे भी थोड़ा-बहुत अपने अधिकार पता हैं। भोली अवश्य हूँ, अनपढ़ नहीं। इसलिए तुम दोनों अपना बोरिया बिस्तर बांधो और निकल जाओ। राहुल की मर्जी है, तो वह यहाँ  रह सकता है”।

“क्या! हम कहाँ जायेंगे। मैं तो तेरा बेटा हूँ”।

“कौन-सा बेटा। जिसने मुझे धोखे से वृद्धाश्रम भेजने की योजना बनाई थी”।

“अम्मा, हमें माफ कर दो”।

पापा-मम्मा, दादी सही कह रही है। आपने सही नहीं किया। मैं भी यहीं दादी के साथ रहूँगा”।

हम तेरे बिना नहीं रह पायेंगे राहुल। श्रेया ने रोते हुए कहा।

और दादी रह पाती पापा के बिना। सोचा था आपने”।

अम्मा, मेरे राहुल को मत छीनो। उसके बिना हम नहीं रह पायेंगे”।

“ठीक है। राहुल के लिए मैं तुम्हें इस घर में रहने दूँगी, पर तुम्हें इस घर में रहने का किराया देना होगा। साथ ही जो मैंने अपना सब कुछ तुम्हारे नाम किया है, उसे फिर से मेरे नाम करना होगा। बोलो, मंजूर है! मुझे भी आज एक सबक मिला, जीते जी अपना सब कुछ नहीं देना चाहिए”।

अर्चना कोहली “अर्चि”

नोएडा (उत्तर प्रदेश)

#दोहरे_चेहरे

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!