ना बोलना सीखो – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi

बारात में क्या पहनने वाली हो? अलका ने अपनी देवरानी ममता से कहा 

वह मैंने इस बार करवा चौथ पर एक साड़ी ली थी, जो मुझे इन्होंने बड़े प्यार से लाकर दी थी वही पहनने वाली हूं, वैसे जीजी आपने तो नई साड़ी ली होगी ना? आखिर देवर की शादी है सबसे बड़ी जेठानी तो सबसे अलग दिखानी ही चाहिए, ममता ने कहा 

अलका:  हां वह तो है, मैंने तो नई साड़ी ही ली हैं, चाहे शादी किसी की भी हो, मैं जब तैयार होती हूं ना तो मुझे कोई भी चीज जो की ओल्ड फैशन है वह नहीं चाहिए, अच्छा तुमने जो करवा चौथ पर ली थी वही साड़ी पहनने वाली हो? हां देवर जी ने दिया होगा अच्छा ही होगा, पर दिखाना कैसी साड़ी पहनने वाली हो?

ममता फिर अपनी साड़ी दिखाने लगती है, उस साड़ी को देखकर अलका अजीब सा मुंह बनाकर कहती है, हां अच्छी है पर तुम रुको, तुम्हारे लिए मेरे पास एक साड़ी है, यह कहकर अलका एक हल्की गुलाबी साड़ी लेकर आती है और कहती है, तुम इसे पहन लेना, यह साड़ी मैंने बस एक ही बार पहनी है, तुम्हारी सारी काफी भारी है और बुरा मत मानना काफी ओल्ड फैशन भी, यह साड़ी हल्की भी है और ट्रेंड में भी है 

ममता:  अरे नहीं नहीं जीजी, मैं अपनी ही साड़ी पहनूंगी, मैंने उसके साथ पहनने के लिए साड़ी ज्वेलरी भी लेकर आई हूं, 

अलका:  क्या ममता तुम भी? क्या मेरा तेरा कर रही हो? हम दोनों जेठानी देवरानी कम बहने ज्यादा है और रही बात इसके साथ पहनने के लिए ज्वेलरी वगैरा, जब मैं तुम्हें साड़ी दूंगी तो क्या मैचिंग ज्वैलरी नहीं दूंगी? काफी हां ना करने के बाद आखिरकार ममता को अलका की बात माननी ही पड़ी 

ममता मंझली बहु थी, वह अपने पति और दो बच्चों के साथ अलग शहर में रहती थी, क्योंकि उसके पति शंकर की नौकरी अलग शहर में थी, इधर शंकर के बड़े भैया मनोज उसकी पत्नी अलका दो बच्चों समेत और देवर दीपक यही अपने माता-पिता के साथ रहते थे, आज दीपक की शादी थी

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तो वही अलका और ममता की बात चल रही थी, अलका हमेशा से ही ममता से ईर्ष्या रखती थी, उसे लगता था कि यह अपने परिवार को अलग लेकर रहती है और मजे करती है और इधर उसे यहां रहकर सास ससुर की सेवा करनी पड़ती है, पर ममता को तो अलग रहना पसंद ही नहीं था,

वह तो शंकर की नौकरी की वजह से उसे सबसे अलग रहना पड़ता था, हालांकि ममता बाहर रहती थी पर उसके खर्च भी ज्यादा थे, शंकर जितना कमाता था बड़ी मुश्किल से बचत कर पाता था, इधर मनोज अपने घर पर ही कपड़ों की दुकान चलाता था जो अच्छा खासा चलता था और अपने ही घर और शहर में रहता था

तो उसके खर्च भी ज्यादा नहीं थे तो उसकी अच्छी खासी बचत भी हो जाती थी, इसलिए अलका बहुत इतराती भी थी, वह हर वक्त ममता को यही जताती थी कि उसके पास ज्यादा है और यह बात ममता भी कहीं ना कहीं समझती थी, पर वह फिर भी अलका को मना कर उसके दिल को तोड़ना नहीं चाहती थी, फिर दोनों तैयार होकर बारात में शामिल होती है,

जहां अलका काफी महंगी नई साड़ी पहनकर भी तारीफ नहीं पा सकी, वहीं सभी मेहमान बस ममता की ही तारीफ किए जा रहे थे, कोई कहता शर्मा जी की मंझली बहू के आगे तो अप्सरा भी शर्मा जाए और जब अलका ने देखा कि सभी बस ममता की ही तारीफ कर जा रहे हैं

तो उसने सभी से यह कहना शुरू कर दिया यह साड़ी मैंने ही दी है तभी इतनी जच रही है वरना जो यह अपनी साड़ी लाई हुई साड़ी पहनती ना, फिर तो हमारे घर काम करने वाली ही लगती, काफी महंगी साड़ी है वह तो मैं इसे अपनी छोटी बहन मानती हूं, इसीलिए मुझे लगा कि घर की इज्जत की बात है तो एक अच्छी साड़ी तो पहननी चाहिए, इसलिए दे दिया, 

थोड़ी देर बाद शंकर जाकर ममता से कहता है, ममता, तुमने भाभी भाभी की साड़ी पहनी है क्या?

 ममता:  हां पर क्यों? क्या हुआ?

 शंकर:  पर तुम तो साड़ी लाई थी ना? फिर ऐसी क्या जरूरत पड़ गई जो भाभी से साड़ी मांगनी पड़ी?

 ममता: मैंने मांगी नहीं है उन्होंने जबरदस्ती दी है!

 शंकर:  उन्होंने जबरदस्ती की और तुमने ले भी ली और अब वही सबसे जाकर कह रही है तुम ढंग की साड़ी नहीं लाई तभी उन्होंने यह साड़ी तुम्हें दी है, ममता तुम तो जानती हो की भाभी कैसी है? फिर भी? उनकी बातों से ऐसा लगा कि मैं तुम्हें एक अच्छी साड़ी भी नहीं दिला सकता! ममता तुरंत ही अंदर गई

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और अपनी लाई हुई साड़ी पहन कर आ गई, वह इस साड़ी में और भी ज्यादा सुंदर लग रही थी, पर उसे सारी बदलते देखा अलका ने उसे फुसफुसा कर पूछा, क्या हुआ ममता? इतनी अच्छी तो लग रही थी! साड़ी क्यों बदल दी? तुम्हें पता भी है उसे साड़ी की वजह से तुम्हारी कितनी तारीफ हो रही थी? 

ममता: हां जीजी मुझे सब पता है उस साड़ी की वजह से मेरी कितनी तारीफ हो रही थी और आप उसे निंदा में बदलने के लिए काफी प्रयास भी कर रही थी, जीजी तारीफ तो मुझे इस साड़ी में भी मिल रही है, असल में ना साड़ी और पहनावे से कुछ नहीं होता जीजी अगर मन साफ हो ना, तो आप कुछ भी पहनो उसमें अच्छी ही लगेंगी,

जीजी आपने सुबह बहन कहा मुझे बस इसलिए वह साड़ी मैंने पहनी, पर जो मुझे पता होता यह साड़ी मुझे और मेरे पति को अपमान का एहसास कराएगा तो मैं यह कभी ना लेती, आगे से जीजी कृपया करके मुझे बहन मत कहना और इस तरह सामने मीठा-मीठा बोलकर पीछे से अपमानित मत करना, मेरे पास जो है

जितना है मैं उतने में ही खुश हूं, यह कहकर ममता वहां से चली गई, बारात में आए हुए काफी मेहमानों ने उसे साड़ी बदलने का कारण भी पूछा, पर ममता ने सिर्फ एक ही जवाब दिया कि वह साड़ी मुझे बहुत चुभ रही थी 

दोस्तों, कभी-कभी हम ना नहीं बोल पाते. जो हमें बाद में अपमानित कर देता है, ना चाहे किसी को कुछ देने में हो या फिर कुछ लेने में, जब आपका दिल रजामंद ना रहे, वह बार-बार ना कहे तो उसे अपने होठों पर भी जरूर लाएं, वरना फिर बस यही सोचते रह जाएंगे, काश के पहले ही ना बोल दिया होता!! 

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु

#अपमान

VM

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