रवि,क्या मेरी एक बात मान लोगे?
बोलो ना,सुमन तुम जो कहोगी मैं करूँगा।
देखो मैंने ये प्राइवेट रूप में इंटर करने के लिये फॉर्म मंगवाया है, इसे भर कर भेजना है।सब पुस्तके मैं मंगवा दूंगी, पर पढ़ना तो पड़ेगा।बाद में एग्जाम होंगे।देखना तुम निश्चित रूप से सफल होंगे।फिर मैं हूँ ना।
क्या तुम चाहती हो अब शादी के बाद मैं पढूं,लोग क्या कहेंगे?
रवि,लोग तो अब भी क्या क्या कह रहे है,ताना कसते हैं।हमें उन तानों का जवाब देना है, रवि।
साधारण परिवार में जन्मी सुमन,प्रारम्भ से ही कुशाग्र बुद्धि की थी,पढ़ाई लिखाई में अव्वल तो घर के कामकाज में, माँ का हाथ बटाने में भी अव्वल।सुंदर सलोनी सुमन का दुर्भाग्य था तो बस ये कि उसके पिता के पास देने को दहेज न होने के कारण उसके योग्य कोई वर नही मिल पा रहा था।एम ए कर चुकी सुमन के उसके पिता गिरधारी उसके हाथ पीले करना चाहते थे,पर करे तो कैसे करे,यही सोच उन पर हावी थी।सुमन ने कहा भी पापा क्यो परेशान होते हो,आपने जब मुझे पढ़ाया है तो मैं क्या आप पर बोझ बनूंगी,
मुझे आप बस नौकरी करने की अनुमति दे दे।इसी उहा पोह में गिरधारी पड़ा था,कि उसके सेठ मुरारीलाल जी के उसकी परेशानी पूछने पर वह बिलख पड़ा और बेटी के हाथ पीले न होने का मलाल उसने सेठ जी को बता दिया।मुरारी लाल जी का छोटा बेटा रवि जो काफी प्रयासो के बाद भी बमुश्किल हाई स्कूल कर पाया था,और अब उसकी शादी के लाले सेठ जी को पड़ रहे थे,आज के जमाने मे कम पढ़े लिखे होने के कारण कोई लायक लड़की उसके लिये मिल ही नही रही थी।सेठ मुरारीलाल जी ने सुमन को देख रखा था,
खूब सुंदर और पढ़ीलिखी तथा सुगढ़ सुमन उनके विचारों में तैर गयी और उन्होंने गिरधारी के सामने बिना लेनदेन के रवि से सुमन की शादी का प्रस्ताव रख दिया।अवाक सा गिरधारी सेठ जी का मुँह देखता रह गया।गिरधारी के मन मे भी बस झिझक यही थी कि रवि मात्र हाई स्कूल पास है, और उसकी सुमन एमए, पर दूसरी ओर उसे लग रहा था,रवि से शादी के बाद उसकी सुमन राज करेगी।सुमन ने जब इस प्रस्ताव को सुना तो वह सन्न रह गयी।यह बेमेल शादी की बात इसीलिये चल रही है,क्योकि उनके पास पैसा नही है।
अंदर ही अंदर सुमन सुलग उठी,उसे अपने पिता से यह आशा नही थी,सुमन ने अपनी सारी भड़ास अपनी मां के सामने निकाली।पर मां भी क्या उत्तर देती।गिरधारी ने सब बातें सुन सुमन से बोला बेटी,मैं तेरा गुनाहगार हूँ, मैं बदकिस्मत भी हूँ, अपनी फूल सी बच्ची के साथ न्याय नही कर पा रहा हूँ।बेटी क्या करूँ,तू नौकरी कर भी लेगी तो उससे इतना कैसे जुड़ पायेगा।सेठ जी का बेटा कम पढ़ा लिखा जरूर है पर शरीफ है,काम धंधे में लगा है।मैंने बेटा हाँ नही कहा है,जब तक तू नही कहेगी मैं हां करूँगा भी नही।कहते कहते गिरधारी की आंखे भर आयी।वे सुमन के सामने से हट गये।
बाप की आंखों में आंसू देख सुमन ने अपना समर्पण कर दिया।रवि सुमन की शादी हो गयी।कुछ दिन सुमन असहज थी,वो सोचती वह किससे नाराज है,अपने से,रवि से या अपने पिता से?पिता का ध्यान आते ही उनकी आँखों मे आये आंसू उसके जेहन में कौंध गये।इधर शादी के बाद हर रिश्तेदार और मिलने वाले एक ही बात कहते अरे रवि की किस्मत देखो इस हाई स्कूल पास को एमए पास इतनी सुंदर पत्नी मिली है,इसके भाग खुल गये।सुमन को यह अपनी प्रसंशा नही लगती बल्कि उसे यह ताना लगता,वह खिन्न हो जाती।ये अच्छा था रवि उससे बहुत प्यार भी करता और उसकी हर बात भी मानता था।
एक दिन सुमन ने निश्चय कर लिया कि वह बदलेगी अपनी नियति को,वह स्वीकार करेगी चुनौती को।उसने रवि को आगे की पढ़ाई के लिये प्रोत्साहित किया।पहले इंटर का प्राइवेट फॉर्म भरवाया,रात्रि में चुपचाप खुद रवि को पढ़ाती जिससे उसमें कोई हीन भावना न आये।सुमन की मेहनत रंग लाई और पहले ही प्रयास में रवि इंटर में द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हो गया।इससे रवि का हौसला बढ़ गया।बाद में खुद रवि ने डाक द्वारा बीए करने की मंशा सुमन के सामने रखी तो सुमन का मन मयूर नाच उठा।उसने भी रवि का पूरा सहयोग किया।
पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री लेने पर रवि सुमन के पास आया और डिग्री उसके हाथ मे रख बोला सुमन तुम मेरी पत्नी ही नही मेरी गुरु भी हो,तुम्हारे बिना ये अनहोनी हो ही नही सकती थी।तुम मेरा अभिमान हो सुमन।सुमन की आंखे खुशी के आँसूओ से सरोबार थी,रवि उसका हाथ पकड़ कर अपने माता पिता के पास लेकर आया और बोला पापा सुमन ने सारे समाज को उत्तर दे दिया है।उन्होंने रवि और सुमन को आगे बढ़ अपने आगोश में ले लिया।आखिर ये सुमन की जिजीविषा और संकल्प की जीत थी।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित
#गाल फुलाना मुहावरे पर आधारित लघुकथा: