ना मै अच्छा बेटा बन पाया ना ही अच्छा पिता बन पाया – अर्चना खंडेलवाल

मम्मी, फ्रिज मै रसगुल्ले रखे हैं मै खा लूं? बड़ा मन कर रहा है, मनीष ने मचलते हुए कहा तो रजनी बोली, अभी नहीं पहले पापा को ऑफिस से आने दे, सब साथ में खायेंगे, थोड़ा तो सब्र रखना सीख, परिवार में सब साथ खाते हैं तो प्यार बढ़ता है।
ठीक है मम्मी, ये कहकर वो स्कूल होमवर्क में लग गया, अंदर कमरे में बैठी उसकी दादी चंदा जी रसगुल्ले का नाम सुनते ही खुश हो गई, बड़े दिनों से कुछ मीठा नहीं खाया था, और रसगुल्ले तो नरम भी होते हैं, बिना दांत के वो आसानी से खा लेंगी।
रजनी ने रसोई में खाने की तैयारी कर ली और गौरीश ऑफिस से आ गया, वो रात के खाने के लिए बैठ गया, तीनों ने मिलकर खाना खाया और फिर मनीष चार कटोरी लेकर आ गया और चारों में उसने रसगुल्ले रख दिये।
बेटा, हम तो तीन ही है ये चौथी कटोरी किसलिए है?
मम्मी, दादी के लिए है, मै उन्हें भी बुलाकर लाता हूं,
मनीष तू चुपचाप यही बैठकर खालें, दादी को रसगुल्ले देने की क्या जरूरत है, वो इस उम्र में खाकर क्या करेंगी, तू दो खाले , तेरी बढ़ती उम्र है और तुझे पसंद भी है।
लेकिन मम्मी रसगुल्ले तो दादी को भी बहुत पसंद है, मनीष ने बीच में बोला।
मनीष, तेरी मम्मी ठीक कह रही है, तू बहस मत कर, तेरी दादी तो सो चुकी होगी और अब वो रसगुल्ले खाकर करेगी क्या? गौरीश ने तेज आवाज में कहा तो मनीष भी सहम गया , और चुप हो गया।
रजनी और गौरीश की कई बातें उसे अच्छी नहीं लगती थी, पर फिर भी वो मम्मी -पापा है तो वो उन्हें कुछ कह नहीं सकता था।
चंदा जी एक वृद्ध और विधवा मां है, अपने पति को खोये हुए बरसों हो गये थे।

पति की मौत के बाद धोखे से बेटे-बहू ने सारी जायदाद हथिया ली और अब वो दोनों उन्हें हर तरह से परेशान करते हैं, रजनी खाने-पीने में भेदभाव करती है और वही बेटा गौरीश भी उनका इलाज नहीं करवाता, समय पर दवाईयां लाकर नहीं देता है जिस कारण से वो समय से पहले वृद्ध हो गई थी और अपनी बढ़ती बीमारियों से लड़ रही थी। चंदा जी का अपना खुशहाल परिवार था, एक ही संतान को जन्म देकर उसे ही अच्छे से पाला था, गौरीश की हर इच्छा और सुविधा का उन्होंने सदैव ध्यान रखा था, कभी-कभी गौरीश कॉलेज ले जाने के लिए ज्यादा पैसे भी मांगता था तो वो अपने पति से छुपकर दे देती थी।
पड़ोसन कुछ कहती तो समझाती थी, बहन एक ही बेटा है, मै इसकी अभी हर इच्छा पूरी करूंगी तो ये भी मेरा बुढ़ापे में बड़ा ख्याल रखेगा, मै इसके लिए तो कुछ भी कर सकती हूं, फिर घर में कमी भी क्या है, इसके पापा अच्छा कमा रहे हैं, अच्छी भली दुकान चल रही है, आगे-पीछे सब इस पर ही खर्च करना है और हमें पैसा बचाकर भी क्या करना है।
चंदा जी अपने बेटे का हर तरह से पक्ष लेती थी, और उसे अपने पति की डांट से भी बचा लेती थी। गौरीश ने औसत पढ़ाई की और अपने पापा के साथ ही दुकान भी संभाल ली, कुछ महीने ही गौरीश दुकान पर बैठा था कि एक रात अचानक से उसके पापा की हदयगति रूकने से मौत हो गई।
चंदा जी ये सदमा सहन नहीं कर पाई, बड़ी मुश्किल से उन्हें संभाला और पति की मौत के एक साल बाद घर में शहनाईयां गूंजने लगी। वो अपनी बहू रजनी के स्वागत में जुट गई। हल्दी से लेकर मेंहदी तक हर रस्म अच्छे से की गई थी। उनकी होने वाली बहू भी ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी, पर वो काफी चतुर चालाक थी।

उसने बड़ी चतुराई से गौरीश के कान भरें, और उसने धोखे से साइन करवाके घर और दौलत अपने नाम लिखवाली। अब धन दौलत मिलने के बाद दोनों पति-पत्नी का रवैया ही बदल गया था। दोनों चंदा जी के प्रति लापरवाह हो गये थे। अब रजनी को अपनी बूढ़ी सास आंखों में किरकिरी सी चुभने लगी थी, वो उन्हें तरह-तरह से परेशान करने लगी थी, और दुख की बात ये थे कि गौरीश भी अपनी पत्नी का पूरा साथ दे रहा था, उसे भी अपनी मां की जरा भी परवाह नहीं थी।

चंदा जी को छोड़कर दोनों कहीं भी अकेले घूमने निकल जाते थे, वो बीमार भी होती तो कभी दवाई की नहीं पूछते थे, उन्हें खाने को बस अचार रोटी देकर खुद पकवानों के मजे लेते थे।
चंदा जी सब सहन करती थी, मन ही मन दुखी रहती थी, बहू से तो उन्हें कोई शिक़ायत नहीं थी क्योंकि वो तो पराई थी पर उनका अपना खून उन्हें इतने कष्ट दे रहा था, जिसे सहन करना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा था।
मनीष के जन्म के बाद दोनों उसकी देखभाल में लग गये थे, और चंदा जी अब एकदम से उपेक्षित हो गई थी, दोनों उसकी हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करते पर चंदा जी का जरा भी ध्यान नहीं रखते थे।

एक दिन मनीष खेल रहा था, वो भी उसे बैठी निहार रही थी, कि अचानक वो सीढ़ियों से गिर गया और उसे चोट लग गई, और उसका सारा दोष उन पर मढ़ दिया गया कि उन्होंने अपने पोते को गिरा दिया ताकि बहू बेटे को तकलीफ़ हो, उनकी खुशी उनसे देखी नहीं जा रही थी। इतना बड़ा दोष लगने के बाद वो टूट सी गई थी, मूल से ज्यादा तो ब्याज प्यारा होता है, कोई दादी भला कैसे अपने ही दो साल के पोते को सीढ़ियों से गिरा सकती है, ये बात उन दोनों पति-पत्नी को समझ नहीं आ रही थी।

उस दिन के बाद उन्हें सख्त हिदायत मिली कि वो उससे दूर ही रहें। एक ही छत के नीचे रहने के बावजूद भी उन्हें मनीष से दूर रहना पड़ता था, वो दूर से ही उससे लाड़ लड़ा लेती थी।
एक दिन मनीष बोला कि दादी गेंद फेंकों आपके पास आ गिरी है, उन्होंने फेंक दी तो रजनी ने गुस्से से वो गेंद ही घर से बाहर फेंक दी, इस गेंद को आपने हाथ लगाया भी तो कैसे लगाया ? मेरे बेटे को आपकी बीमारी लग जायेगी, खुद तो खांसती रहती हो, इसे भी बीमार कर दोगी। ये सुनते ही उनकी आंखों में आंसू आ गये।
दोनों बेटे बहू यातना देने में कोई कमी नहीं रखते थे।
एक रात चंदा जी के कमरे का पंखा खराब हो गया, बड़ी गर्मी थी, उन्होंने बेटे से ठीक करवाने को कहा तो गौरीश भड़क गया, वैसे ही घर में इतने खर्चे लगे रहते है और आप रोज नया -नया खर्चा बताती हो, कभी दवाई ला दो, कभी चश्मा बनवा दें, कभी पंखा ठीक करवा दें, इन सबमें ही पैसा बर्बाद करता रहूंगा तो अपनी पत्नी और बेटे को क्या खिलाऊंगा? अपने मम्मी-पापा का यही व्यवहार देखकर समय के साथ मनीष बड़ा हो रहा था।
अपनी बीमारियों और बेटे बहू की उपेक्षा के कारण चंदा जी जल्दी ही स्वर्गवासी हो गई, उनकी मौत पर बेटे-बहू ने समाज को दिखाने के लिए झूठे आंसू बहाएं, पर उनके लिए मनीष के मन में बहुत सारा प्यार था, छोटा होने के कारण वो अपने मम्मी-पापा से कुछ कह नहीं पाता था, पर वो उनके गलत व्यवहार से बहुत दुखी रहता था।
अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद मनीष भी अपने पापा के साथ ही दुकान के काम पर लग गया, दोनों मिलकर अच्छे से दुकान चला रहे थे, अब रजनी जी को उसकी शादी की चिन्ता सताने लगी, जल्दी से शादी करवाके वो बहू को घर लाना चाहती थी ताकि उसे घर गृहस्थी के कामों से छुटकारा मिल जाएं।

मनीष इकलौता बेटा था, तो उसके लिए रिशते भी आने लगे, और बहुत जल्दी शालू उसकी पत्नी बनकर घर पर आ गई। शालू भी अपने घर में इकलौती थी और थोड़ी मुंहफट और नकचढ़ी थी, उससे ज्यादा काम नहीं होता था, उसे बस आईने के सामने सज संवरकर बैठनें का शौक था, खाना बनाने में उसे बहुत जोर आता था।
अपनी उम्मीदों के विपरीत बहू पाकर रजनी जी को बहुत दुख पहुंचा, अब उससे भी काम नहीं होता था वो भी घुटनों के दर्द से परेशान रहने लगी थी।
एक सुबह बहुत देर हो गई, शालू अपने कमरे से नहीं निकली तो रजनी जी ने जोर से दरवाजा खटखटाया, तो मनीष ने गुस्से से दरवाजा खोला, क्या बात है? क्यों हमारी नींद खराब कर रही हो?
अपने बेटे का गुस्सा देखकर वो झेंप गई, बहू उठी नहीं
और मुझे चाय पीनी है उन्होंने कहा।
अपने आप जाकर रसोई में बना लीजिए, उसमें शालू क्या करेंगी? एक रविवार का दिन ही तो आराम का मिलता है।
रजनी जी भारी कदमों से रसोईघर में गई, पर वहां दूध नहीं था, केवल पानी में पत्ती उबालकर ले आई और गौरीश जी को चाय दे दी।
ये क्या बिना दूध की चाय!! घर में दूध नहीं है क्या?
दूध रात को तो था, पता नहीं कहां गया, और अभी देर से आयेगा, ये कहकर उन्होंने चाय पकड़ा दी।
चाय पीते हुए गौरीश जी को पुरानी बात याद आ गई, एक दिन इसी तरह उन्होंने अपनी मां को चाय पिलाई थी, उनके बार-बार चाय मांगने पर रजनी जी ने परेशान होकर बिना दूध की चाय दे दी, उस दिन के बाद चंदा जी ने कभी दोबारा आगे होकर चाय नहीं बनवाई।
दोनों को पुरानी बात याद आ गई और दोनों ही एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला पा रहे थे, और ये सोचकर परेशान हो रहे थे कि उन्होंने जो भी बुरा किया है वो सब पलटकर वापस उन्हें ही मिलने वाला है।

गौरीश जी भी अब बीमार रहने लगे थे,उनको दिल की बीमारी हो गई थी, अब सांस फूलने लगी थी, उनसे दुकान पर बैठा नहीं जाता था तो वो घर पर ही रहने लगे थे, इस कारण सारी दुकान के काम का भार मनीष पर आ गया था।
एक शाम को मनीष दुकान से घर आया तो उन्होंने आते ही पूछ लिया कि बेटा मेरी दवाई लाया या नहीं? तो मनीष गुस्से में बिफर गया, आपको बस अपनी दवाई और काम की पड़ी है, सुबह से अभी घर आया हूं, दिन भर दुकान में अकेले खटता रहता हूं, आप तो घर में बस आराम ही करते रहते हो, अब अपनी दुकान संभालूं या आपके काम करता फिरूं? एक जान को सौ काम लगे रहते हैं, और आपके काम खत्म ही नहीं होते हैं।
एक दिन दवाई नहीं लेंगे तो मर तो नहीं जायेंगे।
अपने बेटे के मुंह से इतनी कड़वी बातें सुनकर उनका दिल और बैठ गया, दुख इस बात का हो रहा था कि उन्होंने जो बुरा व्यवहार अपनी मां के साथ किया, वो ही उनका बेटा उनके साथ कर रहा है, इसमें बेटे की भी कोई गलती नहीं है, आखिर उसने भी तो बचपन से यही सब देखा था, उन्होंने कभी उसे सही संस्कार ही नहीं दिये तो बेटा सीखेगा कैसे ? आज उनके आंसू अन्दर ही अन्दर बहने लगे, आंखें निस्तेज हो गई और उन्होंने दिल पर पत्थर रख लिया, क्योंकि अभी तो उनकी सजा की शुरुआत हुई है।

तभी उन्हें रसोई से चीखने की आवाज सुनाई दी, उनकी बहू शालू चिल्ला रही थी, अभी से भूख लग गई, अभी तो शाम हुई है, सुबह ही तो खाना दिया था, अब दिन भर तो खाने को नहीं मिल सकता है, आपकी भूख तो खत्म ही नहीं होती है, हर थोडी देर में बहू कुछ दे दे, अपने घर में भंडारा थोड़ी खोल रखा है जो दिन भर खाना मिलता रहेगा, अभी तो ये दुकान से आये है, पहले अपने पति को तो कुछ खिला दूं , फिर खाना, वैसे भी दोनों दिनभर घर में पड़े ही रहते हो।

दिनभर दुकान में खटते रहते हैं, इनको तो खाना दे दूं , अपने कमरे में जाओं, बाद में आवाज लगा दूंगी, रजनी जी रोते हुए रसोई से बाहर आती है।

दोनो बेटे-बहू खाना खा लेते हैं, बाद में उन्हें खाना मिलता है, रजनी जी किसी काम से फ्रिज खोलती है तो देखती है उसमें आइसक्रीम रखी हुई है, तो उनका मन मचल जाता है। तभी उनकी बहू आती है और आइसक्रीम निकाल लेती है, दो कटोरी में भरकर अपने कमरे में ले जाती है और कमरा बंद कर लेती है, उनको पुराने दिन याद आ जाते हैं, वो भी अपनी सास को कोई मिठाई या अच्छी चीज खाने को नहीं देती थी, हमेशा भेदभाव करती थी, आज उनकी बहू भी उनके साथ ऐसा ही कर रही है, वो कमरे में आकर चुपचाप बैठ जाती है। उन्हें अपने सारे बुरे कर्म याद आ जाते हैं, और उनकी आंखें भर आती है।

अपनी पत्नी की दशा देखकर गौरीश जी बहुत दुखी होते हैं, उन्हें बार-बार यही महसूस होता है कि काश! वो अपनी मां की सेवा करते, और रजनी के गलत काम और बुरे व्यवहार में उसका साथ नहीं देते तो आज उनका बुढ़ापा बेहतर होता, उनका बेटा मनीष भी उनकी सेवा करता, इस तरह की कड़वी बातें तो नहीं सुनाता।
अब दोनों का बेटे-बहू के साथ रहना मुश्किल हो रहा था , कुछ दिनों बाद गौरीश जी ने कुछ फैसला किया और दोनों को कमरे में बुलाया, मनीष ये घर के और दुकान के कागजात है, जो मैंने तुम दोनों के नाम कर दिया है जिसे मैंने तेरी दादी से धोखे से हथिया लिये थे। हम दोनों ने उन्हें बहुत दुख दिये थे, उसी का फल हमें मिल रहा है, बेटा दोष तेरा और बहू का बिल्कुल भी नहीं है, ये हमारे दुष्कर्म ही थे जो लौटकर आ रहे हैं, मैंने तुझे कभी संस्कार नहीं दियें, मै ना तो अच्छा बेटा बन पाया और ना ही अच्छा पिता बन पाया।
हम दोनों यहां रहेंगे तो तुम्हारे व्यवहार का असर तुम्हारे होने वाले बच्चों पर पड़ेगा, इसलिए अब हम दोनों अपने किये का प्रायश्चित करना चाहते हैं, हरिद्वार में एक संत के आश्रम में हमने शरण ली है अब वहीं जाकर सत्संग करेंगे और सेवा भी।
कभी हमारी याद आये या तू हमें माफ कर सकें तो मिलने आ जाना, होने वाले बच्चे का चेहरा दिखा जाना।
ये कहकर गौरीश जी और रजनी जी प्रायश्चित करने घर से चले गए।

पाठकों, कर्म अच्छे हो या बुरे वो पलटकर वापस जरूर आते हैं, आप अपने माता-पिता के साथ जैसा व्यवहार करोगे, आपकी संतान वैसा ही देखेगी और करेगी, एक अच्छे पुरूष की यही पहचान है कि वो हर गलत बात में पत्नी का साथ नहीं दे, और वो अच्छा बेटा और पिता बनकर दिखाएं।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल

#पुरुष

(V)

1 thought on “ना मै अच्छा बेटा बन पाया ना ही अच्छा पिता बन पाया – अर्चना खंडेलवाल”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!